पश्चिम और विशेष रूप से अमेरिका का श्रेष्ठता बोध खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। इसका ताजा उदाहरण है एक अमेरिकी आयोग की भारत में धार्मिक स्वतंत्रता पर प्रतिकूल रिपोर्ट। इसके कुछ दिन पहले अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने भारत में मानवाधिकारों की स्थिति पर चिंता जताई थी। यह चिंता ऐसे समय जताई गई थी, जब अमेरिका में इजरायल के खिलाफ प्रदर्शनरत छात्रों और शिक्षकों को गिरफ्तार कर उन्हें शैक्षिक परिसरों से बलपूर्वक खदेड़ने की तैयारी हो रही थी।

भारतीय विदेश मंत्रालय को मानवाधिकारों पर अमेरिकी रिपोर्ट को खारिज करते हुए यह कहना पड़ा था कि वह भारत के बारे में अपनी खराब समझ का परिचय दे रही है। भारत के प्रति जितना दुराग्रह इस रिपोर्ट में झलक रहा था, उतना ही धार्मिक स्वतंत्रता संबंधी रिपोर्ट में भी। इसीलिए भारत को कहीं कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए यह कहना पड़ा कि धार्मिक स्वतंत्रता का आकलन करने वाला अमेरिकी आयोग राजनीतिक एजेंडे वाला एक पक्षपाती संगठन है और वह भारत को लेकर अपना दुष्प्रचार जारी रखे हुए है।

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने यह कहने में भी संकोच नहीं किया कि उक्त रिपोर्ट भारत की चुनावी प्रक्रिया में हस्तक्षेप करने की कोशिश है। इस नतीजे पर पहुंचने के अच्छे-भले कारण हैं, क्योंकि चंद दिनों पहले ही अमेरिकी सूत्रों के हवाले से खालिस्तानी आतंकी गुरपतवंत सिंह पन्नू की हत्या की कथित साजिश में शामिल एक भारतीय अधिकारी का नाम लिया गया था। अमेरिका भारत पर तो इस साजिश की जांच करने का दबाव बनाए हुए है, लेकिन यह बताने को तैयार नहीं कि वह ऐसे आतंकी को क्यों पाल रहा है, जो भारत को आए दिन धमकियां देता रहता है?

अमेरिका और पश्चिम के अन्य देश धार्मिक स्वतंत्रता, मानवाधिकारों आदि पर भारत को तो उपदेश देते हैं, लेकिन खुद अपने अंदर नहीं झांकते। भारत के अंदरूनी मामलों में अनावश्यक टिप्पणी करने वाले पश्चिमी देशों की संस्थाएं क्या दुनिया को यह बताएंगी कि अमेरिका में पुलिस विश्वविद्यालयों में धावा क्यों बोल रही है और ब्रिटेन अवैध अप्रवासियों को पकड़-पकड़ कर रवांडा क्यों भेज रहा है? इसी तरह कनाडा में हड़ताली ट्रक ड्राइवरों से निपटने के लिए आपातकाल क्यों लगा दिया जाता है?

ध्यान रहे कि ये वही पश्चिमी संस्थाएं हैं, जो कृषि कानून विरोधी उग्र आंदोलन और शाहीन बाग के अराजक धरने को एक तरह से न केवल अपना समर्थन दे रही थीं, बल्कि भारत को मानवाधिकारों और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का पाठ भी पढ़ा रही थीं। वास्तव में अमेरिका, कनाडा समेत यूरोपीय देश तब तक बाज नहीं आने वाले, जब तक भारत भी इन देशों के मामलों में अपनी प्रतिक्रिया देना नहीं शुरू करता। भारत को केवल प्रतिक्रिया ही नहीं देनी चाहिए, बल्कि बाकायदा रिपोर्ट जारी कर यह बताना चाहिए कि इन देशों में क्या गड़बड़ हो रही है, क्योंकि किसी भी देश में सब कुछ ठीक नहीं।