कांग्रेस का चिंतन शिविर संपन्न हो गया, लेकिन उसके माध्यम से पार्टी में मूलभूत परिवर्तन की जो अपेक्षा की जा रही थी, वह पूरी होगी या नहीं, इसके लिए प्रतीक्षा करनी होगी। इसलिए करनी होगी, क्योंकि तमाम बड़ी-बड़ी बातों के बाद भी कांग्रेस नेतृत्व अपनी कमजोरियों का सही तरह संज्ञान लेता हुआ नहीं दिखा और इसकी स्पष्ट झलक राहुल गांधी के संबोधन में दिखी। उनके संबोधन ने यही बताया कि वह और उनका परिवार ही कांग्रेस है। कांग्रेस ने अपने नव संकल्प घोषणापत्र के तहत संगठनात्मक बदलावों को मंजूरी दी, एक पद पर पांच साल से अधिक समय तक किसी के न रहने की व्यवस्था बनाई और युवा नेतृत्व पर बल देना तय किया। इसके अतिरिक्त यह मानते हुए देशव्यापी यात्रा करने का संकल्प लिया कि आम जनता से पार्टी का संपर्क टूट गया है।

अच्छा होता कि संपर्क टूटने के मूल कारणों पर न केवल विचार किया जाता, बल्कि उनका निवारण करने की कोई ठोस रूपरेखा भी सामने लाई जाती। नि:संदेह कांग्रेस के रूप में देश की सबसे पुरानी पार्टी का सशक्त होना आवश्यक है, क्योंकि एक मजबूत विपक्ष सत्तापक्ष पर न केवल अंकुश रखता है, बल्कि लोकतंत्र को संतुलन भी प्रदान करता है। यदि कांग्रेस यह काम नहीं कर पा रही है तो केवल इस कारण नहीं कि वह संख्याबल के लिहाज से कमजोर है। उसकी नाकामी का मूल कारण उसका यह चिंतन है कि भाजपा छल-बल से अथवा जनता की नामसझी से सत्ता में आ गई है।

समझना कठिन है कि कांग्रेस यह क्यों नहीं देख पा रही कि भाजपा जन समर्थन के कारण न केवल केंद्र की सत्ता में है, बल्कि एक के बाद एक राज्यों में भी अपनी जड़ें जमाती जा रही हैं। इनमें कई राज्य ऐसे भी हैं, जो एक समय कांग्रेस के गढ़ हुआ करते थे। उचित यह होगा कि कांग्रेस यह समझे कि भाजपा ने उसकी कमजोरियों और गलत नीतियों का लाभ उठाकर भी उस पर बढ़त कायम की है। दुर्भाग्य से राहुल गांधी के संबोधन से ऐसा कोई संकेत नहीं मिला कि कांग्रेस में कोई नीतिगत बदलाव होने जा रहा है। एक तो उन्होंने भाजपा, संघ, चुनिंदा उद्यमियों आदि को निशाने पर लेते हुए वही पुरानी बातें दोहराईं और दूसरे, अपने विचार इस अंदाज में प्रकट किए, जैसे चिंतन शिविर के जरिये कांग्रेस को दिशा दिखाने और उसे नेतृत्व प्रदान करने की जिम्मेदारी उनके ही कंधों पर डाल दी गई है।

आखिर उन्हें यह जिम्मेदारी किसने प्रदान की? क्या यह मान लिया जाए कि वह फिर से कांग्रेस की कमान संभालने वाले हैं अथवा इसी तरह पर्दे के पीछे से पार्टी संचालित करते रहेंगे? अच्छा होता कि इन प्रश्नों पर भी चिंतन होता।