[प्रो. निरंजन कुमार]। देर आयद दुरुस्त आयद की तर्ज पर सामने आई नई शिक्षा नीति (एनईपी) देश-दुनिया की बदलती हुई जरूरतों के मद्देनजर शिक्षा के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण बदलाव है। पिछली एनईपी 1986 में बनी थी, जिसमें 1992 में मामूली संशोधन किया गया था। एनईपी की एक बड़ी विशेषता यह है कि यह एक लोकतांत्रिक नीति है। इस नीति को बनाने के लिए देश के कोने-कोने से सभी वर्गों के लोगों की राय ली गई। शायद पहली बार ऐसा हुआ है कि शिक्षा नीति बनाने के लिए देश की 2.5 लाख ग्राम पंचायतों, 6600 ब्लॉक और 676 जिलों से सलाह ली गई। शिक्षाविदों अध्यापकों, जनप्रतिनिधियों, अभिभावकों और छात्रों तक के दो लाख से अधिक सुझावों पर मंथन कर जन आकांक्षाओं के अनुरूप एनईपी को साकार किया गया।

एनईपी 2020 की घोषणा के साथ ही मानव संसाधन विकास मंत्रालय का नाम बदलकर शिक्षा मंत्रालय कर दिया गया है। यह सर्वथा उचित है। स्कूली शिक्षा के संदर्भ में एनईपी की सबसे क्रांतिकारी विशेषता है कि कम से कम ग्रेड 5 तक की पढ़ाई स्थानीय या क्षेत्रीय भाषा में होगी, जिसे ग्रेड 8 तक भी बढ़ाया जा सकता है। अंग्रेजी अब सिर्फ एक विषय के तौर पर पढ़ाई जाएगी।

भारतीय भाषाओं कीे मजूबती की दिश में एक बड़ा कदम

शैक्षणिक मनोविज्ञान और यूनेस्को की 2008 की रिपोर्ट के अनुसार मातृभाषा में संप्रेषण और संज्ञान सहज एवं शीघ्र हो जाता है, जो पूर्ण संज्ञानात्मक विकास के लिए जरूरी है। यह भारतीय भाषाओं और संस्कृति की मजबूती की दिशा में भी एक बड़ा कदम साबित होगा। इसी तरह स्कूलों में शैक्षणिक पाठ्यक्रम, पाठ्येतर गतिविधियों और व्यावसायिक शिक्षा के बीच अंतर नहीं किया जाएगा, बल्कि व्यावसायिक शिक्षा को इसका अभिन्न अंग बनाया जाएगा। वोकेशनल शिक्षा के अन्य उच्चतर रूप कॉलेज में भी मौजूद होंगे। यह युवाओं के लिए स्वरोजगार और उद्यम की दिशा में बहुत उपयोगी सिद्ध होगा। 

स्नातक स्तर पर भी लागू होगी यह व्यवस्था 

एनईपी के तहत स्कूली शिक्षा में स्ट्रीम का बंटवारा जड़बद्ध नहीं होगा। अब विज्ञान या कॉमर्स के विद्यार्थी मानविकी के विषय भी पढ़ सकेंगे। यह व्यवस्था स्नातक स्तर पर भी लागू होगी। अमेरिका और यूरोप के विश्वविद्यालयों में यह बहुत पहले से है। यह छात्रों के सर्वांगीण विकास में बहुत लाभदायक है। एनईपी की एक अन्य विशेषता है एससी, एसटी, ओबीसी, लड़कियों, दिव्यांगों और गरीब-वंचित तबके के लिए विशेष प्रावधान। सार्वजनिक के अलावा निजी क्षेत्रों के उच्च शिक्षा संस्थानों में भी इन तबकों के लिए छात्रवृत्ति उपलब्ध हो, इसके लिए प्रयास किए जाएंगे। उच्च शिक्षा के स्तर पर एनईपी कई नई संभावनाओं के साथ आई है। 

चार वर्षीय बैचलर डिग्री का भी है प्रावधान

स्ट्रीम का लचीलापन अर्थात विज्ञान, कॉमर्स या मानविकी के छात्रों को एक-दूसरे के विषयों को पढ़ने की छूट अथवा वोकेशनल शिक्षा के समावेश के साथ-साथ बैचलर प्रोग्राम की एक बड़ी विशेषता होगी मल्टी-एंट्री और मल्टी-एग्जिट। अभी बैचलर डिग्री तीन साल की होती है। अगर किन्हीं कारणों से छात्र को बीच में ही पढ़ाई छोड़नी पड़े तो सारा समय, परिश्रम और धन बेकार चला जाता है। अब जरूरत पड़ने पर एक या दो साल की पढ़ाई के बाद भी छात्र को र्सिटफिकेट या डिप्लोमा दिया जाएगा। छात्र वापस आकर बची पढ़ाई पूरी कर सकता है। तीन साल की पढ़ाई के बाद बैचलर डिग्री मिलेगी। एनईपी में चार वर्षीय बैचलर का भी प्रावधान है जो बैचलर विद रिसर्च डिग्री होगी। यह उनके लिए जरूरी है जो आगे मास्टर्स या पीएचडी करना चाहते हैं। अमेरिका, यूरोप, जापान आदि विकसित देशों में इस तरह की व्यवस्था के सकारात्मक परिणाम हुए हैं।

दूसरे कोर्स में भी ले सकते हैं दाखिला

एनईपी में यह आजादी भी होगी कि छात्र कोई कोर्स बीच में छोड़कर दूसरे कोर्स में दाखिला ले सकता है। इसी संदर्भ में एक अभिनव प्रावधान है एकेडेमिक बैंक ऑफ क्रेडिट्स का। यह एक तरह का डिजिटल क्रेडिट बैंक होगा, जिसके द्वारा छात्रों द्वारा किसी एक प्रोग्राम या संस्थान में प्राप्त क्रेडिट को दूसरे प्रोग्राम या संस्थानों में स्थानांतरित किया जाएगा। इसके अलावा एकल विषयक संस्थानों जैसे लॉ, एग्रीकल्चर विवि आदि को समाप्त कर बहुविषयक संस्थानों में बदला जाएगा। यहां तक कि इंजीनियरिंग संस्थान भी कला और मानविकी का अधिकाधिक समन्वय करते हुए समग्र और बहुविषयक दिशा में अग्रसर होंगे। देश में युवाओं की बड़ी संख्या के मद्देनजर

2035 तक 50 फीसद सकल नामांकन अनुपात पहुंचाने का लक्ष्य 

उनका सकारात्मक और अधिकतम उपयोग करने के लिए उच्च शिक्षा में 2035 तक 50 फीसद सकल नामांकन अनुपात पहुंचाने का लक्ष्य है। फिलहाल यह लगभग 27 प्रतिशत है। इसके लिए उच्च शिक्षा में 3.5 करोड़ नई सीटें जोड़ी जाएंगी। एनईपी का एक अन्य प्रमुख बिंदु है निजी संस्थानों में फीस की मनमानी बंद करने के लिए कैपिंग का प्रावधान। उच्च शिक्षा के लिए एक अब सिंगल रेगुलेटर भारत उच्च शिक्षा आयोग (HCEI) का गठन किया जाएगा, जिसमें यूजीसी समेत अन्य निकायों का विलय हो जाएगा। इससे उच्च शिक्षा के संदर्भ में एक समन्वित और समग्र नीति बनाने और लक्ष्य निर्धारित करने में आसानी होगी। देश को उच्च शिक्षा की वैश्विक शक्ति के रूप में स्थापित करने के लिए उच्च शिक्षा में एक मजबूत शोध-अनुसंधान संस्कृति और क्षमता को बढ़ावा देने का भी प्रस्ताव है। इसके लिए एक शीर्ष निकाय के रूप में नेशनल रिसर्च फाउंडेशन की स्थापना की जाएगी। इसका उद्देश्य विश्वविद्यालयों के माध्यम से शोध की संस्कृति को सक्षम बनाना होगा।

एनईपी के व्यापक लक्ष्यों को पूरा करने के लिए ज्यादा धन की जरूरत होगी। इसलिए जीडीपी का 6 प्रतिशत शिक्षा में लगाने का लक्ष्य रखा गया है, जो अभी 4.43 फीसद है। पूर्व में अन्य संकल्पों को साकार करने की मोदी सरकार की इच्छा शक्ति को देखते हुए यह लक्ष्य कठिन नहीं लगता है। समग्रता में देखें तो उच्च लक्ष्यों वाली एनईपी 21वीं सदी में भारत की जरूरतों-चुनौतियों को पूरा करने में सक्षम साबित होगी, बस इसका क्रियान्वयन ठीक से हो जाए।

 

(लेखक दिल्ली विवि में प्रोफेसर हैं)