नई दिल्ली, उदय प्रकाश अरोड़ा। पश्चिम में हलचल मचाने के बाद ‘मी टू’ आंदोलन ने भारत में भी अपनी उपस्थिति दर्ज की और अभी तक उसका असर दिख रहा है। नागरिक अधिकारों के लिए सजग रहने वाली एक अमेरिकी-अफ्रीकी महिला तराना बर्क को इस आंदोलन को प्रारंभ करने का श्रेय दिया जाता है। आंदोलन का ‘मी टू’ नामकरण बर्क ने 2006 में किया था, लेकिन आंदोलन को प्रसिद्धि तब मिली जब अक्टूबर 2017 में हॅालीवुड की अभिनेत्री एलिसा मिलानो ने फिल्म निर्माता हार्वे वींस्टीन को यौन उत्पीड़न के लिए आरोपित किया।

एलिसा के साहस के बाद हॉलीवुड जगत में जो यौन पीड़िताएं चुप थीं, उन्होंने भी हिम्मत दिखाई। उन्होंने बड़ी-बड़ी हस्तियों का भंडाफोड़ किया। भारत में इस आंदोलन ने तब दस्तक दी जब अभिनेत्री तनुश्री दत्ता ने नाना पाटेकर पर यौन उत्पीड़न के आरोप मढ़े। इसके बाद कई जाने-माने लोग इसी तरह से आरोपों के घेरे में आए। इनमें से कुछ को उनके काम से हटाया गया तो कुछ को हटना पड़ा, जैसे एमजे अकबर और बिन्नी बंसल। यौन उत्पीड़न के खिलाफ अपनी आवाज उठाने का सिलसिला अभी तक कायम है। तमाम बड़ी हस्तियां भी इस आंदोलन की चपेट में हैं। ऐसा माना जाता है कि यौन उत्पीड़न के विरुद्ध यह अपनी तरह का पहला आंदोलन है जो अमेरिका से पूरी दुनिया में फैला, परंतु ऐसा है नहीं।

‘मी टू’ आंदोलन यूरोप-अमेरिका के लिए नया हो सकता है, किंतु भारत के लिए नहीं। यहां यह ढाई हजार वर्षों से भी अधिक पुराना है। बुद्ध के समय इसी विषय को लेकर एक काव्य ग्रंथ थेरीगाथा लिखा गया था। थेरी का अर्थ है भिक्षुणी। थेरीगाथा अर्थात भिक्षुणियों की गाथाएं। इन भिक्षुणियों को थेरियां भी कहा गया। यह काव्य ग्रंथ बौद्ध त्रिपटक साहित्य का हिस्सा माना जाता है। कुल 494 कविताओं से युक्त इस रचना के निर्माण में 110 भिक्षुणियों का योगदान रहा। बुद्ध के समय ये कविताएं मगधी भाषा में प्रचलित थीं। फिर उनका रूपांतरण पाली भाषा में किया गया। विश्व की यह पहली रचना है, जो महिलाओं की कविताओं के संकलन के रूप में है। थेरीगाथा के पहले भारतीय इतिहास में महिलाओं को अपनी व्यथा का वर्णन इतनी निर्भीकता और खुलेपन के साथ प्रकट करते नहीं देखा गया। इसे नारी स्वतंत्रता का मार्ग प्रशस्त करने वाले ग्रंथ के तौर पर देखा गया।

थेरीगाथा का सिलसिला कायम रहता तो शायद आज भारत में महिलाओं की हैसियत बेहतर होती। जिस आत्मविश्वास के साथ थेरियों ने पितृसत्तात्मक समाज में अपनी पीड़ा का वर्णन किया, वैसा प्राचीन विश्व साहित्य में अन्यत्र नहीं मिलता। अपनी आपबीती बयान करते हुए इन थेरियों में किसी प्रकार की लाचारी और पीड़ित होने का भाव नहीं था। यौन उत्पीड़न पर बोलते हुए किसी भी थेरी में अपराध का बोध नहीं था। अपनी गोपनीय बात को खुलकर कहने में उन्हें कोई हिचक न थी। अपने जीवन की उत्कृष्टता के लिए जितने बड़े क्रांतिकारी आंदोलन का सूत्रपात इन थेरियों द्वारा प्रारंभ किया गया था वह एक मिसाल बना।

इसके चलते सार्वजनिक जीवन में महिलाओं के लिए अवसर बढ़े। थेरियां किसी एक वर्ग, जाति या इलाके से नहीं थीं। वे तत्कालीन सभी वर्गों, जातियों और इलाकों का प्रतिनिधित्व करती थीं। थेरी मैत्रिका का जन्म बिहार के बहुत धनवान ब्राह्मण के घर हुआ था। थेरी अर्धकाशी वाराणसी के धनी सेठ की कन्या थी। थेरी विमला वैशाली की वैश्या की कन्या थी। सामा और अपरासामा कौशांबी के राजकुल से थीं। पद्मावती उज्जैन की गणिका थीं। थेरी पुण्णिका दासी की पुत्री थी। रानी यशोधरा और गौतमी सहित शाक्य वंश की लगभग सभी स्त्रियां भिक्षुणी हो गई थीं। भिक्षुणी बनने के बाद सभी थेरियां समान होती थीं। कोई ऊंच-नीच नहीं।

ऐसा माहौल बुद्ध की पहल और प्रेरणा से बना। थेरीगाथा के जरिये बुद्ध ने एक बड़ा क्रांतिकारी कदम उठाया था। उस समय महिलाओं को समानता और सम्मानजनक स्थान दिलाने का एक ही रास्ता था और वह था उनका थेरी संघ में प्रवेश। इन महिलाओं के थेरी बनने के अलग-अलग कारण थे, पर सभी किसी न किसी कारण दुखी थीं। तथागत के विचार पीड़ित स्त्रियों के जीवन में कितनी उम्मीदें जगाते हैं, इसका पता इन थेरियों की कविताओं से लगता है। अनेक अत्याचार सहने के बाद भी इनके जीवन में कहीं भी निराशा नहीं थी। थेरी संघ में धनी और राजघराने की महिलाएं भी थीं। उनकी अपनी अलग तरह की समस्या थी। भोग-विलास को इन्होंने सच्चा जीवन समझा था। उनकी अज्ञानता का लाभ उठाकर पुरोहित वर्ग ने उन पर वर्चस्व स्थापित कर लिया था। बुद्ध के वचन सुनने के बाद वे मिथ्या मान्यताओं और शोषण से बच गईं।

थेरीगाथा की थेरियां जिन विषयों पर विमर्श करती हैं, वे आज भी प्रासंगिक हैं। मातृत्व, संतानहीनता, वृद्धावस्था, उपेक्षा, तिरस्कार, आदि पर वे बड़े विस्तार से चर्चा करती थीं। भौतिकवाद को अस्वीकार करते हुए वे थेरी संघ के मैत्रीभाव और सहयोग से युक्त सरल, त्यागमय जीवन को अपनातीं। असमानता, शोषण और धर्मतंत्र के विरुद्ध संघर्ष छेड़ने वाली उनकी कविताओं में जो ताप है वह आज भी समाज में महिलाओं की सम्मानजनक स्थिति स्थापित करने के लिए एक आदर्श उदाहरण है।

( लेखक जेएनयू के पूर्व ग्रीक चेयर प्रोफेसर हैं)