विवेक देवराय और आदित्य सिन्हा। विकसित एवं विकासशील देशों के बीच साझेदारी के माध्यम से आकार लेने वाले क्षेत्रीय व्यापार समझौते (आरटीए) आर्थिक वृद्धि की गति बढ़ाने में बहुत उपयोगी होते हैं। ऐसे समझौतों से विकासशील देशों को विकसित देशों के समृद्ध बाजारों तक पहुंच मिलती है। अपने विभिन्न उत्पादों और सेवाओं के साथ ही संभावित निवेश के लिए विकसित देशों के बाजारों का अपना आकर्षण है।

बड़े एवं विकसित बाजारों के साथ जुड़ाव किसी भी देश को नवाचार के लिए प्रेरित करने के साथ ही उसकी प्रतिस्पर्धा क्षमता को भी बढ़ाता है। इससे आर्थिक विविधीकरण एवं वृद्धि को बढ़ावा मिलता है। इस महत्ता को समझते हुए ही भारत और यूरोपीय मुक्त व्यापार संघ (ईएफटीए) के बीच व्यापार एवं आर्थिक साझेदारी अनुबंध यानी टीईपीए पर सहमति बनी है। यह समझौता इसका साक्षात प्रमाण है कि भारत जैसा देश विकसित अर्थव्यवस्थाओं के बाजार तक पहुंच और निवेश अवसरों से कैसे लाभ उठा सकता है। एक लंबी वार्ता के बाद इसके सार्थक एवं अपेक्षित परिणाम सामने आए हैं।

बीते दो दशकों के दौरान ईएफटीए-भारत व्यापार रिश्ते निरंतर प्रगाढ़ होते गए हैं। वर्ष 2022 में दोनों पक्षों के बीच कुल वस्तु व्यापार 6.1 अरब डालर को पार कर गया। व्यापार की पड़ताल करें तो उसमें वस्तुओं का व्यापक विनिमय दिखता है, जिसमें ईएफटीए ने भारत से आर्गेनिक रसायनों का आयात किया और भारत को मुख्य रूप से मशीनरी और दवा उत्पादों का निर्यात किया। परवान चढ़ते ये व्यापारिक रिश्ते टीईपीए के संभावित फायदों को रेखांकित करते हैं।

वैश्विक विनिर्माण मानचित्र पर चीन की जगह लेने से जुड़ी अपनी महत्वाकांक्षा की पूर्ति के लिए भारत ने आरटीए की रणनीति को अपनी आर्थिक सक्रियता-सहभागिता में के केंद्र में रखना आरंभ किया है। वर्ष 2020 में हमने एक विश्लेषण किया था, जिसमें उस रुझान का संज्ञान लिया गया था कि वैश्विक कंपनियां किस प्रकार चीन से इतर अपनी विनिर्माण इकाइयां लगाने की योजना पर काम कर रही थीं।

इस रणनीति को ‘चाइना प्लस वन’ नाम मिला था। उसमें देखा गया गया कि तमाम कंपनियां पूर्वी एशियाई देश वियतनाम को वरीयता दे रही थीं। जब इसके पीछे के कारकों की पड़ताल की गई तो पता चला कि वियतनाम को वरीयता मिलने में कई विकसित देशों के साथ उसके आरटीए की अहम भूमिका रही। इन अनुबंधों के नेटवर्क ने वियतनाम को वैश्विक आपूर्ति शृंखला में एक अहम खिलाड़ी बना दिया।

यदि भारत और वियतनाम के रणनीतिक व्यापार गठबंधनों की बात करें तो वे आर्थिक साझेदारियों के विभिन्न स्वरूपों को दर्शाते हैं। वियतनाम के व्यापार समझौते मुख्य रूप से विकसित अर्थव्यवस्थाओं के साथ हो रहे थे, जहां आर्थिक लाभ और वृद्धि के व्यापक अवसर विद्यमान हों। दूसरी ओर भारत का जोर अन्य उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं के साथ अनुबंधों पर केंद्रित था। इसमें भू-राजनीतिक रणनीति, भारत से होने वाले निर्यात की प्रकृति और संभावित विकसित देशों के नियामकीय परिदृश्य जैसे पहलू प्रभावी थे।

विकासशील देशों के साथ ऐसे समझौतों से क्षेत्रीय एकजुटता और साझा वृद्धि को तो बढ़ावा मिल सकता है, लेकिन स्थापित बाजारों में प्रवेश के मोर्चे पर कायम चुनौतियां भी रेखांकित होती हैं, जहां अमूमन जटिल व्यापारिक बाधाएं और प्रतिस्पर्धा का सामना करना होता है। इस दौरान भारत ने अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका और एशियाई देशों के साथ आरटीए पर बात आगे बढ़ाई। आंकड़ों के अनुसार इनमें से कई आरटीए पर बात 2007 से 2011 में संप्रग सरकार के दौरान शुरू हुई थी। उन समझौतों में लाभ का संतुलन भारत के व्यापारिक साझेदारों के पक्ष में झुका हुआ था। इससे इन देशों को भारत के बड़े बाजार में निर्यात के अवसर मिले, जबकि भारत के साथ ऐसा नहीं हुआ। यानी लाभ का पलड़ा संतुलित नहीं था।

मौजूदा सरकार ने इस स्थिति का संज्ञान लिया और व्यापार समझौतों में एक अलग एवं व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाया। वर्ष 2020 के बाद भारत कई विकसित देशों के साथ आरटीए और मुक्त व्यापार समझौते यानी एफटीए कर चुका है। कई समझौतों पर वार्ता जारी है। आस्ट्रेलिया के साथ हुआ व्यापार समझौता इसकी एक बड़ी मिसाल है। भारत ने करीब दशक भर बाद किसी विकसित देश के साथ ऐसा समझौता किया। इसमें वस्तु व्यापार, सेवा व्यापार को बढ़ावा देने सहित व्यापार में आने वाली तकनीकी बाधाओं को दूर करने की दिशा में काम किया गया। इसी तरह संयुक्त अरब अमीरात यानी यूएई के साथ व्यापक आर्थिक साझेदारी समझौता हुआ। वर्ष 2022 में हुए इस समझौते का लक्ष्य पांच वर्षों के भीतर द्विपक्षीय वस्तु व्यापार को बढ़ाकर 100 अरब डालर तक करने का है, जिसे वर्ष 2030 तक 250 अरब डालर करने का लक्ष्य है। इससे विभिन्न क्षेत्रों में व्यापक स्तर पर रोजगार सृजन की उम्मीदें हैं।

इस समय भारत ब्रिटेन के अलावा इजरायल और खाड़ी सहयोग परिषद के देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौतों की संभावनाएं तलाश रहा है। ये वार्ताएं और समझौते एक व्यापक रणनीति का हिस्सा हैं, जिसमें दुनिया की विकसित एवं विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के साथ सहभागिता बढ़ाकर भारत के आर्थिक एवं रणनीतिक हितों को पोषित करना है। ये भारत की व्यापारिक रणनीति में एक बड़े परिवर्तन का प्रमाण है, जिसमें व्यापार घाटे को घटाने और आर्थिक सहयोग को बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है। इन समझौतों के बहुआयामी लाभ देखने को मिलेंगे। इनसे व्यापार में तेजी, विदेशी निवेश में बढ़ोतरी, रोजगार सृजन के स्तर पर बेहतर स्थितियां बनेंगी। इसके साथ ही वैश्विक व्यापार नेटवर्क पर भारत की पकड़ भी मजबूत होगी।

(देवराय प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के प्रमुख और सिन्हा परिषद में ओएसडी-अनुसंधान हैं)