गिरीश्वर मिश्र। कोरोना वायरस जनित महामारी कोविड-19 ने मानवता के अस्तित्व को झकझोरते हुए प्रगति-पथ पर तेजी से चल रहे मनुष्य को इस पर विचार करने को विवश कर दिया है कि आखिर उसकी विकास यात्र कितनी सुगम है? इस आकस्मिक आपदा का मुकाबला करने के लिए कोई देश पूरी तरह तैयार नहीं था। आज सभी भविष्य को लेकर आशंकित हैं। इस अति संक्रामक और प्राणघातक विषाणु ने वैश्विक स्तर पर व्यापार-व्यवसाय को बुरी तरह प्रभावित किया है। एक ओर इसने विभिन्न देशों के बीच के आर्थिक-राजनीतिक समीकरणों को फिर से परिभाषित करने को विवश किया है तो दूसरी ओर जीवन की लय को छिन्न-भिन्न भी कर दिया है।

चूंकि संक्रमित व्यक्ति के साथ किसी भी तरह संपर्क में आने वाला व्यक्ति दूसरों के लिए संक्रमण का वाहक बन जाता है इसलिए संक्रमण का क्रम अबाध रूप से आगे बढ़ता जाता है। दुर्भाग्य से इस रोग की सर्दी, जुकाम और बुखार जैसे सामान्य लक्षणों के साथ साम्य इतना अधिक है कि इसका पता चलना भी सरल नहीं है। एक समस्या यह भी है कि लोग इसे प्रकट करने से भी बच रहे हैं। अब तो ऐसे रोगी भी सामने आ रहे हैं जिनमें उक्त सामान्य लक्षण भी नहीं दिख रहे। हालांकि समय पर उचित उपचार पाकर संक्रमित लोग स्वस्थ होकर घर भी लौट रहे हैं।

महामारी बनकर सामने आए खतरनाक रोग कोविड-19 के स्पष्ट उपचार की कोई निश्चित औषधि अभी तक उपलब्ध नहीं हो सकी है। चिकित्सा जगत में इसे लेकर देश-विदेश में तीव्र गति से अनुसंधान जारी है, लेकिन व्यवस्थित उपचार और टीके की खोज में अभी समय लगेगा। किसी टीके या सुनिश्चित दवा के अभाव में संक्रमण को बढ़ने से रोकने के लिए लोगों के बीच संपर्क पर रोक ही एकमात्र उपाय है। इसे ही ध्यान में रखकर पूरे देश में लॉकडाउन का निर्णय लिया गया।

इसके चलते करीब-करीब सब कुछ ठप हो गया और दैनिक जीवन पर बुरा असर पड़ा। लॉकडाउन करने का निर्णय कठिन था, फिर भी जीवन रक्षा के लिए और कोई उपाय नहीं था। इसलिए कठिनाइयों के बावजूद सबने इसका स्वागत किया और इस प्रयास के अच्छे परिणाम भी मिले, परंतु एक-दूसरे से शारीरिक दूरी बरतने के निर्देश का ठीक से पालन न करने की स्थितियां कई जगह दिखती रहीं। अभी भी दिख रही हैं। इसी कारण लॉकडाउन को बढ़ाने और अधिक कोरोना मरीजों वाले इलाकों में पहले से ज्यादा सख्ती बरतने का फैसला लेना पड़ा।

नागरिक जीवन के सामने उठने वाली बहुत सी समस्याओं के लिए सरकार की ओर से यथासंभव प्रयास किया जा रहा है, लेकिन वैकल्पिक व्यवस्था लागू करना आसान नहीं। कोरोना के खिलाफ मानवता की यह जंग अभूतपूर्व है। आज के युग में साप्ताहिक अवकाश या किसी खास प्रयोजन पर कुछ दिनों का अवकाश लेकर लोगों को घर पर रुकने का अभ्यास है, अन्यथा नौकरी या व्यवसाय के लिए तय समय पर घर से बाहर जाना और लौटना सामान्य दिनचर्या होती है। इस पर विराम लग गया है और लगभग सभी अपने-अपने घरों में रहने को बाध्य हैं। संक्रमण का खतरा इतना अधिक है कि कहा नहीं जा सकता कि कब कौन उसकी चपेट में आ जाए?

कोरोना वायरस से खौफ के साये में जीवन बिताना आसान नहीं है। यह जीवनशैली नई है और इसके फलस्वरूप आ रहा अप्रत्याशित बदलाव समाज के सभी वर्गो के लोगों के जीवन में व्यतिक्रम ला रहा है। विभिन्न आयु वर्गो के लोगों को अपने अभ्यस्त जीवन और सुपरिचित भूमिकाओं को नए ढंग से परिभाषित करने और आवश्यकतानुसार नए ढंग से नियोजित करने की जरूरत पड़ रही है। अनिश्चय के इस दौर में शारीरिक दूरी का अनुभव बहुतों के लिए चिंता, थकान, तनाव को बढ़ाने वाला साबित हो रहा है। कुछ लोग तो अवसाद का शिकार हो रहे हैं। लोगों में भावनात्मक उलझनों के साथ असुरक्षा का भाव भी बढ़ रहा है। खान-पान की गड़बड़ और नींद में व्यवधान की शिकायतें भी मिल रही हैं। हालांकि हर व्यक्ति इस अकस्मात आई परिस्थिति के प्रति अलग-अलग ढंग से प्रतिक्रिया करता दिख रहा है, लेकिन इस कठिन दौर में परिवर्तित जीवन दशाओं को स्वीकार कर जीवन की सार्थकता की तलाश जरूरी है।

इसलिए सभी के लिए भय और चिंता से मुक्त होकर व्यवस्थित जीने का क्रम बनाना जरूरी है। चूंकि माता-पिता बच्चों के लिए आदर्श यानी रोल मॉडल होते हैं अत: बच्चों से बातचीत करने के लिए इस अवसर का उपयोग किया जाना चाहिए। सोशल मीडिया पर तैरती सूचनाओं और अफवाहों के समुद्र से बचना और और विश्वसनीय सूचना पर भरोसा करना होगा। घर की साफ-सफाई और निजी स्वच्छता के साथ संतोष और धैर्य से काम लेना होगा। अपनी रक्षा और पड़ोसियों की सहायता की कोशिश भी करनी होगी। इस संक्रमण से बचने और अपनी रक्षा करने के लिए जरूरी है कि संतुलित आहार, नियमित दिन-चर्या, शारीरिक व्यायाम और पहले से चल रही दवा का नियमानुसार सेवन किया जाए ताकि शरीर का प्रतिरक्षा तंत्र सुदृढ़ बना रहे और वायरस को सेंध मारने का अवसर न मिले। मौसम में बदलाव के कारण भी शरीर की व्यवस्था पर ध्यान देना आवश्यक है।

यह समय नए कौशल विकसित कर अपने को समृद्ध करने का भी अवसर दे रहा है, पर इसके लिए जरूरी है कि हम अपने जीवन को विस्तृत करने और धैर्य के साथ इस आपदा से लड़ने को तैयार रहें। एकांत अपनी क्षमताओं को पहचानने, कुछ नया सीखने और सृजनात्मक ढंग से कार्य करने का भी अवसर देता है। यह समझना जरूरी है कि यह समय एक भिन्न किस्म का समय है, न कि खराब समय।

(लेखक दर्शनशास्त्री एवं शिक्षाविद् हैं)