[ राजीव सचान ]: फिलहाल किसी के लिए भी यह कहना कठिन है कि कोरोना कहर थमने के बाद दुनिया कैसी होगी, क्योंकि जहां कुछ चीजें बदलती हुई साफ दिख रही हैं वहीं यह भी दिखाई दे रहा है कि काफी कुछ जस का तस रहने वाला है या बड़ी मुश्किल-मेहनत से बदलने वाला है। बीते दिनों गुटनिरपेक्ष देशों के सम्मेलन को वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि जब दुनिया कोरोना से लड़ने में लगी हुई है तो कुछ आतंकवाद रूपी घातक वायरस फैलाने में लगे हुए हैं। उन्होंने पाकिस्तान का नाम नहीं लिया, लेकिन कोई भी समझ सकता है कि उनका इशारा उसी की ओर था।

कोरोना महामारी से जूझ रहा पाक संघर्ष विराम कर भारत में करा रहा आतंकियों की घुसपैठ

हालांकि दुनिया के अन्य देशों की तरह पाकिस्तान भी कोरोना वायरस से उपजी महामारी कोविड-19 से जूझ रहा है, लेकिन यह भी साफ है कि उसकी प्राथमिकता भारत में आतंकियों की घुसपैठ कराना और संघर्ष विराम का उल्लंघन करना है। इस पर हैरानी नहीं कि पाकिस्तानी शासक और खासकर वहां की सेना और उसकी खुफिया एजेंसी आइएसआइ भारत के खिलाफ अपनी नफरत और निकृष्टता का परिचय देने का कोई मौका नहीं छोड़ती।

कोरोना कहर से निपटने की पहल में दक्षेस क्यों बिम्सटेक क्यों नहीं

हैरानी इस पर है कि जब भारतीय प्रधानमंत्री ने पड़ोसी देशों के साथ मिलकर कोरोना कहर से निपटने की पहल की तो उनके दिमाग में दक्षेस क्यों आया, बिम्सटेक क्यों नहीं? बिम्सटेक में भारत के अलावा बांग्लादेश, भूटान, म्यांमार, नेपाल, श्रीलंका और थाईलैंड शामिल हैं। दक्षेस में म्यांमार और थाईलैंड की जगह अफगानिस्तान और मालदीव के अलावा वे सब देश हैं जो बिम्सटेक में हैं। क्या यह बेहतर नहीं होता कि भारत ने जो पहल दक्षेस के जरिये की वह बिम्सटेक के माध्यम से की जाती और अफगानिस्तान एवं मालदीव के साथ अलग से संपर्क-सहयोग किया जाता-ठीक वैसे ही जैसे अन्य अनेक देशों के साथ किया गया?

इमरान ने दक्षेस बैठक से किनारा कर सभी देशों की बेइज्जती कर भारत के खिलाफ जहर भी उगला

इमरान खान ने दक्षेस बैठक से किनारा कर सभी देशों के शासनाध्यक्षों की बेइज्जती ही नहीं की, बल्कि बाद में भारत के खिलाफ जहर भी उगला। आखिर क्या सोचकर मरणासन्न दक्षेस को संजीवनी दी गई? यदि यह सोचकर कि इस गहन संकट के समय पाकिस्तान पिघल जाएगा और अपनी नफरत एवं नकारात्मकता तज देगा तो इसका मतलब यही है कि भारत बीते तीन दशकों से पाकिस्तान से लगातार बार-बार धोखा खाने के बाद भी जरूरी सबक नहीं सीख सका है और अभी भी इस मुगालते से ग्रस्त है कि एक न एक दिन वह सही रास्ते पर आ जाएगा। यह मृग मरीचिका के अलावा और कुछ नहीं।

भारत के प्रति नफरत ही पाकिस्तान की खुराक है

भारत के प्रति नफरत ही पाकिस्तान की वह खुराक है जिसके बल पर वह जिंदा है। वह भारत के प्रति नफरत की खेती बंद कर देगा तो खाएगा क्या और जिएगा कैसे? नि:संदेह सहायता के आकांक्षी देश की मदद करना भारत का कर्तव्य है, लेकिन अनावश्यक उदारता दिखाने का कोई अर्थ नहीं।

पाक ने सीमा पर और सीमा के अंदर हमले करवाए जिसमें कर्नल-मेजर समेत पांच जवान बलिदान हो गए

भारत ने पाकिस्तान की ओर मदद का हाथ बढ़ाया, बदले में उसने सीमा पर और सीमा के अंदर हमले करवाए। ऐसे ही एक हमले में कर्नल-मेजर समेत पांच जवान बलिदान हुए और दूसरे हमले में सीआरपीएफ के तीन जवान। अब फिर से पाकिस्तान को सबक सिखाने की बातें हो रही हैं। क्या यह अच्छा नहीं होता कि दक्षेस की बैठक आहूत करते समय भी यह याद रहता कि पाक को निर्णायक सबक सिखाना शेष है और उस पर यकीन करने का मतलब है अपनी पीठ उसके खंजर के सामने करना?

गुट निरपेक्ष देशों के सम्मेलन में पीएम मोदी ने नफरत के वायरस का जिक्र किया

गुट निरपेक्ष देशों के सम्मेलन में प्रधानमंत्री ने नफरत के वायरस का भी जिक्र किया जिसे फर्जी खबरों के जरिये फैलाया जा रहा है। यह एक हकीकत है, लेकिन प्रश्न यह है कि फर्जी खबरों के जरिये नफरत फैलाने वालों के खिलाफ किया क्या जा रहा है? क्या यह सच नहीं कि सोशल मीडिया के विभिन्न माध्यम फर्जी खबरों का सबसे बड़ा अड्डा हैं। यहां फर्जी खबरें और उनके जरिये नफरत फैलाने वाले न केवल संरक्षित हैं, बल्कि नीले निशान से सत्यापित होकर सुशोभित भी हैं।

सरकार को नफरत फैलाने वाले तत्वों के खिलाफ सख्त कदम उठाने चाहिए

आखिर सरकार ट्विटर पर सक्रिय उन भीषण नफरती तत्वों के खिलाफ क्या कर पाई जिन्होंने मुरादाबाद में डॉक्टरों और पुलिस पर हमले को जायज ठहराने की हिमाकत की? सच्ची बात तो यह है कि सरकार उन ऑनलाइन समाचार माध्यमों के खिलाफ भी असहाय-निरुपाय सी दिखती है जो फर्जी, अधकचरी और अपुष्ट खबरों के प्रसार में लिप्त हैं। इनमें कई तो ऐसे हैं जो कथित तौर पर तथ्यों की पड़ताल करते हैं, लेकिन उनका मूल काम तथ्यों से खिलवाड़ करना और उन्हेंं तोड़ मरोड़कर पेश करना है। ये इतने निरंकुश और निर्लज्ज हैं कि उन आतंकियों को कथित आतंकी की संज्ञा देने में भी शर्म नहीं करते जिनके कारण कर्नल, मेजर समेत पांच जवान वीरगति को प्राप्त हुए। ऐसे माध्यमों को छद्म लिबरल तत्वों का तो सहयोग-समर्थन प्राप्त है ही, वे नफरती-लंपट तत्व भी उनकी ताकत हैं जो सेक्युलर होने का लबादा ओढ़े रहते हैं और देश विरोधी गतिविधियों पर खुशी जताते हैं।

कानून का शासन यदि अपना काम करता दिखाई देता तो इंदौर, मुरादाबाद जैसी घटनाएं नहीं होती

फर्जी खबरों के जरिये नफरत के वायरस को तब तक नहीं रोका जा सकता जब तक हर किस्म के नफरती तत्वों के खिलाफ कठोर कार्रवाई सुनिश्चित नहीं की जाएगी। अभी ऐसा नहीं हो रहा है। कानून का शासन कभी-कभार ही अपना काम करता दिखता है। यदि कानून के शासन को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जा रही होती तो क्या जो कुछ इंदौर, मुरादाबाद में हुआ वह हो पाता?

डॉक्टरों और स्वास्थ्य कर्मियों पर हमला करने वालों को सजा देने के लिए कानून में संशोधन करना पड़ा

यह कानून के शासन में खामी का ही नतीजा है कि डॉक्टरों और स्वास्थ्य कर्मियों के साथ सफाई कर्मियों पर हमला करने वालों को सजा देने के लिए महामारी अधिनियम में संशोधन करना पड़ा। यदि कानून का शासन सही तरह काम कर रहा होता तो क्या यह संभव होता कि दिल्ली पुलिस तब्लीगी जमात वालों को निजामुद्दीन स्थित मरकज खाली करने के लिए चेतावनी देने तक सीमित रहती? यदि शाहीन बाग में सौ दिन तक कुछ लोग सड़क पर कब्जा किए बैठे रहे और नफरत भी उगलते रहे तो कानून के शासन की कमजोरी के कारण ही।

( लेखक दैनिक जागरण में एसोसिएट एडीटर हैं )