[जीएन वाजपेयी]। आयुष्मान भारत योजना के सौ दिन पूरे हो चुके हैं। इस योजना का उद्देश्य प्रत्येक गरीब परिवार को पांच लाख रुपये का स्वास्थ्य बीमा कवर उपलब्ध कराना है। इस योजना से आठ लाख से ज्यादा लोग लाभ उठा चुके हैं। इस योजना पर अमल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से लालकिले की प्राचीर से किए गए एक और वादे का पूरा होना है। इस योजना से गरीबों के लाभान्वित होने की खबरें जिस तरह आ रही हैं उससे यही संकेत मिलता है कि योजना सही दिशा में आगे बढ़ रही है। सामाजिक सुरक्षा का विषय विशेषकर वंचित तबकों के लिए ऐसी सुविधा एक लंबे अर्से से चर्चा का विषय रही हैं। विभिन्न कालखंडों में सत्ता की कमान संभाल चुकीं सरकारों ने इस मकसद के लिए जीवन बीमा निगम, पेंशन और हेल्थकेयर के मोर्चे पर तमाम योजनाओं की सौगात पेश की।

मोदी सरकार ने इस मामले में अलग ही रणनीति अपनाई। उसने इन सभी योजनाओं को जोड़ने या मामूली फेरबदल कर नए रूप-स्वरूप में पेश करने के बजाय वंचित वर्ग के लिए प्रत्येक क्षेत्र में एक ध्वजवाहक योजना पर काम किया। इनमें स्वास्थ्य, आवास, बीमा, पेंशन और बैंकिंग के मोर्चे पर ऐसी सेवाओं का नाम लिया जा सकता है जो विशेष रूप से गरीबों को ध्यान में रखकर ही बनाई गई हैं। इनमें पूरा जोर इसी बात पर है कि एक मिशन के तौर पर योजनाओं को क्रियान्वित कर उनके लाभ को लक्षित आबादी तक पहुंचाया जाए। सरकार की इस कवायद को सामाजिक बेहतरी और आर्थिक लाभ के दोहरे नजरिये से देखना होगा। जहां इनमें वंचित वर्ग को राहत देने के साथ आर्थिक दुश्वारियों से उबारने की क्षमता है वहीं श्रम की उत्पादकता में सुधार और आर्थिक वृद्धि को धार देने की कूवत भी है।

बीमारी में एक तो इलाज का अभाव और ऊपर से आर्थिक बोझ गरीबों पर दोहरी चोट करता है जिससे श्रम की उत्पादकता पर भारी दबाव पड़ता है। इस मामले में देखा जाए तो भारत की उत्पादकता कई उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं के मुकाबले कमतर ही है। ऐसी योजनाओं के कारण आर्थिक वृद्धि के साथ ही रोजगार सृजन के मोर्चे पर नए अवसरों की संभावनाएं बनेंगी। बीमारी से लेकर जीवन-मरण के मसले इंसानी जिंदगी के अहम हिस्से हैं। बहुसंख्यक भारतीय दो कमियों के शिकार हैं। एक तो उपचार के लिए उनके पास वित्तीय संसाधनों का अभाव है। दूसरा अच्छी स्वास्थ्य सेवाओं की कमी भी सालती है। ऐसे में किसी गरीब परिवार के लिए बीमारी के इलाज में सालाना पांच लाख रुपये तक के इलाज की सुविधा एक बड़ी सौगात है।

यह संबंधित व्यक्ति के परिवार को न केवल आर्थिक वज्रपात से बचाएगी, बल्कि उसके लिए मुसीबत में एक बड़े सहारे का काम करेगी। इस स्थिति में स्वास्थ्य सेवाओं के स्तर पर भारी मांग पैदा होगी। एकाएक आठ करोड़ परिवारों की ओर से स्वास्थ्य सेवाओं की मांग की जाएगी। इस मांग को पूरा करने के लिए अधिक अस्पतालों, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों, डॉक्टरों, नर्सों, प्रशासनिक कर्मचारियों, दवा निर्माताओं और दवा वितरकों आदि की जरूरत पड़ेगी। यह कहा जा सकता है कि भारत में ऐसी मांग हमेशा रही है, लेकिन करोड़ों गरीब परिवारों के लिए इन सेवाओं के उपभोग की क्षमता अब कहीं जाकर विकसित की जा रही है।

हेल्थकेयर यानी स्वास्थ्य सेवाओं का उद्योग बड़े पैमाने पर रोजगार का माध्यम है। इनमें डॉक्टरों से लेकर रक्त के नमूने लेने वाले, घरेलू स्वास्थ्य सहायक और साइकोथेरेपिस्ट से लेकर तमाम तरह की कड़ियां जुड़ी होती हैं। आम समझ के अनुसार माना जाता है कि अस्पताल में एक बेड के साथ 10 स्वास्थ्यकर्मियों की आवश्यकता होती है। देश भर में इस योजना के विस्तार के साथ ही अस्पतालों की जरूरत भी कई गुना बढ़ती जाएगी। एक मोटे अनुमान के अनुसार इस योजना को सिरे चढ़ाने के लिए औसतन 100 बेड वाले 20,000 से अधिक अस्पताल बनाने होंगे। इसे अगर 10 से गुणा करें तो इन नए बनने वालों अस्पतालों से करीब 20 लाख नौकरियां सृजित होंगी। दवाओं और अन्य स्वास्थ्य सेवा उत्पादों की भी भारी मांग पैदा होगी। इससे व्यापक स्तर के भौतिक एवं सामाजिक बुनियादी ढांचे का भी निर्माण होगा।

हेल्थकेयर एक सार्वजनिक-निजी उद्यम है। यहां सरकारी वित्तीय संसाधनों से चलने वाले अस्पताल भी हैं तो निजी क्षेत्र के अस्पताल भी हैं। ऐसे में बेहतर यह होगा कि अगले 5-10 वर्षों में इस क्षेत्र में विभिन्न वस्तुओं एवं सेवाओं के लिए उत्पन्न होने वाली मांग का सही अनुमान लगाया जाए ताकि उसी हिसाब से इसमें निवेश की राह आसान बनाई जा सके। अस्पताल एवं स्वास्थ्य सेवा संस्थानों के अलावा इसके माध्यम से दवा कंपनियों, फार्मेसियों और पैथोलॉजी लैब इत्यादि में भी रोजगार के तमाम अवसर सृजित होने की भरपूर संभावनाएं हैं। अगर इस योजना को वर्तमान स्वरूप में ही सही तरीके से आगे बढ़ाया जाता है तो अगले पांच वर्षों में इसके माध्यम से पचास लाख से कम नौकरियां सृजित नहीं होंगी जो काफी बड़ा आंकड़ा है।

एक ऐसे दौर में जब रोजगार सृजन सबसे बड़ी चिंता के रूप में उभर रहा है तब इस योजना को आगे बढ़ाना बहुत उपयोगी होगा। हालांकि इसके लिए भारत सरकार, राज्य सरकारों और निजी क्षेत्र को अपने निवेश के गणित को नए सिरे से साधना होगा। कोई भी योजना उपलब्ध संसाधनों और मांग को ध्यान में रखकर ही बनानी होगी। इसके चार हिस्सों पर विशेष रूप से ध्यान देना होगा। एक तो हेल्थकेयर सुविधाएं, दूसरा मानव संसाधन, तीसरा सुविधाओं का संचालन जिसमें उपचार के बाद की स्थिति भी शामिल है और चौथा पहलू वित्तीय संसाधनों का है। इस योजना में नागरिकों, स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं, दवा निर्माताओं, मानव संसाधन, बीमा कंपनियों और निवेशकों जैसे सभी अंशभागियों का भी ख्याल रखा जाना चाहिए। साथ ही साथ सार्वजनिक-निजी भागीदारी को प्रोत्साहन देने के लिए भी समग्र रणनीतियां बनानी होंगी। स्वास्थ्य सेवाओं के लिए मांग हमेशा से रही है, लेकिन पैसों की किल्लत से उनका लाभ उठाने की क्षमता का अभाव रहा है। यह योजना इस खाई को पाटने के साथ ही हेल्थकेयर सेवाओं को एक नया क्षितिज देने की क्षमता रखती है।

यह अनुमान लगाना आसान है कि इतनी बड़ी आबादी और बढ़ती जीवन प्रत्याशा के दम पर हेल्थकेयर में भारत के शीर्ष पांच उद्योगों और रोजगार प्रदाताओं में शामिल होने की भरपूर संभावनाएं हैं। यहां तक कि अगर सरकार अपने खजाने से इस योजना के लिए और अधिक आवंटन करती है तो कई स्तरों पर उसके फायदे देखने को मिलेंगे। इससे जहां लोगों में आत्मविश्वास बढ़ेगा वहीं रोजगार के अवसरों में वृद्धि होगी और अंतत: इसका फायदा आर्थिक वृद्धि के रूप में भी नजर आएगा।

(लेखक सेबी और एलआइसी के पूर्व

चेयरमैन हैं)