बंगाल में बढ़ती चुनावी तपिश के बीच तृणमूल के चुनावी रणनीतिकार पीके की प्रतिष्ठा दांव पर
Bengal Vidhan Sabha Chunav 2021 बंगाल का चुनाव अंतिम चरण की ओर बढ़ रहा है। ऐसे में एक चुनावी रणनीतिकार के रूप में पीके की प्रतिष्ठा भी दांव पर है जो चुनावों में वोटों की ठेकेदारी का दावा करते है।
डॉ. चंदन शर्मा। Bengal Vidhan Sabha Chunav 2021 बंगाल में बढ़ती चुनावी तपिश के बीच तृणमूल के चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर के ऑडियो बम की भी गूंज बनी हुई है। सत्ता पक्ष हो या विपक्ष प्रशांत किशोर के ऑडियो बम इसे अपने तरीके से प्रचारित कर एक-दूसरे को घेर रहे हैं। भाजपा की जीत को लेकर कही गई बातों को लेकर पीके सवालों के घेरे में हैं। ऑडियो बम को क्लब हाउस लीक भी बताया जा रहा है। दरअलस क्लब हाउस चैट एक एप है। इस चैट में पीके कुछ पत्रकारों के साथ बंगाल की जमीनी हकीकत और पीएम नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता का जिक्र कर रहे हैं। ऑडियो बम फूटने के बाद भाजपा की ओर से जहां लगातार कहा जा रहा है कि तृणमूल ने हार मान ली है तो वह भी सतत पलटवार कर रही है।
पीके यानी प्रशांत किशोर भी कैसे चुप रहते। उन्होंने कहा, ‘भाजपा की ओर से पूरे चैट को सार्वजनिक नहीं किया गया। भाजपा बंगाल में 100 सीट नहीं जीत पाएगी। यदि भाजपा ने 100 का आंकड़ा पार कर लिया तो चुनावी रणनीतिकार का काम वे छोड़ देंगे।’ प्रशांत ने यह दावा कर भाजपा को नए सिरे से सोचने को विवश कर दिया है और बंगाल के मतदाताओं को भी। चैट में पीके एक पत्रकार के जवाब में कहते हैं, ‘देश में कुछ प्रतिशत ऐसे लोग हैं जिनको मोदी में भगवान दिखते हैं। गलत दिखे, सही दिखे, वह अलग बहस का मुद्दा हो सकता है। बंगाल में ज्यादातर हिंदी भाषी मोदी के समर्थक हैं। हम लोग जो सर्वे कर रहे हैं, उसमें मोदी और ममता दोनों बराबर लोकप्रिय हैं। मोदी लोकप्रिय हैं, इसमें कोई शक नहीं है। बंगाल ने भाजपा का स्वाद चखा नहीं है। लोगों को लग रहा है कि अब तक जो नहीं मिल रहा है, भाजपा आएगी तो वो मिल जाएगा। यहां एंटी इनकंबेंसी भी केंद्र के खिलाफ नहीं है, राज्य सरकार के खिलाफ है।’ ऑडियो में दावा है कि बंगाल में जो ध्रुवीकरण हुआ है, उस कारण करीब एक करोड़ से ज्यादा हिंदी भाषी और दलित समुदाय मोदी के साथ हैं।
थोड़ा पीछे चलें तो वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में बंगाल में भाजपा की बड़ी जीत से ममता बनर्जी सदमे में थीं। बंगाल में मोदी का जादू चल चुका था। भाजपा की सीटों की संख्या दो से बढ़ कर 18 पहुंच गई थी तो ममता की सीटें 34 से घट कर 22 पर अटक गई थीं। इधर प्रशांत किशोर की टीम के लिए नए ग्राहक तैयार करने का यह उपयुक्त समय था। बिहार में उनका कार्यालय बंद हो ही चुका था। ऐसे समय में आइपैक यानी इंडियन पॉलिटिकल एक्शन कमेटी की टीम की मीटिंग ममता बनर्जी और उनके भतीजे अभिषेक बनर्जी के साथ हुई। ममता ने उस समय पीके को उपचुनाव की तीनों सीटों पर जीत दिलाने का लक्ष्य दिया। पीके ने इसे चुनौती के रूप में लिया। खड़गपुर सदर में तृणमूल का जीतना भाजपा के लिए बड़ा झटका था, क्योंकि यह सीट बंगाल भाजपा के अध्यक्ष दिलीप घोष के सांसद बनने से खाली हुई थी। टीएमसी के बिमलेंदु सिन्हा ने करीमपुर से जीत हासिल की। कालियागंज को कांग्रेस का मजबूत गढ़ माना जाता है, जहां टीएमसी प्रत्याशी तपन देब विजयी हुए। धीरे-धीरे टीएमसी की रणनीति पीके की टीम तय करने लगी। इसका दुष्परिणाम भी हुआ। बड़े-बड़े नेता टीएमसी का दामन छोड़ भाजपा के होते चले गए। भाजपा में आए ज्यादातर नेताओं ने खुले तौर पर ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक के बढ़ते कद और पार्टी में पीके के बढ़ते हस्तक्षेप को तृणमूल छोड़ने का कारण बताया है। टीएमसी सूत्रों के मुताबिक कुछ नेताओं के भाजपा में जाने का कारण आर्थिक भी था। टीएमसी का ज्यादातर फंड आइपैक इस्तेमाल करने लगी।
पीके की शैली : आइपैक की टीम एक साथ कई मोर्चे पर काम करती रहती है। जिस प्रोजेक्ट में लग गए, उसमें फुलटाइम फोकस। बंगाल में आइपैक के लोगों के अलावा हिंदी भाषी कैंपेन के नाम से अलग से एक टीम बनाई गई है। खुद पीके इसके कामकाज की समीक्षा करते रहते हैं। इस टीम ने हिंदी भाषियों को आर्किषत करने के लिए पूरे साल दर्जनों छोटे बड़े कैंपेन लांच किए। इसी टीम ने ममता का वायरल भाषण तैयार किया था जिसमें कहा गया कि ठेकुआ भी खाता है, लिटटी भी खाता है। ममता के इसी भाषण में छठ की महिमा से लेकर हिंदी भाषियों के योगदान और सहयोग की बात की गई थी। आइपैक के सर्वे में बंगाल में 110 सीट को आसान माना गया था, जहां ममता के काम पर कैंपेन आदि चला कर दोबारा जीत हासिल की जा सकती थी। इसके लिए हर घर सरकार जैसे कार्यक्रम सरकारी स्तर पर जमीनी स्तर पर चलाए गए। इसके अलावा, करीब 80 सीटें कांटे के टक्कर वाली थी, जहां टिकट काटने के लिए प्रस्ताव दिया गया। इन सबके अलावा भी उन्होंने बहुत सारे तथ्यों का विश्लेषण किया और उसी अनुरूप चुनाव अभियान को आगे बढ़ाया।
हालांकि इतनी कवायद का कितना लाभ ममता को मिलता है, यह तो दो मई का परिणाम ही बताएगा। यह तय है कि टीएमसी की सफलता और विफलता में प्रशांत का भी बहुत कुछ दांव पर लगा है। यह भी सच है कि आइपैक को प्रत्यक्ष तौर पर डायरेक्टर प्रतीक जैन देखते हैं। ऐसे में बंगाल में भाजपा की बड़ी जीत पर प्रशांत अपने आप को कुछ दिनों के लिए इस काम से स्ट्रेटजी के तहत अलग कर लें, तो कोई आश्चर्य नहीं।
[वरीय समाचार संपादक, धनबाद]