हांफता कोलकाता
अगर हम वायु में नाइट्रोजन डाइ आक्साइड व अन्य गैसों पर नियंत्रण रखें तो महानगर की वायु फिर से शुद्ध हो सकती है।
कोलकाता, [ जागरण संवाददाता ] । महानगर की हवा तेजी से जहरीली होती जा रहा है। कोलकाता व हावड़ा जैसे इलाकों में लोग सर्दी, खांसी व सांस की तकलीफ के चपेट में अब ज्यादा आ रहे हैं। इसके लिए कोई महामारी नहीं, आप की सांसों में घुला जहर जिम्मेदार है।
जांच में पता चला है कि महानगर व इसके आस-पास के इलाकों की हवा में नाइट्रोजन डाइ ऑक्साइड की मात्रा तेजी से बढ़ी है। इसकी वजह से आम लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता तेजी से घट रही है। उनके फेफड़े लगातार संक्रमित हो रहे हैं। नतीजा सांस से जुड़ी कई तरह की तकलीफ सामने आ रही है।
पश्चिम बंगाल प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अध्यक्ष कल्याण रुद्र की मानें तो पिछले चार साल में महानगर व इसके आसपास के इलाकों की हवा में नाइट्रोजन डाइ ऑक्साइड की मात्रा तय सीमा से कहीं ऊपर चली गई है। इसके लिए मुख्यत: कोयला दहन व वाहनों से निकलनेवाला धुआं जिम्मेदार है।
विशेषक्षों की मानें तो तेजी से बढ़ती गाड़ियों की संख्या मे स्थिति को और गंभीर बना दिया है। इसके साथ सड़क किनारे बिना किसी परमिट के तेजी से बढ़ रहे होटलों में जलाए जानेवाले लकड़ी व कोयलों ने स्थिति को और खतरनाक बना दिया है।
विशेषज्ञों की मानें तो कोलकाता में वायु प्रदूषण देश के सबसे प्रदूषित शहर दिल्ली से कहीं अधिक उत्सर्जित होता है। हालांकि इसकी भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि यहां प्रदूषण रिकार्ड कम होता है। जहां दिल्ली चारो तरफ से आबादी से घिरी है वहीं बरसात के मौसम में कोलकाता की दक्षिण-पश्चिमी हवा व जाड़ों में उत्तर की तरफ से आनेवाली हवा यहां की अधिकतर वायु प्रदूषण को स्वच्छ कर देता है।
बारिश के मौसम में होनेवाले अधिक बारिश व हवा के अलावा गर्मी में पैदा होनेवाली उष्मा अधिकतर प्रदूषण को नियंत्रण में रखता है। हालांकि यह साल के सात महीने में ही होता है।
पश्चिम बंगाल प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अध्यक्ष रुद्र के अनुसार अगर हम वायु में नाइट्रोजन डाइ आक्साइड व अन्य गैसों पर नियंत्रण रखें तो महानगर की वायु फिर से शुद्ध हो सकती है।
उन्होंने बताया कि वायु प्रदूषण के मुख्य कारकों की पहचान करने का बोर्ड ने फैसला किया है। ताकि यह पता चले कि वायु प्रदूषण के लिए कौन कितना जिम्मेदार है। कारकों का पता लगाने की जिम्मेदारी नेशनल इनवायमेंट इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीच्यूट (निरी) को सौंपी गई है। दो साल के विश्लेषण से पहले संस्थान अपनी कुछ सिफारिशें भी पेश की हैं।
निरी के निदेशक राकेश कुमार की मानें तो कोलकाता को सबसे पहले अपनी जन परिवहन प्रणाली को दुरुस्त करना होगा। दूसरे फुटपाथों को भी अतिक्रमण से मुक्त करना होगा। और तीसरे साइकिल के प्रयोग को बढ़ावा देना होगा। इसके साथ सीएनजी के प्रयोग को बढ़ावा मददगार साबित होगा। हालांकि राज्य के पर्यावरण मंत्री शोभन चटर्जी की मानें तो इसमें समय लगेगा। गेल के सात राज्य सरकार ने करार किया है।
हालांकि इसको पूरा होने में तीन साल का वक्त लगेगा। कोलकाता के मौजूदा हालात चिंताजनक हैं। मेडिकल प्रमाण लगाता साबित कर रहे हैं कि स्थिति खतरनाक स्तर को पार कर रही है। हम लंबे समय से दूषित वायु के दुष्प्रभावों को अनदेखा करते आ रहे हैं।