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पिता के संस्कारों ने दिखाया रास्ता

संवाद सहयोगी, पौड़ी : देश की राजधानी दिल्ली में शिक्षा-दीक्षा और मुंबई में राष्ट्रीय बैंक में प्रबंधन

By Edited By: Published: Sat, 05 Sep 2015 01:04 AM (IST)Updated: Sat, 05 Sep 2015 04:11 AM (IST)
पिता के संस्कारों ने दिखाया रास्ता

संवाद सहयोगी, पौड़ी : देश की राजधानी दिल्ली में शिक्षा-दीक्षा और मुंबई में राष्ट्रीय बैंक में प्रबंधन की नौकरी कर बेहतर आर्थिकी बनाने वाले अक्सर बड़े शहरों में ही रच बस जाते हैं। लेकिन, क्वाली निवासी बीडी कोली ने पिता की सीख का अनुसरण करते हुए अपने पैतृक गांव क्वाली में औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान खोलकर शिक्षा की अलख जलाने की सराहनीय पहल की है।

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विकासखंड पौड़ी की गगवाड़स्यूं पट्टी के अंतर्गत एक दूरस्थ गांव है क्वाली। अधिकांश लोग खेतीबाड़ी व काश्तकारी कर बसर करते हैं। बुनियादी सुविधाएं भी यहां मौजूद नहीं हैं। व्यवस्थाओं ने भले इस क्षेत्र को उपेक्षित किया हो, लेकिन गांव का ही एक सपूत यहां प्राद्यौगिक शिक्षा की अलख जलाने का प्रयास कर रहा है। क्वाली निवासी मंसाराम कोली हालांकि दिल्ली के एक विभाग में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी थे। लेकिन, पहाड़ के गांवों के पिछड़ेपन और सुधार की दिशा में कुछ न कर पाने की बेबशी की उन्हें बड़ी टीस थी। बच्चों को उन्होंने अपनी साम‌र्थ्य के अनुरूप कहीं अधिक पढ़ाया। शहरीकरण की सुख सुविधाओं के बजाय गांवों के लिए कुछ करने की भी नसीहत देते रहे। यह नसीहत उनके बेटे बीडी कोली के दिल पर लगी और आधुनिकता की चकाचौंध छोड़ उन्होंने पैतृक गांव में औद्यौगिक प्रशिक्षण संस्थान खोल कर ठेठ ग्रामीण क्षेत्र में शिक्षा की अलख जलाने का सराहनीय प्रयास किया है। इससे स्थानीय युवाओं को प्रशिक्षण के अवसर भी मिले हैं और पिछड़े क्षेत्र को पहचान भी मिली है। कालेश्वर में स्थापित मंसाराम आइटीआइ के संचालक क्वाली निवासी बीडी कोली ने बताया कि एक वर्ष पूर्व संस्थान की स्थापना हुई। अभी फिलहाल इलेक्ट्रिकल्स का कोर्स कराया जा रहा है।

ग्रामीणों ने भी सराहे प्रयास

गगवाड़स्यूं के सामाजिक कार्यकर्ता व पूर्व जिला पंचायत सदस्य उमाचरण बड़थ्वाल कहते हैं कि बीडी कोली के प्रयास सराहनीय हैं। उनकी जमीनी सोच है। उनकी प्रयासों के भविष्य में बेहतर परिणाम सामने आएंगे। स्थानीय निवासी भारत सिंह व चंद्र मोहन कहते हैं कि गांव में ही बच्चों को प्रशिक्षण के अवसर मिल रहे हैं इससे बेहतर क्या होगा। कई बच्चे श्रीनगर या अन्यत्र प्रशिक्षण को जाने में समर्थ नहीं हैं।

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पिताजी की दी गई सीख के चलते गांवों की स्थितियों को मैंने भी बहुत नजदीकी से समझा। सेवा काल में तो समय नहीं मिला। अब संस्थान का संचालन के साथ बच्चों को कैरियर काउंसिलिंग भी समझाई जाती हैं। जरूरत के अनुरूप अपग्रेड करने की भी योजना है।

बीडी कोली, निवासी क्वाली कालेश्वर, पौड़ी गढ़वाल


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