चंपावत में सजने लगे ढोल, होली की तैयारी शुरू
अपने अलग अंदाज के लिए मशहूर काली कुमाऊं की खड़ी होली की अपनी विशेषता है। जिसके लिए वाद्य यंत्रों को ठीक करने का कार्य इन दिनों जारी है।
चंपावत, [जेएनएन]: जिले में बैठकी होली की धूम के बीच खड़ी होली की तैयारियां शुरु हो गई हैं। अपने अलग अंदाज के लिए मशहूर काली कुमाऊं की खड़ी होली की अपनी विशेषता है। जिसके लिए वाद्य यंत्रों को ठीक करने का कार्य इन दिनों जारी है। विशेष रुप से कारीगर ढोल मुड़ाई में जुटे हुए हैं। 8 मार्च से खड़ी होली शुरू होगी।
चम्पावत चंद राजाओं की ऐतिहासिक राजधानी रही। यहां होली का अंदाज उसी राजशाही का है जो उस दौर में थी। बैठकी होली जहां कई सदियों तक राजाओं और उनके सहयोगियों के घरानों तक सीमित रही। वहीं खड़ी होली शुरुआत से ही आम जनमानस के जनमन में बसी रही।
मुख्यालय में राजबुंगा किले से ही होली का आगाज और समापन होता था। चाराल क्षेत्र के दर्जनों गांवों की होली पूर्णिमा के रोज राजदरबार में पहुंचती थी और होल्यार होली गायन करते थे। इस परंपरा को उस समय चौबे का नाम दिया जाता था। लेकिन पिछले एक दशक से यह परंपरा शराब के बढ़ते प्रचलन के कारण सिमटती जा रही है। लेकिन फिर भी मल्ली हाट, तल्ली हाट और ढकना के लोग अभी भी राजबुंगा के किले में होली गायन करने आते हैं।
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खड़ी होली में साज बाज का खासा महत्व है। जिसमें होली ढोल की विशेष प्रमुखता रहती है। इसके अलावा झांझन का प्रयोग होता है। अधिकांश ग्राम पंचायतों में होली कमेटियों के माध्यम से घर-घर जाकर होल्यार खड़ी होली का गायन करते हैं। मंदिर या किसी एक व्यक्ति के घर में एकादशी के रोज चीर आरोहण करने के बाद खड़ी होली का गायन शुरु हो जाता है।
बैठकी होली की धूम के बीच इन दिनों अब खड़ी होली के लिए ढोल को दुरूस्त करने का कार्य शुरू हो गया है। चम्पावत में कारीगर इस कार्य में जुटे हैं। इस बार 8 मार्च को चीर आरोहण व रंगभरी एकादशी से 13 मार्च टीके तक खड़ी होली का आयोजन होगा।
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