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Sant Kabir Nagar Lok Sabha: यूपी की इस लोकसभा सीट पर हुनरमंद हाथ हो गए हैं खाली, यहां तीन दशक पहले था हल्दी व सोंठ का स्वर्णिम काल

बर्तन उद्योग को मुख्य धारा में लाने के लिए एक जिला एक उत्पाद (ओडीओपी) योजना में इसे शामिल किया गया लेकिन इस उद्योग को अपेक्षित गति नहीं मिल सकी। जिम्मेदारों की उदासीनता बाजार पर भारी पड़ रही है। अपने क्षेत्र में ही लोगों को काम देना है तो यहां के परंपरागत उद्योगों को पूरी तरह से क्रियाशील करना होगा। परंपरागत उद्योगों की स्थिति पर संतकबीरनगर से अतुल मिश्र की रिपोर्ट...

By Jagran News Edited By: Vivek Shukla Published: Tue, 23 Apr 2024 12:45 PM (IST)Updated: Tue, 23 Apr 2024 12:45 PM (IST)
हल्दी, सोंठ के कारोबार में एक दिन के मुनाफे से कराया गया पोखरे का सुंदरीकरण। फाइल फोटो

संतकबीर नगर Sant Kabir Nagar Lok sabha Seat का मेंहदावल क्षेत्र कभी हल्दी, सोंठ व बर्तन उद्योग के चलते पूरे देश में प्रसिद्ध था। पिछले तीन दशक में धीरे-धीरे लगभग सभी उद्योग मृतप्राय हो गए। इन उद्योगों में दोबारा सांस फूंकने को लेकर गंभीर प्रयास देखने को नहीं मिले। जिसके कारण हुनरमंद हाथ भी खाली होते गए। लोगों को दूसरे प्रदेशों में रोजगार के सिलसिले में खाक छाननी पड़ रही है।

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चार दशक पूर्व तक इस जनपद में व्यापारिक गतिविधियां काफी बेहतर थीं। छोटे-छोटे लघु एवं कुटीर उद्योग गांव-गांव तक फैले थे। हल्दी व सोंठ का कारोबार, बर्तन उद्योग और हथकरघा का यह जनपद केंद्र था। एक लाख से अधिक की आबादी इन उद्योगों से प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष तौर पर जुड़ी थी।

काफी लोगों को इससे रोजगार मिलता था। तीन दशक पूर्व हथकरघा की जगह पावरलूम ने ले ली। बिजली की समस्या के कारण इस उद्योग पर भी बुरी नजर लग गई। गिने चुने लोग ही अब पावरलूम चलाते हैं। इस कारोबार से जुड़े लोग दूसरे धंधे में रम गए या तो रोजगार के सिलसिले में पलायन कर गए।

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इसके साथ ही हल्दी व सोंठ का स्वर्णिम काल भी तीन दशक पूर्व पूरी तरह से समाप्त हो गया। जनपद में हल्दी व सोंठ का कारोबार कहीं दिखाई नहीं देता है। बखिरा बर्तन उद्योग के लिए समूचे भारत में प्रसिद्ध था। धीरे-धीरे बर्तन के कारोबार पर भी नकारात्मक असर पड़ा।

पांच वर्ष पूर्व बर्तन उद्योग को दोबारा जीवित करने के लिए इसे ओडीओपी में शामिल किया गया। बखिरा व मेंहदावल में क्लस्टर योजना के तहत इसे चयनित किया गया है। पहले से कुछ बेहतर स्थिति जरूर दिखाई देती है लेकिन अभी भी बर्तन उद्योग गति नहीं पकड़ सकी है।

हल्दी, सोंठ को प्रोत्साहन मिलने से फैलेगी सुगंध

चार दशक पूर्व तक मेंहदावल के तमाम व्यापारी हल्दी व सोंठ का कारोबार करते थे। हल्दी व सोंठ के कारोबार से गांवों से काफी लोग जुड़े हुए थे। नेपाल के बुटवल से बैलगाड़ी के जरिए हल्दी व सोंठ लाया जाता था। कई राज्यों में इसकी बिक्री होती थी।

मेंहदावल के एक व्यापारी ने हल्दी सोंठ की एक दिन की कमाई से कस्बे में पक्का पोखरा और बड़ा मंदिर का निर्माण कराया था। इसी बात से हल्दी व सोंठ के स्वर्णिम काल का अंदाजा लगाया जा सकता है। हल्दी का उत्पादन भी बड़ी मात्रा में मेंहदावल में होता था।

सरकारों की उदासीनता के कारण हल्दी सोंठ कारोबार दो दशक पूर्व पूरी तरह से मृतप्राय हो गया। इसको जिंदा करने को लेकर कोई गंभीर प्रयास दिखाई नहीं दिए।

हथकरघा व पावरलूम उद्योग भी पड़ा मंद, कम हुए कारोबारी

मेंहदावल के ब्रह्मचारी व बखिरा क्षेत्र में एक हजार से अधिक परिवार 1970 के दशक में हथकरघा उद्योग से जुड़े हुए थे। 1990 के दशक में हथकरघा छोड़कर ज्यादातर लोग पावरलूम उद्योग से जुड़ गए। पावरलूम उद्योग ने तेजी से गति पकड़ी।

बिजली से चलने वाली मशीन ज्यादा कपड़े का उत्पादन करने लगी। यहां के बने सूती वस्त्र कई राज्यों व जनपदों में बिक्री के लिए जाते थे। लेकिन वर्ष 2010 तक आधे से ज्यादा पावरलूम उद्योग भी ठप पड़ गए।

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बुनकरों की सभी मांगें पूरी नहीं हो सकीं। सब्सिडी योजना की स्थिति भी अच्छी नहीं रही। जिसके कारण यह उद्योग भी मंद पड़ने लगा। अब इक्का दुक्का स्थान पर ही पावरलूम चलता है। काफी कम संख्या में परिवार इस उद्योग से जुड़े रह गए हैं। हालांकि सरकार की ओर से पिछले कुछ समय से इस सेक्टर के लिए कई योजनाएं शुरू की गई हैं। भविष्य में इसका असर परिलक्षित हो सकता है।

बर्तन उद्योग पर विशेष ध्यान देने की जरूरत

मेंहदावल व बखिरा में बनने वाले फूल व पीतल के बर्तन प्रसिद्ध हैं। इस व्यापार पर भी नकारात्मक असर पड़ा। जिसके कारण बर्तन की चमक भी फीकी पड़ गई। अब इसे एक जिला एक उत्पाद के रूप में चयनित किया गया है। मेंहदावल में इसकी परियोजना भी स्थापित की गई है।

समय-समय पर जिला प्रशासन यहां के बने बर्तनों की प्रदर्शनी भी करता है। लेकिन अभी भी बखिरा व मेंहदावल का बर्तन उद्योग पूरी तरह से चमक नहीं बिखेर सका है। इस उद्योग पर विशेष ध्यान देने की दरकार है। अगर बखिरा का बर्तन उद्योग दोबारा पहले की तरह जीवंत हो उठे तो हजारों लोगों को इससे रोजगार मिल सकता है। लोगों की आय भी बढ़ सकती है।

पूरे देश में प्रसिद्ध था खलीलाबाद का बरदहिया बाजार

खलीलाबाद का बरदहिया बाजार पूरे देश में प्रसिद्ध था। नेपाल, पश्चिम बंगाल, बिहार, उड़ीसा सहित कई राज्यों के व्यापारी यहां का बना सूती कपड़ा खरीदने बाजार में आते थे। सैकड़ों की संख्या में बैलगाड़ी पर कपड़े लादकर बाजार पहुंच जाते थे। बाजार के दिन मेंहदावल खलीलाबाद मार्ग जाम रहता था।

धीरे-धीरे उत्पाद पर लागत ज्यादा पड़ने के कारण बाजार पर बुरा असर पड़ा। जिसके कारण बरदहिया बाजार की चमक भी फीकी पड़ने लगी। कपड़ा उद्योग पर बुरा असर पड़ा है। अब रेडीमेड कपड़ों की बिक्री यहां पर ज्यादा हो रही है।

मेंहदावल बर्तन उद्योग व बुनकर नेता जहीरूद्दीन अंसारी ने कहा कि प्रदेश में कताई मिलों के बंद होने से सूत काफी महंगा हो गया। दक्षिण के राज्यों का सूत काफी महंगा होता था, जिससे पावरलूम उद्योग पर बुरा प्रभाव पड़ा। सरकार को बुनकरों की समस्याओं का निस्तारण करना चाहिए।

बखिरा बर्तन कारोबारी अनूप कसेरा बर्तन उद्योग की तरफ ध्यान नहीं देने से कारोबार मृतप्राय हो गया। बर्तन उद्योग केवल कागजों में हैं। गंभीरता से इसके लिए प्रयास की जरूरत है, तभी बर्तन उद्योग जीवित हो सकेगा।


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