मुस्लिम बेटी को श्लोक कंठस्थ
मुरादाबाद : संस्कृत भाषा में एक मुस्लिम बेटी ने पीएचडी करके साप्रदायिक सौहार्द की मिसाल कायम की है।
मुरादाबाद : संस्कृत भाषा में एक मुस्लिम बेटी ने पीएचडी करके साप्रदायिक सौहार्द की मिसाल कायम की है। संस्कृत भाषा को धर्म विशेष से जोड़ा जाता है लेकिन मुस्लिम बेटी ने इस मिथक को तोड़ा है।
चक्कर की मिलक निवासी डॉ. शीनुल इस्लाम मलिक ने बीए में संस्कृत विषय का चयन किया। हालांकि 12वीं तक उन्होंने संस्कृत नहीं पढ़ी थी। गोकुलदास ¨हदू गर्ल्स कालेज से उन्होंने संस्कृत विषय से बीए करने की ठानी साथ ही 10वीं और 12वीं में अतिरिक्त विषय के रूप में संस्कृत भाषा की परीक्षा प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण की। शीनुल को कइयों श्लोक पूरी तरह कंठस्थ हैं। किसी भी मंच पर संस्कृत के श्लोक पढ़कर इस भाषा का मान बढ़ाने से नहीं चूकती हैं। संस्कृत के प्रति मोह उनका इस कदर है कि वह अब गोकुलदास डिग्री कालेज में संस्कृत के अध्यापन में रुचि ले रही हैं।
शिक्षा व व्यवसाय से जुड़े परिवार की बेटी शीनुल के पिता केआइ मलिक अधिवक्ता और चाचा नजमुल मलिक निर्यातक हैं। इस सबसे इतर शीनुल अपनी ही राह पर निकल पड़ी हैं। संस्कृत भाषा में पीएचडी की उपलब्धि के लिए उत्तराखंड के मुख्यमंत्री हरीश रावत ने सितंबर 2016 में उन्हें पुरस्कृत किया था। दुबई में भी वह एक संगोष्ठी में सम्मानित हो चुकी हैं। इसके अलावा शीनुल ने अरबी व उर्दू में भी दक्षता हासिल की है। मौलवी व अदीब कामिल मोअल्लिम की डिग्री भी उनके प्रोफाइल को और चमकदार बना रही है। यही नहीं पत्रकारिता में बेहतरीन अंकों से डिप्लोमा हासिल करने पर तमिलनाडु के तत्कालीन राज्यपाल सुरजीत सिंह बरनाला ने उन्हें गोल्ड मेडल से सम्मानित किया था।
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संस्कृत भाषा को सरकार नहीं दे रही तव्वजो
शीनुल मलिक कहती हैं कि उन्होंने संस्कृत विषय को जानबूझकर चुना। वह चाहती थीं कि संस्कृत को किसी धर्म विशेष से न जोड़ा जाए। इस मिथक को तोड़ना ही उनका मकसद था। समाज के लोगों ने आपत्तियां भी जताई। उन्होंने उसकी कोई परवाह नहीं की। इस भाषा की दुर्गति इसलिए है कि सरकार इस विषय को रोजगारपरक नहीं किया। संस्कृत के स्थायी शिक्षकों के रिटायर होने के बाद उन पदों को भी समाप्त किया जा रहा है।