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‘राजा’ के गढ़ में ‘स्वामी’ चलेंगे सियासी चाल… राजदरबार की मोहिनी देवी को दे चुके हैं चुनावी मात, रोचक होगी जंग

राष्ट्रीय शोषित समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पूर्व मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य के कुशीनगर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने की घोषणा के बाद सियासी हलचल तेज हो गई है। चुनाव में वे राजा (पडरौना राजदरबार के आरपीएन सिंह जिनको लोग राजा साहब कहते हैं) के गढ़ में वह हर सियासी चाल चलेंगे जो उनको जीत की मंजिल तक ले जा सके।

By Jagran News Edited By: Shivam Yadav Published: Tue, 02 Apr 2024 05:51 PM (IST)Updated: Tue, 02 Apr 2024 05:51 PM (IST)
‘राजा’ के गढ़ में ‘स्वामी’ चलेंगे सियासी चाल… राजदरबार की मोहिनी देवी को दे चुके हैं चुनावी मात।

जागरण संवाददाता, कुशीनगर। राष्ट्रीय शोषित समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पूर्व मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य के कुशीनगर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने की घोषणा के बाद सियासी हलचल तेज हो गई है। चुनाव में वे राजा (पडरौना राजदरबार के आरपीएन सिंह जिनको लोग राजा साहब कहते हैं) के गढ़ में वह हर सियासी चाल चलेंगे जो उनको जीत की मंजिल तक ले जा सके। 

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कयास लगाए जा रहे हैं कि राजा के इस गढ़ को अपना चुनावी किला बना यहीं से लोकसभा की अन्य चार विधानसभा क्षेत्रों रामकोला, खड्डा, हाटा, कुशीनगर को साधने की कोशिश करेंगे। इसका कारण यह माना जा रहा है कि पडरौना राजदरबार से गहरा नाता रखने वाली पडरौना विधानसभा सीट से स्वामी जीत की हैट्रिक लगा चुके हैं। 

राजदरबार की कुंवरानी मोहिनी देवी को भी चुनावी शिकस्त दे चुके हैं। हालांकि, यह सब उतना आसान भी नहीं होगा जितनी चर्चाएं चल रही हैं, क्योंकि पूर्व केंद्रीय गृह राज्यमंत्री व वर्तमान में भाजपा के राज्यसभा सदस्य आरपीएन राजनीति के माहिर खिलाड़ी हैं।

दरअसल, स्वामी प्रसाद मौर्य व आरपीएन के बीच की सियासी जंग किसी से छिपी नहीं है। इसकी शुरुआत 2019 के लोकसभा चुनाव में हुई थी। कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में आरपीएन सिंह मैदान में थे तो स्वामी बसपा से लोकसभा के प्रत्याशी थे। 223954 मत पाकर आरपीएन चुनाव जीते तो 202860 मतों के साथ स्वामी हार गए। जीत-हार के मतों के प्रतिशत का अंतर केवल 1.47 प्रतिशत रहा। 

इस हार का बदला स्वामी प्रसाद मौर्य ने आरपीएन के सांसद चुने जाने के बाद खाली हुई पडरौना विधानसभा सीट पर उनकी माता को पराजित कर ले लिया। इसके बाद इन दोनों के बीच एक सियासी जंग की रेखा ऐसी खिंची की चर्चा का विषय बन गई। 

स्वामी आरपीएन के विरुद्ध खुलकर बयान देते रहे, हालांकि प्रति उत्तर में उस तरह की मुखरता दूसरे पक्ष से कभी नहीं दिखी। 2022 में फाजिलनगर विधानसभा से सपा प्रत्याशी के रूप में मिली हार के बाद एक बार पुन: स्वामी का कुशीनगर लोकसभा से चुनाव लड़ने का एलान सियासी माहौल पूरी तरह से गरम कर दिया है। 

लगभग डेढ़ दशक तक यहां की राजनीति में सक्रिय रहे मौर्य की कुशवाहा बिरादरी पर अच्छी पकड़ मानी जाती है। ऐसे में उनके चुनाव मैदान में होने से राजनीतिक समीकरण बदलेगा। 

राजदरबार के आरपीएन सिंह भाजपा प्रत्याशी के चुनावी रथ के साथ सारथी के रूप में उनके सामने होंगे तो कुशवाहा बिरादरी के ट्रंप कार्ड के साथ स्वामी कुशीनगर की डेढ़ दशक की राजनीति में खड़ा किए अपने राजनीतिक रसूख के साथ मजबूती से चुनावी मैदान में लड़ने की कोशिश करेंगे। ऐसे में चुनावी तस्वीर दिलचस्प हो सकती है।

भाजपा में आरपीएन की इंट्री के बाद बदल चुका है राजनीतिक समीकरण

पडरौना राजघराने को पूर्वांचल में कांग्रेस के एक मजबूत किले के रूप में देखा जाता रहा है। इसकी वजह रही है, क्षेत्र में इस परिवार की पकड़ और पार्टी से मजबूत राजनीतिक संबंध। 1980 में जब इस राजपरिवार ने कांग्रेस का हाथ पकड़ा तो 42 वर्षों तक अन्य दल की ओर नहीं देखा। 

कुंवर रतनजीत प्रताप नारायण सिंह (आरपीएन सिंह) विधानसभा चुनाव से ठीक पहले 2022 में भाजपा में शामिल हुए तो कांग्रेस का यह मजबूत किला उसके हाथों से निकल गया गया। आरपीएन ने पडरौना सीट से 1996, 2002 व 2007 में लगातार जीत दर्ज की। 

आरपीएन के भाजपा में आने के बाद स्वामी प्रसाद मौर्य भाजपा छोड़ सपा में चले गए। इसके बाद से ही यहां का राजनीतिक व जातिगत समीकरण बदल चुका है। अब बदले राजनीतिक समीकरण में स्वाति की चुनावी जंग कितनी मजबूत होगी कुछ कहा नहीं जा सकता।

स्वामी ने शुरू किया पुराने साथियों को सहेजने का कार्य

चर्चा है कि स्वामी प्रसाद मौर्य कुशीनगर में अपने कुछ पुराने साथियों को सहेजना शुरू कर दिए हैं। उनके कुछ सिपहसालार इसमें लगे हैं। फाजिलनगर के रहने वाले सपा के नरेंद्र यादव ने सोशल साइट पर स्वामी का समर्थन किया है और चुनाव में साथ रहने का एलान किया है।


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