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Kannauj Seat: यूं ही अखिलेश ने भतीजे तेज प्रताप यादव का नहीं काटा टिकट, इसके पीछे 50 दिन की सोची-समझी चाल

अखिलेश यादव वर्ष 2000 में कन्नौज में चुनाव लड़ने आए और 2012 तक सांसद रहे। उप चुनाव में पत्नी डिंपल को सीट सौंप दी। 2019 में जब उन्हें हार के रूप में झटका लगा तो इसकी समीक्षा की। उसमें कई पेच मिले जिन्हें दूर किया। पहले तेज प्रताप यादव को टिकट फिर काटने के बाद खुद के नाम की घोषणा भी बीते 50 दिन की सोची-समझी चाल का हिस्सा है।

By Jagran News Edited By: Aysha Sheikh Published: Sat, 27 Apr 2024 09:33 AM (IST)Updated: Sat, 27 Apr 2024 09:44 AM (IST)
Akhilesh Yadav: यूं ही अखिलेश यादव नहीं उतरे कन्नौज सीट से, इसके पीछे 5 साल की सोची समझी रणनीति

अमित कुशवाहा, कन्नौज। इत्र नगरी के चुनावी समर में अखिलेश यादव के उतरने की योजना अचानक नहीं बनी, इसके पीछे पांच साल की रणनीति है। 2019 में डिंपल यादव के लोकसभा चुनाव हारने के बाद से ही वह चुनावी माहौल बनाने में जुट गए थे, भले अमलीजामा अब पहनाया है। पहले तेज प्रताप यादव को टिकट, फिर काटने के बाद खुद के नाम की घोषणा भी बीते 50 दिन की सोची-समझी चाल का हिस्सा है।

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इसकी पुष्टि उन्होंने कहावत ‘हथौड़ा तब मारा जाता है, जब लोहा गर्म हो’ से कर भी दी। कानपुर देहात की विधानसभा सीट रसूलाबाद, बिल्हौर व आसपास पकड़ रखने वाले पूर्व मंत्री शिवकुमार बेरिया को साथ लाना भी इसी रणनीति का एक कदम है। औरैया के बिधूना क्षेत्र में भी ऐसे ही कई नेताओं को हम कदम बनाया, जबकि कन्नौज में रूठे नेताओं को खुले मंच से साथ आने का न्योता दिया और पार्टी संगठन, कार्यकर्ताओं के साथ ही अपने सीधे संपर्क वाले दूतों से नब्ज टटोलते रहे।

2019 में डिंपल की हार से लगा तगड़ा झटका

अखिलेश यादव वर्ष 2000 में कन्नौज में चुनाव लड़ने आए और 2012 तक सांसद रहे। उप चुनाव में पत्नी डिंपल को सीट सौंप दी। 2019 में जब उन्हें हार के रूप में झटका लगा तो इसकी समीक्षा की। उसमें कई पेच मिले, जिन्हें दूर किया। इस बीच भले तालग्राम नगर पंचायत के पूर्व चेयरमैन दिनेश यादव, पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष शिल्पी कटियार के पति संजू कटियार, धर्मेंद्र यादव भाजपा में चले गए पर उन्होंने किसी को मनाया नहीं। नवाब सिंह रूठे हैं पर कोई जुंबिश नहीं की।

गुरसहायगंज क्षेत्र में बेहतर पकड़ रखने वाले पूर्व विधायक ताहिर हुसैन सिद्दीकी को गुरुवार को कार्यालय में बुलाकर संदेश दिया। नामांकन वाले दिन कलीम खान, आकाश शाक्य, बिधूना से सपा विधायक रेखा वर्मा, पूर्व विधायक कलियान सिंह दोहरे, जय कुमार तिवारी, मनोज दीक्षित, गुड्डू सक्सेना, पूर्व मंत्री शिव कुमार बेरिया समेत अलग-अलग वर्ग के नेताओं की जुटान भी नए संकेत देती रही।

अब जनता अखिलेश और सुब्रत के बीच तुलना कर रही है। पिछले पांच साल में सुब्रत के कराए विकास कार्यों, जनता व समर्थकों के लिए काम के साथ उनके व्यवहार पर भी मंथन शुरू है। अखिलेश काफी समय से अलग-अलग नेताओं को भी लखनऊ बुलाकर मिल रहे थे। सपा के प्रदेश सचिव आशीष चौबे कहते हैं, वर्ष 2000 के चुनाव में कन्नौज की गलियों में खूब घूमे। सपा अध्यक्ष के लिए वहां की जनता का प्रेम किसी से छिपा नहीं है। नई हवा और नई सपा के लिए नए संकेतों की सियासत परवान चढ़ रही है।

इसलिए खास कन्नौज सीट

कन्नौज संसदीय सीट से अखिलेश का दिली लगाव है। 1999 से 2019 तक के सात लोकसभा चुनावों में यहां छह बार यादव परिवार जीता है। अखिलेश स्वयं तीन बार सांसद बने। पत्नी डिंपल दो बार जीतीं।

2027 की ढूंढ़ रहे राह

अखिलेश कन्नौज से चुनाव लड़कर 2027 के लिए राह ढूंढ़ रहे हैं। वो यहां से कानपुर-बुंदेलखंड क्षेत्र के सभी जिलों समेत मैनपुरी, एटा, हरदोई तक माहौल बनाएंगे। यहां लोकसभा सीटें जीतने से 2027 में इन जिलों की विधानसभा सीटों पर फर्क डाल सकेंगे।


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