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Ghazipur Lok Sabha Election: क्रांतिकारी तेवर, पर किसी दल का नहीं बना 'गढ़', चार विधानसभा सीटों पर इस पार्टी का है कब्जा

गाजीपुर का मिजाज बलिया की तरह बागी तो नहीं हैपर तेवर से क्रांतिकारी जरूर है।यहां के युवा सेना और पुलिस में भर्ती होना अधिक पसंद करते हैं। आजादी के बाद से कांग्रेस और वामपंथ का प्रभाव जरूर रहा लेकिन यह सीट किसी दल का ‘गढ़’ नहीं बन सकी। वैसे गाजीपुर अफजाल-मुख्तार का गढ़ माना जाता है लेकिन लोकसभा का इतिहास कुछ और ही कहता है। शैलेश कुमार तिवारी की रिपोर्ट...

By Jagran News Edited By: Vivek Shukla Published: Thu, 25 Apr 2024 12:46 PM (IST)Updated: Thu, 25 Apr 2024 12:46 PM (IST)
अफजाल अंसारी- सपा, पारसनाथ राय- भाजपा, उमेश कुमार सिंह- बसपा।

इतिहास के पन्ने पलटने पर पता चलता है कि अफजाल अंसारी अब तक दो बार 2004 और 2019 में ही चुनाव जीत सके हैं। मुख्तार के निधन के बाद इस बार फिर वह सपा के टिकट पर किस्मत आजमा रहे हैं। उनके सामने भाजपा के पारस नाथ राय और बसपा के डा. उमेश कुमार सिंह हैं।

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पूर्वांचल की बदहाली को देश-दुनिया के सामने लाने और संसद को झकझोरने वाले विश्वनाथ प्रसाद गहमरी की कर्मभूमि गाजीपुर में समय के साथ बहुत कुछ बदला, लेकिन मतदाताओं की जातिवादी सोच न बदलने का असर चुनाव परिणामों में हमेशा देखने को मिलता रहा है। गाजीपुर लोकसभा सीट पर कांग्रेस और वामदलों के बाद भाजपा और सपा को तीन-तीन बार सफलता मिल चुकी है।

चौथी बार के लिए भाजपा-सपा जोर आजमाइश कर रही हैं। हालांकि, चार लाख आबादी वंचित समाज की होने के बावजूद बहुजन समाज पार्टी को केवल 2019 में ही सफलता मिली थी। बसपा के टिकट पर चुनाव मैदान में उतरे अफजाल अंसारी भाजपा के मनोज सिन्हा को हराकर सांसद बनने में कामयाब रहे। गाजीपुर संसदीय क्षेत्र में पांच विधानसभा सीटें आती हैं। जखनिया (सु.) गाजीपुर, सैदपुर (सु.), जंगीपुर और जमानियां। वहीं, जिले की मोहम्मदाबाद और जहूराबाद विधानसभा सीट बलिया संसदीय क्षेत्र में आती हैं।

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कृषि प्रधान जिला, लेकिन कोई उद्योग नहीं

अष्टभुजी कालोनी के शिक्षाविद् माधव कृष्ण कहते हैं कि गाजीपुर कृषि प्रधान जिला है, लेकिन यहां कृषि आधारित कोई उद्योग नहीं है। नंदगंज चीनी मिल बंद पड़ी है। इसे शुरू कराने के प्रयास सफल नहीं हुए। गाजीपुर गजेटियर में यह उल्लेख है कि यहां की चीनी की मिठास विदेश तक फैली थी। आजादी से पहले जनपद में नील और अफीम की खेती होती थी।

अंग्रेजों के समय यहां नील विद्रोह भी हो चुका है। वैसे इतिहास के पन्नों में दर्ज है कि गाजीपुर में कागज और साबुन बनाने के कारखाने भी थे। इसका प्रमाण आज भी कागजी मुहल्ला और साबुनगढ़ मुहल्ला हैं, लेकिन संरक्षण न मिलने से इन कारखानों का अब नामोनिशान नहीं है। नई पीढ़ी को तो यह बात भी नहीं पता है। जिले में कोई उद्योग धंधा न होने से युवाओं को रोजगार के लिए दिल्ली, मुंबई और अन्य शहरों में जाना पड़ता है।

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चार विधानसभा सीटों पर सपा का कब्जा

गाजीपुर लोकसभा क्षेत्र में पांच विधानसभा क्षेत्र हैं। इनमें से चार पर समाजवादी पार्टी का कब्जा है। एक विधानसभा सीट पर सुभासपा का कब्जा है। विधानसभा चुनाव के दौरान सपा और ओमप्रकाश राजभर की सुभासपा का गठबंधन था, लेकिन इस बार सुभासपा राजग के पाले में है और ओमप्रकाश राजभर राज्य सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं।

वोट प्रतिशत बढ़ा, लेकिन हार गए मनोज सिन्हा अफजाल अंसारी को 2019 के चुनाव में 5,66,082 मत मिले थे। अंसारी को कुल मतों का 51.20 प्रतिशत वोट मिले थे। वहीं, मनोज सिन्हा को 4,46,690 वोट मिले मिले थे, जो कुल मतों का 40.40 प्रतिशत था।

उन्हें 2014 की तुलना में वोट तो 9.29 प्रतिशत अधिक मिले थे, लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। 2019 में सपा और बसपा का गठबंधन भी था। 2014 में भाजपा के मनोज सिन्हा को 306,929 वोट मिले थे।

उन्हें कुल पड़े मतों में 31.11 प्रतिशत वोट मिले थे। वहीं, सपा की शिवकन्या कुशवाहा को 2,74,477 वोट मिले थे। बसपा के कैलाशनाथ सिंह यादव को 2,41,645 वोट मिले थे।


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