Etah Seat: यहां मुस्लिम महिलाएं 50% से अधिक, किन मुद्दों पर गिरेंगे वोट? कहा- अब पुरुषों के कहने पर नहीं करतीं मतदान
हर चुनाव में मतदान केंद्रों पर मुस्लिम महिला मतदाताओं की लंबी कतारें लगती हैं। शहरी और कस्बाई इलाकों में यह नजारे खूब देखने को मिलते हैं। सरकारी योजनाओं का लाभ मुस्लिम महिलाओं को भी भरपूर मिला है। भाजपा लाभार्थियों को अपना वोट बैंक मान रही है। एटा लोकसभा क्षेत्र में एटा सकीट मारहरा सिढ़पुरा पटियाली गंजडुंडवारा भरगैन में मुस्लिम मतदाताओं की संख्या अन्य क्षेत्रों से अधिक है।
जागरण संवाददाता, एटा। उनके चेहरे पर बेशक नकाब चढ़ा है पर उनके बीच मुद्दे बेपर्दा हैं। इस नकाब की ओट में मुस्लिम महिलाओं के वोट हैं। यह वोट किस ओर हैं, इस पर यह महिलाएं भले ही कुछ नहीं बोलतीं, मगर तीन तलाक की भी चर्चा है और सीएए (नागरिकता संशोधन अधिनियम) व अनुच्छेद 370 की भी। मुफ्त राशन की बात पर वे खूब खुश होती हैं।
बातचीत में यह भी जोड़ती हैं कि पहले चूल्हा फूंकती थीं, अब उज्ज्वला गैस पर रोटी सेंकती हैं। जागरूक महिलाएं कहती भी हैं कि अब वह जमाना चला गया, जब हम पुरुषों के कहने पर वोट देते थे। आज समाज में बराबरी पर खड़े हैं तो अपना फैसला खुद लेने में सक्षम हैं। शहरी और कस्बाई इलाकों में मुस्लिम महिला मतदाता पूरे उत्साह के साथ वोट डालती आई हैं। इस बार भी मतदान के प्रति पढ़ी-लिखी महिलाएं जागरूक दिखाई दे रही हैं। मुस्लिम महिला मतदाताओं की स्थिति पर अनिल गुप्ता की रिपोर्ट...
हर चुनाव में मतदान केंद्रों पर मुस्लिम महिला मतदाताओं की लंबी कतारें लगती हैं। शहरी और कस्बाई इलाकों में यह नजारे खूब देखने को मिलते हैं। सरकारी योजनाओं का लाभ मुस्लिम महिलाओं को भी भरपूर मिला है। भाजपा लाभार्थियों को अपना वोट बैंक मान रही है। एटा लोकसभा क्षेत्र में एटा, सकीट, मारहरा, सिढ़पुरा, पटियाली, गंजडुंडवारा, भरगैन में मुस्लिम मतदाताओं की संख्या अन्य क्षेत्रों से अधिक है। इनमें आधी महिला मतदाता हैं।
यह मतदाता तीन तलाक के खिलाफ खूब मुखर हैं। जिले में मुस्लिम मतदाताओं की संख्या एक लाख से अधिक है। इनमें आधी महिलाएं हैं। कुल मुस्लिम महिला आबादी में से 50 प्रतिशत से अधिक युवा महिला मतदाता हैं। बीते पांच वर्ष में मुस्लिम बाहुल्य इलाकों में माहौल बदला नजर आया है।
मुस्लिम आबादी को सरकार की कल्याणकारी योजनाओं का लाभ खूब मिला है। कोरोना के दौर में यह आबादी रोजगार की दृष्टि से काफी प्रभावित हुई। यहां के बहुत कम मुस्लिम मतदाता ही नौकरपेशा हैं। अधिकांश छोटे-छोटे रोजगार से जुड़े हैं। मारहरा गेट की रहने वालीं विधवा शाइस्ता खान कहती हैं, उनके तीन बच्चे हैं।
ये बच्चे लोगों की दुकानों पर छोटा-मोटा काम कर कुछ पैसे जुटा लेते हैं। वे स्वयं घरों में झाडू-पोंछा करती हैं। वे कहती हैं, कोरोना के समय अगर मुफ्त राशन नहीं मिलता तो परिवार को भारी मुश्किल का सामना करना पड़ता। अच्छी बात यह है कि हमारा आयुष्मान कार्ड भी बना हुआ है। गैस भी मिली है।
पीएम आवास के तहत पैसा मिला तो अपना घर पक्का बना लिया। चुनाव के बारे में कहती हैं, मन में तय कर लिया है किसे वोट देना है। अलीगंज की मेहरुन्निशा एनजीओ की संचालिका हैं। कहती हैं, मुस्लिम महिलाओं को जागरूक होना चाहिए। बेशक नकाब परंपरा का हिस्सा है, लेकिन उससे ज्यादा जागरूकता जरूरी है। पहले से स्थिति बदली है। हम अपना नफा-नुकसान समझने में सक्षम हैं।
तीन तलाक कानून से हम खुश
जलेसर की रहने वाली परवीन तीन तलाक की शिकार हुईं। वे कहती हैं कि हमें फोन पर गोरखपुर के रहने वाले पति ने तीन बार तलाक कहकर तलाक दे दिया। मुझे न्याय चाहिए था, इसलिए हमने एफआइआर दर्ज करा दी। इस कानून से हम खुश हैं, जो मुस्लिम महिलाओं को न्याय दिला रहा है। ऐसी ही तमाम महिलाएं हैं, जो राजनीतिक परंपरा की बेडियों से अलग हटकर अपनी राय रखती हैं। वे यह भी कहती हैं कि मतदान के दौरान हम लोग पूरे उत्साह के साथ वोट करते हैं।