Etah Lok Sabha Seat: कल्याण सिंह के पुत्र राजवीर तीसरी बार होंगे विरासत के पहरेदार, अखिलेश-मायावती के दांव से रोमांचक हुआ रण
एटा की शुरूआती चुनावी तस्वीर अब पूरी तरह साफ हो चुकी है कि जंग के योद्धा कौन-कौन होंगे? जातियों पर पकड़ इस चुनाव का रुख तय करने वाली है। ज्यादा हलचल शाक्य प्रत्याशी के आने से है। सपा ने निरंतर दो बार हुई हार से सबक लेकर इस बार शाक्य प्रत्याशी को उतार दिया। हालांकि भाजपा अपने शाक्य नेताओं के सहारे वोटों का धुर्वीकरण कराने की कोशिश में है।
अनिल गुप्ता, एटा। एटा लोकसभा सीट पर तीसरी बार भाजपा की टिकट पर चुनाव लड़ रहे पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के पुत्र अपने पिता की राजनीतिक विरासत के इस सीट पर पहले पहरेदार हैं। वर्ष 1951 से लेकर 2014 तक कई प्रत्याशियों ने चुनाव लड़ा मगर तीसरी बार पहरेदारी राजवीर ही कर रहे हैं।
इससे पहले 1977 में मुस्तफा रशीद शेरवानी ने लोकसभा का चुनाव लड़ा था। मगर वे हार गए थे। बाद में उनकी विरासत आगे बढ़ाने के लिए आए सलीम इकबाल शेरवानी ने 1989 में कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़ा, लेकिन वे भी हार गए। शेरवानी अपने पिता की विरासत को आगे नहीं बढ़ा पाए। शेष प्रत्याशियों ने खुद ही चुनाव लड़ा और आगे चलकर वे राजनीति से विलुत्प हो गए।
वर्ष 2009 में पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने एटा लोकसभा सीट पर समाजवादी पार्टी के समर्थन से चुनाव लड़ा था, रिकार्ड वोटों से जीत हुई। बाद में फिर से उनकी घर वापसी हुई और राजस्थान के राज्यपाल बने। इसके बाद वर्ष 2014 का चुनाव आया तो कल्याण सिंह ने चुनाव लड़ने से इन्कार कर दिया। उनके पुत्र राजवीर सिंह प्रत्याशी घोषित किए गए। उस चुनाव में कल्याण सिंह स्वयं कार्यकर्ताओं से मिलने आए थे और उनका उत्साह बढ़ाया था।
इसके बाद वर्ष 2019 में फिर से राजवीर ने अपने पिता की विरासत संभाली और जीत दर्ज की। अब वे तीसरी बार विरासत के पहरेदार बने हैं। पार्टी ने हैट्रिक लगाने का मौका दिया है। दरअसल यहां की लड़ाई में भाजपा राष्ट्रीय मुद्दों पर मुखर है। मगर चुनाव जातिवाद के ट्रेक पर जाता नजर आ रहा है। जातीय समीकरणों का खेल खेलां करने को तैयार है।
पिछली बार की अपेक्षा इस बार समीकरण बदले हुए हैं। चुनावी राजनीति की अच्छी जानकारी रखने वाले एक्सपर्ट भी जातीय समीकरणों को नकार नहीं पा रहे। भाजपा ने राजवीर सिंह के रूप में लोधी और सपा ने देवेश शाक्य व बसपा ने मुस्लिम प्रत्याशी मुहम्मद इरफान अहमद को चुनाव मैदान में उतारा है।
यहां की शुरूआती चुनावी तस्वीर अब पूरी तरह साफ हो चुकी है कि जंग के योद्धा कौन-कौन होंगे? जातियों पर पकड़ इस चुनाव का रुख तय करने वाली है। ज्यादा हलचल शाक्य प्रत्याशी के आने से है।
वर्ष 2014 और 2019 में पूर्व सांसद कुंवर देवेंद्र सिंह यादव ने सपा से चुनाव लड़ा था, लेकिन दोनों बार पार्टी को हार का सामना करना पड़ा। सपा ने निरंतर दो बार हुई हार से सबक लेकर इस बार शाक्य प्रत्याशी को उतार दिया। हालांकि भाजपा अपने शाक्य नेताओं के सहारे वोटों का धुर्वीकरण कराने की कोशिश में है।
शाक्यों में जो जितनी सेंधमारी कर ले जाएगा, उसी के हिसाब से प्रत्याशी को मजबूती मिलेगी। हालांकि बसपा ने मुस्लिम प्रत्याशी मुहम्मद इरफान एड. को उतारकर अपना दांव खेल दिया है। गैर भाजपा दलों की रणनीति इस बार के चुनाव में बदली हुई है।
इसमें कोई दो राय नहीं कि कल्याण सिंह बेशक इस दुनियां में नहीं हैं, लेकिन लोधी वोट बैंक के सिरमौर हैं। उनका प्रभाव लोधी बेल्ट में खासा है। जिस तरह से मुलायम सिंह यादव ने अपने सजातीय वोट बैंक में प्रभुत्व जमाया, उसी तरह से लोधी दुर्ग के कल्याण सिंह बादशाह माने जाते हैं।
2019 एटा लोकसभा में मिले वोट
दल | उम्मीदवार | वोट | प्रतिशत | बढ़ा वोट प्रतिशत |
बीजेपी | राजवीर सिंह | 545,348 | 54.52 | 3.24 |
सपा | देवेन्द्र सिंह यादव | 4,22,678 | 42.25 | 12.67 |
स्वतंत्र | हरिओम | 6,339 | 0.64 | नया |
नोटा | कोई भी नहीं | 6,277 | 0.63 | -8.82 |
वर्ष 2009 के बाद बढ़ता गया जनाधार
वर्ष 2009 में पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने एटा लोकसभा से जब चुनाव लड़ा तो उनकी रिकार्ड वोटों से जीत हुई थी। हालांकि इसके पीछे सपा का हाथ था, लेकिन लोधी वोटों का निरंतर इजाफा होता चला गया। वर्ष 2009 में जितने लोधी वोट कल्याण सिंह को मिले, उससे ज्यादा 2014 में राजवीर सिंह को मिले।
2019 के चुनाव में भी लोधी वोटों में इजाफा हुआ राजवीर सिंह का वोट प्रतिशत 2019 में 3.24 प्रतिशत बढ़ गया। जितने कुल वोट डाले गए, उसमें से 54.52 प्रतिशत वोट राजवीर सिंह के खाते में चले गए, जबकि सपा के देवेंद्र सिंह 42.25 प्रतिशत वोट ही ले पाए।
देवेंद्र सिंह अब भाजपा में हैं। वे दो बार सपा से सांसद रह चुके हैं। लोकसभा क्षेत्र में उनकी गिनती कद्दावर नेताओं में शुमार है।