Ground Report: बेहद दिलचस्प है एटा का चुनावी गणित, डेढ़ दशक से वनवास पर विपक्ष, बीजेपी की हैट्रिक और विपक्ष की जीत क्या है समीकरण, पढ़िए
Lok Sabha Election 2009 में कल्याण सिंह ने यहां अपना घर बनाया। इससे सकारात्मक संदेश गया कि बाबूजी तो अपने हैं। कल्याण की जितनी लोकप्रियता लोधियों में है उतनी ही वैश्य ब्राह्मण क्षत्रिय बघेल आदि में भी है। ये जातियां भाजपा का एकमुश्त वोट बैंक हैं। सियासत में बाबूजी के नाम से मशहूर कल्याण सिंह यहां के लोगों के मन में बसे हैं।
अनिल गुप्ता, एटा। एटा लोकसभा सीट मतलब कल्याण सिंह का गढ़। डेढ़ दशक से यहां विपक्ष वनवास पर है। अब सवाल यही है कि इस बार विपक्षी दल सपा या बसपा क्या भाजपा के विजय रथ को रोक पाएंगे। समीकरण पिछली बार से कुछ बदले जरूर हैं। देखना होगा कि सपा का शाक्य और बसपा का मुस्लिम दांव कितना असरदार होगा। चुनावी परिदृश्य पर अनिल गुप्ता की रिपोर्ट...
मारहरा विधानसभा
सबसे पहले रुख करते हैं विधानसभा मारहरा के गांव हयातपुर माफी का। यहां मंदिर पर चुनावी चौपाल सजी है। गांव के ही रामहेत सिंह कहते हैं कि ‘समय के साथ इतिहास भी बदलता है। महादीपक सिंह शाक्य इस सीट से छह बार चुने गए। ऐसे में राजवीर सिंह हैट्रिक बना जाएं तो कोई बड़ी बात नहीं है।’
उनकी बात गांव के ही प्रेमवीर सिंह काट देते हैं। कहते हैं कि ‘ऐसा कैसे हो जाएगा। लगातार दो बार से ज्यादा कोई सांसद आज तक जीता ही नहीं।’ राजनीतिक बहस के बीच बात मुद्दों पर छिड़ जाती है। चौपाल पर ऐसे तमाम लोग मिले, जो एक सुर में बोले ‘राजवीर हों या कोई और हमें कोई फर्क नहीं पड़ता। हम तो सिर्फ मोदी को जानते हैं।’
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दिलचस्प है एटा का चुनावी गणित
एटा का चुनावी गणित बड़ा ही दिलचस्प है। घमासान भी तगड़ा है। कल्याण सिंह के पुत्र राजवीर तीसरी बार इस सीट पर चुनाव लड़ रहे हैं। सपा देवेश शाक्य को चुनाव में लाई है। बसपा ने मुस्लिम प्रत्याशी मुहम्मद इरफान को उतारा है। मुस्लिम होने के नाते वह सपा को चुनौती दे रहे हैं।
अगर अतीत में झांकें तो वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में यहां कल्याण सिंह की एंट्री हुई थी। इसके बाद यह भाजपा का अभेद्य दुर्ग बन गया। सियासत में बाबूजी के नाम से मशहूर कल्याण सिंह भाजपा समर्थक मतदाताओं के मन में बसे हैं।
एक वर्ग में नाराजगी कर दी सपा ने
पूर्व राज्यसभा सदस्य हरनाथ सिंह यादव कहते हैं कि ‘सपा पीडीए फार्मूला पर चुनाव लड़ रही है। उसने पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक का मुद्दा उछालकर सवर्णों में नाराजगी पैदा कर दी है। भाजपा जातिवाद से इतर हटकर राष्ट्रीय मुद्दों को लेकर जनता के बीच जा रही है। मतदाता पढ़े-लिखे हैं, वे राष्ट्रीयता को महत्व देते हैं। युवाओं में राष्ट्र के लिए जुनून है।’
दूसरी तरफ स्थिति यह है कि भाजपा को शाक्य वोटों में सेंध लगाने के लिए जोर आजमाइश करनी पड़ रही है। इस डैमेज को कंट्रोल करने के लिए छोटी-छोटी जातियों को एकत्रित करना पड़ रहा है। पिछले दो चुनावों में राजवीर सिंह के प्रतिद्वंद्वी रहे सपा के देवेंद्र अब भाजपा में हैं।
बुजुर्गाें और युवाओं का ये है कहना
गांवों का हाल देखें तो साफ है कि मुद्दे जातीयता में डूबे हुए हैं। चुनाव विशुद्ध जातिवाद की ओर झुक गया है। अधिकांश गांवों में मिश्रित माहौल है। लोधी बहुल गांवों में कमल का जोर दिखाई देता है। शाक्य बहुल गांव सोंसा में सपा प्रत्याशी देवेश शाक्य वोट मांगकर चले गए तो एक नई बहस छिड़ गई। बात परंपरा पर आ गई।
तेजवीर शाक्य बोले ‘यह ठीक है कि अब तक हम भाजपा को वोट करते रहे, पर अब तो हमारा सजातीय प्रत्याशी मैदान में है।’
इस गांव के बुजुर्ग रक्षपाल सिंह से नहीं रहा गया और वह बोले कि ‘ठीक है, सजातीय हैं, लेकिन जिस घर में हम अब तक रहे हैं, उसमें कोई खतरा भी तो नहीं है।’
यादव बहुल गांवों में लोग सैफई परिवार के पीछे खड़े नजर आते हैं, लेकिन वहां भी बहस छिड़ी है। गांव गदुआ के विजय सिंह यादव कहते हैं कि ‘इस बार कई दिग्गज यादव भाजपा में चले गए। अब असली परीक्षा तो इन धुरंधरों की है। देखेंगे कि वे यादवों का कितना वोट भाजपा को दिलवा पाते हैं।’