संवाद सूत्र, देवा, (बाराबंकी)। नवाबगंज सीट से तीन बार विधायक रहे पूर्व राज्य मंत्री छोटेलाल यादव का बुधवार सुबह निधन हो गया। लखनऊ के सहारा हास्पिटल में उन्होंने अंतिम सांस ली। दोपहर बाद उनके पैतृक आवास गोपालपुर में हजारों समर्थकों के बीच उन्हें मुखाग्नि दी गई।
अपने समर्थकों में
बाबूजी
के नाम से जाने जाने वाले 80 वर्षीय छोटेलाल यादव पहली बार 1991 में जनता पार्टी से विधायक चुने गए थे। वर्ष 1993 और 2002 में वह सपा के टिकट पर चुनाव जीते। इसी दौरान उन्हें राज्य मंत्री का दर्जा मिला। उनकी बहू स्नेहलता भी प्रमुख चुनी गईं।
मुलायम सिंह से था गहरा रिश्ता
सपा प्रमुख मुलायम सिंह से उनका रिश्ता काफी गहरा था। जिले में यादव वोटों पर उनकी काफी पकड़ मानी जाती थी। सपा की आंतरिक कलह की वजह से उन्होंने बाद में सपा छोड़कर बेनी प्रसाद वर्मा के साथ कांग्रेस ज्वाइन कर ली। थोड़े बाद में पुनः सपा में वापसी की। टिकट और पार्टी में उपेक्षा से दुखी छोटेलाल यादव बीते कुछ वर्षीय से सक्रिय राजनीति से दूर थे।
नगर पालिका अध्यक्ष चुनाव से पूर्व उन्होंने भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली और पार्टी के पक्ष में प्रचार किया।
दोपहर में जब उनका शव पैतृक गांव गोपालपुर पहुंचा तो लोगों ने
बाराबंकी का एकय लाल, छोटेलाल, छोटेलाल
के नारे लगाए। परिवार और गांव के लोग अपने बाबूजी के चले जाने पर भावुक थे।
मंत्री सतीश शर्मा, राजरानी रावत, पूर्व सांसद रामसागर रावत, इच्छवाकु मौर्य, पूजा सिंह सहित सपा, भाजपा और अन्य दलों के लोगों ने उन्हें श्रद्धांजलि दी। बड़े बेटे विनोद ने उन्हें मुखाग्नि दी। इससे पहले प्रशासन की ओर से उनके शव पर पुष्प चक्र भेंट कर सलामी दी गई।
आत्मसम्मान से कभी नहीं किया समझौता
जुझारू व्यक्तित्व और कुशल व्यवहार के धनी छोटेलाल यादव सभी वर्गों में काफी लोकप्रिय थे। गंगादेवी डिग्री कालेज के प्राचार्य राजीव कुमार कहते हैं कि बाबूजी ने आत्मसम्मान से कभी समझौता नहीं किया।
बताते हैं कि वर्ष 2002 में कुछ विरोधी तत्व चाहते थे कि मुलायम सिंह यादव उनके चुनाव प्रचार में न आएं, लेकिन नेताजी ने किसी की नहीं सुनी और दुर्घटना की परवाह किए बिना जीआइसी ग्राउंड में बने हेलीपैड पर कुछ फीट ऊपर से ही छलांग लगा दी। होली और दीपावली पर बाबूजी अक्सर सैफई जाते थे।
कहते हैं कि भतीजे राजेश के ऐट होम में भी खराब मौसम के बावजूद नेताजी कार्यक्रम में शामिल हुए थे। बबुरहिया निवासी संजय कहते हैं कि बाबूजी सभी की सुनते थे और सबका काम करवाते थे। इधर, अस्वस्थ होने के कारण लोगों से कम ही भेंट हो पाती थी, लेकिन मिलने पर वह काफी आत्मीयता से पेश आते थे।
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