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चिंतन धरोहर: किसी भी संबंध में आकर्षण का नहीं, प्रेम का होना आवश्यक है

किसी भी संबंध में आकर्षण का नहीं प्रेम का होना आवश्यक है। प्रेम में आप अपने प्रिय व्यक्ति की अधीनता स्वीकार कर लेते हैं जबकि आकर्षण में ऐसा नहीं होता। प्रेम और आकर्षण में यही अंतर है। हालांकि आकर्षण पहली सीढ़ी है लेकिन आप पहली ही सीढ़ी पर तो नहीं बने रह सकते। आपको अगली सीढ़ी पर चढ़ना ही पड़ेगा। किसी व्यक्ति को केवल बाहर से ही न देखें।

By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarPublished: Mon, 01 Apr 2024 03:32 PM (IST)Updated: Mon, 01 Apr 2024 03:32 PM (IST)
चिंतन धरोहर: किसी भी संबंध में आकर्षण का नहीं, प्रेम का होना आवश्यक है

श्री श्री रविशंकर (आध्यात्मिक गुरु, आर्ट ऑफ लिविंग)। संबंधों में केवल आकर्षण नहीं, बल्कि प्रेम का होना आवश्यक है। लेकिन इस प्रेम की अपेक्षा समस्याएं उत्पन्न करती है। जब आप अपने प्रेमी से प्रेम की मांग करने लग जाते हैं, तो प्रेम कम होने लगता है। तब आप कहते हैं, मुझे इस संबंध में नहीं आना चाहिए था। फिर उस संबंध से निकलने का संघर्ष और अन्य समस्याएं प्रारंभ हो जाती हैं। एक संबंध से निकलने के बाद आप दूसरे संबंध में जाते हैं, लेकिन फिर यही कहानी दोहराई जाती रहती है।

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किसी भी संबंध में आकर्षण का नहीं, प्रेम का होना आवश्यक है। प्रेम में आप अपने प्रिय व्यक्ति की अधीनता स्वीकार कर लेते हैं, जबकि आकर्षण में ऐसा नहीं होता। प्रेम और आकर्षण में यही अंतर है। हालांकि आकर्षण पहली सीढ़ी है, लेकिन आप पहली ही सीढ़ी पर तो नहीं बने रह सकते। आपको अगली सीढ़ी पर चढ़ना ही पड़ेगा। वह सीढ़ी ही प्रेम है। किसी व्यक्ति को केवल बाहर से ही न देखें। यदि कोई क्रोधी है या थोड़ा नकचढ़ा है, तो हम उसके व्यवहार के लिए उस व्यक्ति को जिम्मेदार ठहराते हैं, लेकिन अगर हम व्यापक दृष्टिकोण से देखेंगे तो कई और पहलू सामने आएंगे।

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उस व्यक्ति के क्रोध के पीछे कोई न कोई कारण है। यह रिश्ते में प्रतिबिंबित हो रहा है, तो अपनी धारणा का फलक बढाएं। किसी घटना के लिए उस व्यक्ति पर आरोप न लगाएं, बल्कि उसे स्वीकार करें और उस घटना को एक व्यापक दृष्टिकोण से देखें। यदि अपने संबंधों में आप ही सब कुछ कर रहे हैं और दूसरे व्यक्ति को बदले में कुछ नहीं करने दे रहे हैं, तो आप उनके आत्मसम्मान को कम कर रहे हैं।

कभी-कभी लोग कहते हैं, ओह! देखो, मैंने इतना कुछ किया, लेकिन फिर भी वह व्यक्ति मुझसे प्रेम नहीं करता। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि वे असहज महसूस करते हैं। प्रेम तब होता है, जब आदान-प्रदान होता है और ऐसा तभी हो सकता है, जब आप भी दूसरे व्यक्ति को अपने लिए कुछ करने का अवसर दें। इसके लिए थोड़ी कुशलता की आवश्यकता है। हमें दूसरे व्यक्ति से भी बिना मांगे योगदान कराने में कुशल होना चाहिए।

हम किसी से अपने लिए कुछ करवाने का सिर्फ एक ही तरीका जानते हैं- मांगना। एक संबंध में यह देखें कि दूसरा व्यक्ति भी आपके जीवन में योगदान दे, ताकि वह मूल्यहीन अनुभव न करे। प्रेम बढ़ने के लिए दोनों का आत्मसम्मान आवश्यक है। जब आप किसी से प्रेम करते हैं, तो आप उन्हें सांस लेने की भी जगह नहीं देते और यह कई बार घुटन भरा हो सकता है। घुटन प्रेम को खत्म कर देती है। एक दूसरे के स्थान का सम्मान करें। कुछ समय छुट्टी लें। पुराने समय में लोग यह जानते थे, इसलिए पत्नियों को साल में एक महीने के लिए उनकी मां के पास भेजने की प्रथा थी।

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उस एक महीने में प्रेम पनपता था और उसके लिए थोड़ी दूरी, थोड़ी जगह की आवश्यकता होती है। जैसे रेलगाड़ी की पटरी सामानांतर होती है और दूर तक एक साथ जाती है, वैसे ही जब दोनों व्यक्ति एक दिशा में चलते हैं तो अनंत काल तक साथ चलते रहते हैं। जीवन में कुछ सेवा करने का लक्ष्य रखें। बांटने और सेवा करने से आपकी प्रेम करने और स्वीकार करने की क्षमता बढ़ेगी। यदि आप दोनों ने सेवा को एक उद्देश्य के रूप में रखा है और दोनों मिलकर उस दिशा में आगे बढ़ते हैं, तो कभी कोई समस्या नहीं होगी।

एक दूसरे के प्रेम पर संदेह न करें। यदि आपको अपना प्रेम बार-बार सिद्ध करना पड़े, तो कितना बड़ा बोझ लगेगा! प्रेम को अभिव्यक्त करना इतना मुश्किल है, दुनिया में आज तक कोई प्रेम को पूरी तरह से अभिव्यक्त नहीं कर पाया है। महिलाएं भावना-प्रधान होती हैं। पुरुषों को महिलाओं की भावनाओं का सम्मान करना चाहिए। पुरुष अहंकार-प्रधान होते हैं तो महिलाओं को अपने पार्टनर के अहंकार को ठेस नहीं पहुंचानी चाहिए। पुरुष को कभी भी आपके सामने अपनी योग्यता को सिद्ध न करना पड़े। उनको आपके कारण आत्मग्लानि नहीं होनी चाहिए।


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