Move to Jagran APP

Shri Bade Hanuman Ji Mandir: इस मंदिर में हनुमान जी के दर्शन मात्र से हर मनोकामना होती है पूरी

इस मूर्ति की कथा का मूल जहां हमें वाल्मीकि रामायण में देखने को मिलता है वहीं इसके संबंध में विशेष आध्यात्मिक बातें आनंद रामायण कृतिवासीय रामायण भावार्थ रामायण रंगनाथ रामायण अध्यात्म रामायण संहिता आदि प्राचीन ग्रंथों में पढ़ने को मिलती हैं। बड़े हनुमान जी की मूर्ति के संबंध में जनश्रुति है कि कन्नौज के किसी व्यापारी ने पुत्र की कामना से श्रीहनुमान जी का मंदिर बनवाने का निश्चय किया।

By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarPublished: Sun, 21 Apr 2024 03:29 PM (IST)Updated: Mon, 22 Apr 2024 11:02 AM (IST)
Shri Bade Hanuman Ji Mandir: इस मंदिर में हनुमान जी के दर्शन मात्र से हर मनोकामना होती है पूरी

ऋतशील शर्मा(आध्यात्मिक अध्येता): प्रयागराज के प्रसिद्ध संगम, अक्षय वट, पाताल पुरी मंदिर और सरस्वती कूप के समीप बड़े हनुमान जी का मंदिर है, जो बहुत लोकप्रिय है। यहां हनुमान जी की प्रेरणादायक विशेष मूर्ति है। इस मूर्ति के दाहिने हाथ में गदा है। इससे काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मात्सर्य आदि छह विकारों के चूर्ण-विचूर्ण करने का भाव लिया जाता है। मूर्ति के बाएं कंधे पर राम-लक्ष्मण हैं, जिससे हृदय में उनकी दृढ़ धारणा करने का भाव लिया जाता है।

loksabha election banner

मूर्ति के दोनों नेत्र विशेष रूप से खुले हुए हैं, इससे जाग्रत होने और अधोगामी विचारों व प्रवृत्तियों से दूर रहने का भाव लिया जाता है। दाएं पैर के पास उनके पुत्र मकर ध्वज की मूर्ति है, जिन्हें अधोपाताल लोक का रक्षक बताया गया है। मकर ध्वज के दर्शन एवं धारणा से अधोगामी विचारों से रक्षा होती है। बड़े हनुमान जी का बायां पैर उठा हुआ है, इससे अधोलोक से ऊर्ध्व लोक में जाने और अधोगामी विचारों के शमन अथवा दमन की प्रेरणा प्राप्त होती है।

इस मूर्ति की कथा का मूल जहां हमें वाल्मीकि रामायण में देखने को मिलता है, वहीं इसके संबंध में विशेष आध्यात्मिक बातें आनंद रामायण, कृतिवासीय रामायण, भावार्थ रामायण, रंगनाथ रामायण, अध्यात्म रामायण और भृंगीश संहिता आदि प्राचीन ग्रंथों में पढ़ने को मिलती हैं। बड़े हनुमान जी की मूर्ति के संबंध में जनश्रुति है कि कन्नौज के किसी व्यापारी ने पुत्र की कामना से श्रीहनुमान जी का मंदिर बनवाने का निश्चय किया। विन्ध्याचल से उसने श्रीहनुमान जी की पत्थर की बड़ी प्रतिमा बनवाई।

नाव द्वारा गंगा जी के अनेक पवित्र स्थानों पर उस प्रतिमा को स्नान कराते हुए वह उसे प्रयागराज ले आया। प्रयागराज में उसे स्वप्न द्वारा निर्देश हुआ कि इस प्रतिमा को यहीं छोड़ दे, उसकी सभी इच्छाएं पूरी हो जाएंगी। उसने पत्थर की विशाल मूर्ति को प्रयागराज के प्रसिद्ध षट् कूल क्षेत्र में छोड़ दिया और वापस अपने घर कन्नौज चला गया। श्री हनुमान जी की यह विशाल मूर्ति इस क्षेत्र में दबी रही। कुछ समय बाद कोई तपस्वी महात्मा वहां आए। उन्होंने जब अपनी धूनी स्थापित करने के क्रम में अपना त्रिशूल गाड़ने का प्रयास किया, तो उन्हें नीचे कुछ दबा होने का आभास हुआ। उस स्थान को खोदकर उन्होंने विशाल मूर्ति को निकाला और उसकी नियमित रूप से पूजा करने लगे।

यह भी पढ़ें: ईश्वर प्राप्ति के लिए इन बातों को जीवन में जरूर करें आत्मसात

हनुमान जी की यह विशाल मूर्ति जितनी विलक्षण और अद्भुत है, उतना ही इसके आसपास का वातावरण भी अलौकिक दिव्यता से परिपूर्ण है। पवित्र गंगा-यमुना का संगम, अक्षय वट, प्राचीन सरस्वती कूप और पाताल पुरी मंदिर के कारण इसकी अलौकिकता बढ़ जाती है। इस विशाल मूर्ति से राम लक्ष्मण रूपी दैवी शक्तियों की भावना से सभी प्रकार की पाताल वासी अर्थात छिपी हुई आसुरी शक्तियों अथवा आसुरी वृत्तियों पर विजय प्राप्त करने की अत्यंत उपयोगी एवं महत्वपूर्ण प्रेरणाएं भी प्राप्त होती हैं।

आनंद रामायण के पहले सार कांड के 11वें सर्ग में बड़े हनुमान जी की कथा का स्पष्ट रूप से वर्णन हुआ है। इसके अनुसार, पाताल लोक में ऐरावण और मैरावण नाम के दो और रावण थे। लंका में रावण ने अपने दूतों से कहा कि पाताल लोग में जाकर ऐरावण और मैरावण को बताओ कि लंका में दो राजकुमारों से युद्ध हो रहा है। दूत से समाचार मिलने पर दोनों संदेश भेजते हैं कि चिंता न करें, वे शीघ्र ही दोनों राजकुमारों को मार डालेंगे। वे राम और लक्ष्मण को मारने के लिए अदृश्य रूप में पाताल लोक से लंका आते हैं।

वहां वे देखते हैं कि एक शिला पर हनुमान जी की पूंछ के घेरे के भीतर राम और लक्ष्मण दोनों राजकुमार सो रहे हैं। वे दोनों उस शिला को उठाकर पाताल लोक ले आते हैं। वहां वे दोनों राजकुमारों की बलि देवी निकुंभिला को चढ़ाने का निर्णय करते हैं। इधर, हनुमान जी राम-लक्ष्मण को ढूंढ़ते हुए पाताल लोक पहुंच जाते हैं। पाताल लोक के द्वारपाल के रूप में उन्हें मकर ध्वज मिलता है। राम-लक्ष्मण का नाम हनुमान के मुंह से सुनकर मकर ध्वज पूछता है कि मेरे पिता अंजनी पुत्र हनुमान सकुशल हैं ना? मकर ध्वज जब अपने उत्पन्न होने की कथा बताते हैं, तो हनुमान अपना परिचय देते हैं कि मैं ही हनुमान हूं और बताते हैं कि राम-लक्ष्मण को राक्षस अपनी माया से यहां ले आए हैं। मकर ध्वज से राजकुमारों की बलि देने की बात सुनकर हनुमान जी तत्काल छोटा सा रूप धारण कर देवी मंदिर में घुस जाते हैं और दरवाजे बंद कर लेते हैं।

ऐरावण और मैरावण जब निकुंभिला देवी की पूजा के लिए आते हैं तो मंदिर के भीतर से हनुमान जी देवी की वाणी में कहते हैं कि आज मेरी पूजा खिड़की से करो, आज जो मुझे देखेगा, वह अंधा हो जाएगा। दोनों राक्षस खिड़की से ही नाना प्रकार के नैवेद्य अर्पित करने लगते हैं। जब हनुमान जी पुन: देवी की वाणी में कहते हैं कि इतने से नैवेद्य से क्या होगा, और लाओ। तब दोनों राक्षस समझते हैं कि आज देवी बहुत प्रसन्न हैं, वे नाना प्रकार की सामग्रियां लाकर अर्पित करने लगते हैं। इधर, हनुमान जी राम और लक्ष्मण को जगा देते हैं तथा मंदिर के द्वार खोल देते हैं। राम और लक्ष्मण राक्षसों पर बाणों का प्रहार करने लगते हैं। बार-बार मरकर भी राक्षस पुन: जीवित हो उठते हैं। लेकिन नाग कन्या के बताए उपाय से ऐरावण और मैरावण मारे जाते हैं और हनुमान जी राम और लक्ष्मण को युद्ध हेतु लंका में फिर पहुंचा देते हैं।

वाल्मीकि रामायण में रावण एवं मेघनाद द्वारा पाताल लोक की देवी निकुंभिला के पूजन, होम आदि द्वारा शक्ति प्राप्त करने का वर्णन युद्ध कांड और उत्तर कांड में हुआ है, उसे ही शोधपूर्ण आध्यात्मिक ज्ञान के रूप में आनंद रामायण में विस्तार से बताया गया है। वाल्मीकि रामायण में जहां रावण और मेघनाद का उल्लेख है, वहीं आनंद रामायण में रावण की सहायता करने वाले ऐरावण और मैरावण का उल्लेख है। मध्यकाल में रामानंद संप्रदाय द्वारा आनंद रामायण का प्रचार प्रसार हुआ, साथ ही बड़े हनुमान जी के मंदिर का भी।

यह भी पढ़ें: किसी भी संबंध में आकर्षण का नहीं, प्रेम का होना आवश्यक है

इसी प्रकार 15वीं शताब्दी में बंगाल के कवि कृतिवास ओझा द्वारा रचित कृतिवास रामायण में दो राक्षसों के बजाय एक ही राक्षस अहिरावण का उल्लेख हुआ है, जो राम और लक्ष्मण का हरण करके पाताल लोक ले जाता है। इस रामायण में देवी और हनुमान जी के विशिष्ट संवाद संबंध की भी चर्चा है। वहीं संत एकनाथ द्वारा मराठी में लिखी भावार्थ रामायण के युद्ध कांड में बड़े हनुमान जी की कथा का वर्णन चार अध्यायों में हुआ है। 51वें अध्याय में रावण द्वारा अहिरावण व महिरावण के पास दूत भेजने का वर्णन है। 52वें अध्याय में हनुमान जी और मकर ध्वज की भेंट का वर्णन है। 53वें अध्याय में महिरावण के वध का और 54वें अध्याय में अहिरावण के वध का वर्णन है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.