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Varuthini Ekadashi 2024: वरुथिनी एकादशी व्रत में इस कथा का करें पाठ, पुण्य फल की होगी प्राप्ति

वैशाख माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को वरुथिनी एकादशी का व्रत किया जाता है। इस बार वरुथिनी एकादशी 04 मई को है। इस दिन भगवान विष्णु के संग मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है और वरुथिनी एकादशी व्रत की कथा का श्रवण किया जाता है। माना जाता है कि इससे साधक को पुण्य फल की प्राप्ति होती है। आइए पढ़ते हैं वरुथिनी एकादशी व्रत कथा।

By Kaushik Sharma Edited By: Kaushik Sharma Published: Tue, 30 Apr 2024 04:47 PM (IST)Updated: Tue, 30 Apr 2024 04:47 PM (IST)
Varuthini Ekadashi 2024: वरुथिनी एकादशी व्रत में इस कथा का करें पाठ, पुण्य फल की होगी प्राप्ति

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Varuthini Ekadashi 2024 Vrat Katha: एकादशी तिथि जगत के पालनहार भगवान विष्णु को समर्पित है। वैशाख माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को वरुथिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस बार वरुथिनी एकादशी 04 मई को है। इस दिन साधक भगवान विष्णु के संग मां लक्ष्मी की पूजा करते हैं। साथ ही जीवन में सुख और शांति के लिए व्रत भी रखते हैं। मान्यता है कि एकादशी के दिन प्रभु की पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। पूजा के दौरान वरुथिनी एकादशी व्रत कथा का पाठ अवश्य करना चाहिए। माना जाता है कि इससे साधक को पुण्य फल की प्राप्ति होती है। आइए पढ़ते हैं वरुथिनी एकादशी व्रत कथा।

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वरुथिनी एकादशी व्रत कथा (Varuthini Ekadashi Vrat Katha)

वरुथिनी एकादशी व्रत कथा के अनुसार, प्राचीन समय में नर्मदा नदी के तट पर मान्धाता नाम के राजा का राज हुआ करता था। वह तपस्वी था। एक समय ऐसा आया कि राजा की तपस्या के दौरान एक जंगली भालू आया और उसके पैर को चबाने लगा, लेकिन राजा तपस्या में लीन रहा। भालू राजा को घसीट कर जंगल में ले गया। भालू को देख राजा अधिक डर गया।

रक्षा के लिए भगवान विष्णु से की प्रार्थना

इस दौरान उसने भगवान भगवान विष्णु से जीवन की रक्षा के लिए प्रार्थना की। उसकी पुकार सुन प्रभु वहां प्रकट हुए और भालू को मारकर राजा के प्राण बचाए। तब तक भालू ने राजा का पैर खा लिया था। इसकी वजह वह बेहद दुखी था। राजा को इस परिस्थिति में देख भगवान विष्णु ने उसको एक उपाय बताया। प्रभु ने राजा को वरूथिनी एकादशी करने के लिए कहा।

मृत्यु के बाद राजा को स्वर्ग की हुई प्राप्ति

राजा ने प्रभु की बात को मानकर वरूथिनी एकादशी व्रत किया और उसने वराह अवतार मूर्ति की पूजा की। इसके बाद इस व्रत के प्रभाव से राजा फिर से सुंदर शरीर वाला हो गया। मृत्यु के पश्चात उसे स्वर्ग की प्राप्ति हुई। इसी तरह वरूथिनी एकादशी की शुरुआत हुई।

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डिसक्लेमर- इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/जयोतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेंगी।


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