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Kamada Ekadashi 2024: कामदा एकादशी पर भगवान विष्णु को ऐसे करें प्रसन्न, मनोकामनाएं जल्द होंगी पूरी

चैत्र माह के शुक्ल पक्ष का एकादशी व्रत 19 अप्रैल को है। इस एकादशी को कामदा एकादशी के नाम से जाना जाता है। मान्यता है कि कामदा एकादशी (Kamada Ekadashi 2024) व्रत के दौरान विष्णु चालीसा का पाठ करने से साधक की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और श्री हरि प्रसन्न होते हैं। इसलिए इस दिन विष्णु चालीसा अवश्य करना चाहिए।

By Kaushik Sharma Edited By: Kaushik Sharma Published: Mon, 15 Apr 2024 08:00 PM (IST)Updated: Mon, 15 Apr 2024 08:00 PM (IST)
Kamada Ekadashi 2024: कामदा एकादशी पर भगवान विष्णु को ऐसे करें प्रसन्न, मनोकामनाएं जल्द होंगी पूरी

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Kamada Ekadashi 2024: हर माह में एकादशी व्रत दो बार किया जाता है। एक कृष्ण पक्ष में और दूसरा शुक्ल पक्ष में। एकादशी तिथि जगत के पालनहार भगवान विष्णु को समर्पित है। चैत्र माह के शुक्ल पक्ष का एकादशी व्रत 19 अप्रैल को है। इस एकादशी को कामदा एकादशी के नाम से जाना जाता है।

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धार्मिक मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करने से इंसान को जीवन के सभी दुःख और संकट से मुक्ति मिलती है। इसके अलावा जीवन सुखमय होता है। मान्यता है कि कामदा एकादशी व्रत के दौरान विष्णु चालीसा का पाठ करने से साधक की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और श्री हरि प्रसन्न होते हैं। साथ ही जीवन में सुख समृद्धि का आगमन होता है। चलिए पढ़ते हैं विष्णु चालीसा

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श्री विष्णु चालीसा (Vishnu Chalisa Lyrics)

दोहा

विष्णु सुनिए विनय सेवक की चितलाय।

कीरत कुछ वर्णन करूं दीजै ज्ञान बताय।

चौपाई

नमो विष्णु भगवान खरारी।

कष्ट नशावन अखिल बिहारी॥

प्रबल जगत में शक्ति तुम्हारी।

त्रिभुवन फैल रही उजियारी॥

सुन्दर रूप मनोहर सूरत।

सरल स्वभाव मोहनी मूरत॥

तन पर पीतांबर अति सोहत।

बैजन्ती माला मन मोहत॥

शंख चक्र कर गदा बिराजे।

देखत दैत्य असुर दल भाजे॥

सत्य धर्म मद लोभ न गाजे।

काम क्रोध मद लोभ न छाजे॥

संतभक्त सज्जन मनरंजन।

दनुज असुर दुष्टन दल गंजन॥

सुख उपजाय कष्ट सब भंजन।

दोष मिटाय करत जन सज्जन॥

पाप काट भव सिंधु उतारण।

कष्ट नाशकर भक्त उबारण॥

करत अनेक रूप प्रभु धारण।

केवल आप भक्ति के कारण॥

धरणि धेनु बन तुमहिं पुकारा।

तब तुम रूप राम का धारा॥

भार उतार असुर दल मारा।

रावण आदिक को संहारा॥

आप वराह रूप बनाया।

हरण्याक्ष को मार गिराया॥

धर मत्स्य तन सिंधु बनाया।

चौदह रतनन को निकलाया॥

अमिलख असुरन द्वंद मचाया।

रूप मोहनी आप दिखाया॥

देवन को अमृत पान कराया।

असुरन को छवि से बहलाया॥

कूर्म रूप धर सिंधु मझाया।

मंद्राचल गिरि तुरत उठाया॥

शंकर का तुम फन्द छुड़ाया।

भस्मासुर को रूप दिखाया॥

वेदन को जब असुर डुबाया।

कर प्रबंध उन्हें ढूंढवाया॥

मोहित बनकर खलहि नचाया।

उसही कर से भस्म कराया॥

असुर जलंधर अति बलदाई।

शंकर से उन कीन्ह लडाई॥

हार पार शिव सकल बनाई।

कीन सती से छल खल जाई॥

सुमिरन कीन तुम्हें शिवरानी।

बतलाई सब विपत कहानी॥

तब तुम बने मुनीश्वर ज्ञानी।

वृन्दा की सब सुरति भुलानी॥

देखत तीन दनुज शैतानी।

वृन्दा आय तुम्हें लपटानी॥

हो स्पर्श धर्म क्षति मानी।

हना असुर उर शिव शैतानी॥

तुमने ध्रुव प्रहलाद उबारे।

हिरणाकुश आदिक खल मारे॥

गणिका और अजामिल तारे।

बहुत भक्त भव सिन्धु उतारे॥

हरहु सकल संताप हमारे।

कृपा करहु हरि सिरजन हारे॥

देखहुं मैं निज दरश तुम्हारे।

दीन बन्धु भक्तन हितकारे॥

चहत आपका सेवक दर्शन।

करहु दया अपनी मधुसूदन॥

जानूं नहीं योग्य जप पूजन।

होय यज्ञ स्तुति अनुमोदन॥

शीलदया सन्तोष सुलक्षण।

विदित नहीं व्रतबोध विलक्षण॥

करहुं आपका किस विधि पूजन।

कुमति विलोक होत दुख भीषण॥

करहुं प्रणाम कौन विधिसुमिरण।

कौन भांति मैं करहु समर्पण॥

सुर मुनि करत सदा सेवकाई।

हर्षित रहत परम गति पाई॥

दीन दुखिन पर सदा सहाई।

निज जन जान लेव अपनाई॥

पाप दोष संताप नशाओ।

भव-बंधन से मुक्त कराओ॥

सुख संपत्ति दे सुख उपजाओ।

निज चरनन का दास बनाओ॥

निगम सदा ये विनय सुनावै।

पढ़ै सुनै सो जन सुख पावै॥

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डिसक्लेमर- इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/जयोतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेंगी।


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