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उन्होंने हिला दी थी अंग्रेजी साम्राज्य की नींव

प्रदीप शर्मा, नूरपुर 'कोई किल्हा पठानिया जोर लडे़या', 'कोई बेटा वजीर दा खूब लड़ेया' जैसी लोकगाथाओं

By Edited By: Published: Tue, 11 Nov 2014 01:53 AM (IST)Updated: Tue, 11 Nov 2014 01:53 AM (IST)
उन्होंने हिला दी थी अंग्रेजी साम्राज्य की नींव

प्रदीप शर्मा, नूरपुर

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'कोई किल्हा पठानिया जोर लडे़या', 'कोई बेटा वजीर दा खूब लड़ेया' जैसी लोकगाथाओं के जरिये वीर शिरोमणी वजीर राम सिंह पठानिया को आज भी प्रथम सशस्त्र क्रांति के नायक के रूप में याद किया जाता है। 1846 में ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ क्रांति का ध्वजारोहण करने वाले त्याग, तपस्या व अद्भुत साहस के प्रतीक इस 24 वर्षीय नवयुवक ने अपने मुट्ठी भर साथियों के बल पर अंग्रेजी साम्राज्य की नींव हिला दी थी। बेशक 1857 को प्रथम स्वतंत्रता संग्राम से भी 10 साल पहले हुआ यह प्रयास अंग्रेजी साम्राज्य के समक्ष एक चुनौती प्रस्तुत कर बुझ गया, लेकिन इसकी राख से उठी चिंगारियां तब तक विस्फोट बनकर फूटती रहीं, जब तक भारत वर्ष अंतत: 15 अगस्त 1947 को आजाद नहीं हो गया।

इस वीर सपूत का जन्म नूरपुर रियासत के वजीर श्याम सिंह(हाड़ा राजपूत, कोटा राजस्थान) के घर 10 अप्रैल 1824 को हुआ था। इतिहास के अनुसार नौ मार्च 1846 में अंग्रेज-सिक्ख संधि के कारण वर्तमान हिमाचल प्रदेश की अधिकांश रियासतें सीधे अंग्रेजी साम्राज्य के आधीन आ गई थीं। इसी दौरान नूरपुर रियासत के राजा वीर सिंह (1789-1846) अपने दस वर्षीय पुत्र राजकुमार जसवंत सिंह को अपना उत्तराधिकारी छोड़कर स्वयं परलोक सिधार गए।

अंग्रेजों ने राजकुमार जसवंत सिंह की अल्पावस्था का लाभ उठाते हुए उन्हें केवल पांच हजार रुपये वार्षिक देकर उनके सारे अधिकार ले लिए। वीर राम सिंह पठानिया बाल्यकाल से ही पराक्रमी थे, अंग्रेजों के इस षड्यंत्र को सहन नहीं कर सका और उसने गुप्त रूप से रियासत के पठानिया व कटोच नवयुवकों की एक सेना तैयार कर ली।

1846 में जब दूसरा अंग्रेज-सिख युद्ध आरंभ हुआ, तो राम सिंह पठानिया ने अपने साथियों संग 14 अगस्त की रात्रि ममून कैंट लूटकर शाहपुरकंडी के दुर्ग पर धावा बोल दिया। इस आक्रमण से अंग्रेज बुरी तरह घबराकर भाग खड़े हुए। 15 अगस्त 1846 की सुबह राम सिंह पठानिया ने अपना सूर्यवंशी केसरिया ध्वज यहां लहरा दिया और नूरपुर रियासत से अंग्रेजी हुकूमत को उखाड़ फेंकने का ऐलान कर दिया। इसके साथ ही राजकुमार जसवंत सिंह को रियासत का राजा तथा खुद को उनका वजीर घोषित कर दिया।

राम सिंह अन्य राजाओं व सिखों के साथ मिलकर अंग्रेजों को मैदानों न पहाड़ी इलाकों में अलग-अलग उलझाए रखने की योजना बनाई। इसी दौरान जसवां के राजा उमेद सिंह, दतारपुर के राजा जगत सिंह व ऊना के राजा संत सिंह बेदी ने भी अपनी स्वतंत्रता की घोषणा कर दी। अंग्रेजों में खलबली मच गई और उसी साल उन्होंने पठानकोट पर आक्रमण कर दिया, लेकिन वीर राम सिंह ने साहस नहीं छोड़ा तथा अपना मोर्चा पठानकोट से उत्तर पश्चिम की ओर डल्ले की धार पर लगाया।

कुछ दिनों तक यहां पर भीषण युद्ध चला, इसमें अंतत: अंग्रेजी सेना को पीछे हटना पड़ा। रानी विक्टोरिया के एक रिश्तेदार राबर्ट पील के भतीजे जान पील ने वाहवाही बटोरने के लिए वीर राम सिंह के समीप पहुंचने का दु:स्साहस किया, लेकिन राम सिंह ने लैफ्टिनेंट जॉन पील व उसके अंग रक्षकों को मौत के घाट उतार दिया। डल्ले की धार पर जान पील की कब्र पर स्थित शिलालेख आज भी उस घटना की ऐतिहासिकता को दर्शाता है।

कहा जाता है कि वीर राम सिंह को अंग्रेजों ने उस समय गिरफ्तार कर लिया, जब वह पूजा पाठ में व्यस्त थे। तत्कालीन अंग्रेजी हुकूमत ने इस वीर सेनानी को देश निकाला देकर रंगून की जेल में भेज दिया। जेल में यातनाएं सहते हुए मातृभूमि के इस वीर सपूत ने 17 अगस्त 1849 को मात्र चौबीस वर्ष की अल्पायु में अपने प्राण न्यौछावर कर दिए।

जहां तक कि उन्हें प्रथम स्वतंत्रता सेनानी घोषित कर पंजाब सरकार ने हर साल इस दिन को डल्ले की धार में वजीर राम सिंह पठानिया की याद में शहीदी दिवस मनाने की परंपरा शुरू की। मातृभूमि के चरणों में अपने प्राणों की आहुति देने वाले इस शूरवीर की वीर गाथाएं आज तक पूरे क्षेत्र में बड़े आदर से गाई जाती है।

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आज होगा कार्यक्रम

आज मंगलवार को अमर शहीद वजीर राम सिंह पठानिया का वीर दिवस उनके पैतृक गांव वासा वजीरां में हर्षोल्लास से मनाया जा रहा है। इसकी अध्यक्षता हिमाचल प्रदेश पर्यटन विकास निगम के उपाध्यक्ष मेजर विजय सिंह मनकोटिया करेंगे।


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