साक्षी और सिंधू का सभी ने देखा कमाल, रियो ओलंपिक के इस हीरो को ना जाना तो होगा मलाल
पीवी सिंधू को हम जानते हैं, साक्षी मलिक को हम जानते हैं.लेकिन ये मनीष सिंह रावत कौन है.किसी को पता है.पता भी होगा तो बहुत कम लोगों को.जान लो इस नौजवान के बारे में नहीं तो मलाल होगा
रियो ओलंपिक खत्म हो गया और सभी की जुबां पर पीवी सिंधु और साक्षी मलिक का नाम है क्योंकि यही दो खिलाड़ी हैं जिन्होंने मेडल जीतकर भारत की लाज रख ली। इन सब के बीच कुछ खिलाड़ी ऐसे रहे हैं जिनका प्रदर्शन तो अव्वल दर्जे का रहा लेकिन किसी की निगाहें खोज नहीं पाईं। ओलंपिक में क्वालीफाई करना कितना मुश्किल है इस बात का अंदाजा लगा पाना भी उतना ही मुश्किल है।
ओलंपिक खेलों में कई खेल ऐसे भी होते हैं जिनमें हमारे देश के खिलाड़ी हिस्सा नहीं लेते और कई खेल ऐसे होते हैं जिनमें गिने-चुने खिलाड़ी हिस्सा ही नहीं लेते बल्कि शानदार प्रदर्शन भी करते हैं। लेकिन हमारे देश का दुर्भाग्य देखिए ये लोग सभी के सामने नहीं आ पाते। ऐसा ही एक खेल है Walk Race इस रेस में भारत की तरफ से कुल तीन खिलाड़ियों ने हिस्सा लिया था। इन तीन खिलाड़ियों में से एक खिलाड़ी हैं मनीष सिंह रावत...
इस 25 साल के खिलाड़ी ने 20 किलोमीटर की पैदल दौड़ के फाइनल में भारत की ओर से हिस्सा लिया था। ये रेस उन्होंने 1.21.21 में पूरी की और 13वां स्थान पाया। भले ही इस होनहार खिलाड़ी ने कोई मेडल ना पाया हो लेकिन Walk Race में भारत को 13वां स्थान जरूर दिलाया। सबसे रोचक बात ये कि इस रेस में चार पूर्व वर्ल्ड चैंपियन, 3 एशियाई चैंपियन, 2 ओलंपिक मेडल विजेता भी दौड़ रहे थे लेकिन मनीष सिंह रावत ने इन सभी खिलाड़ियों को पीछे छोड़ दिया।
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मनीष सिंह रावत की चर्चा इसलिए की जा रही है क्योंकि Walk Race भारत के लिए नया है और ऐसे में इस खिलाड़ी का प्रदर्शन दिखाता है कि अगर उसे सुविधाएं मिलें तो वो मेडल जीतने की क्षमता भी रखता है।
होती क्या है ये Walk Race
Walk Race यानि कि पैदल दौड़ एक बेहद ही मुश्किल दौड़ है। ये तकनीक, मानसिक मजबूती और फिटनेस का खेल है। इस खेल में खिलाड़ी को 20 किलोमीटर की दूरी हर वक्त पांव जमीन पर ही रखकर तय करनी होती है। अगर किसी खिलाड़ी का पांव हवा में पाया गया तो उसे दौड़ना माना जाता है और उसे डिस्क्वालीफाई कर दिया जाता है।
कौन हैं मनीष सिंह रावत
मनीष उत्तराखंड की एक छोटी सी लेकिन प्रसिद्ध जगह बद्रीनाथ से हैं, जो भारत का एक मशहूर तीर्थस्थल है। मनीष के रिओ तक के सफर की कहानी बेहद दिलचस्प और प्रेरित करने वाली है। 2002 में जब मनीष 10वीं कक्षा में थे, जब उनके पिता का देहांत हो गया, जिसके बाद परिवार की सारी जिम्मेदारियां मनीष पर आ गयीं।
जिम्मेदारियों के कारण मनीष को पढ़ाई छोड़नी पड़ी और परिवार की जरूरतों के लिए उन्होंने खेतों में मजदूरी, एक होटल में वेटर की नौकरी से लेकर घर का काम करने (हाउसमेड) और टूरिस्ट गाइड तक का भी काम किया।
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सुविधाओं के अभाव में मनीष ने हिमालय की तलहटी में बसे इस छोटे से कस्बे में बिना किसी की मदद के ट्रेनिंग की। वो हर सुबह 4 बजे उठकर 2 घंटे ट्रेनिंग करते और फिर उसके बाद होटल में जाकर वेटर की नौकरी करते थे। Walk Race में दौड़ने की तकनीक कुछ इस तरह से होती है कि पहली बार देखने पर यह थोड़ा अजीब लग सकता है, इस वजह से इनका हौसला बढ़ाने के बजाय आस-पास के लोग इनका मजाक उड़ाया करते थे।
लेकिन ये मनीष का हौसला और मजबूत इरादे थे जिनकी वजह से उन्होंने 300 लोगों को पीछे छोड़ कर रिओ ओलंपिक तक का सफर तय किया।
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