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21 माह की उम्र में अलग हुई बच्ची को मां से छह साल बाद सुप्रीम कोर्ट ने मिलवाया

हाई कोर्ट ने बच्ची उसे सौंपने और पिता को बच्ची से मिलने आने के अधिकार का आदेश दिया। पिता सेना में अफसर हैं।

By Manish NegiEdited By: Published: Fri, 17 Feb 2017 07:11 PM (IST)Updated: Fri, 17 Feb 2017 07:42 PM (IST)
21 माह की उम्र में अलग हुई बच्ची को मां से छह साल बाद सुप्रीम कोर्ट ने मिलवाया
21 माह की उम्र में अलग हुई बच्ची को मां से छह साल बाद सुप्रीम कोर्ट ने मिलवाया

नई दिल्ली, पीटीआई। सुप्रीम कोर्ट ने एक आठ साल की बच्ची को उसकी मां से फिर मिलवा दिया। जब वह 21 माह की थी, तब अनबन के कारण उसके माता-पिता अलग हो गए थे और वह कोर्ट के आदेश के मुताबिक पिता के साथ रह रही थी। अब सुप्रीम कोर्ट ने बच्ची को वापस मां को सौंपने का आदेश देते हुए कहा कि पिता के साये में बच्चे को मां का प्यार दे पाना संभव नहीं है। मां शिक्षक है और कथित रूप से उसे ससुराल छोड़ने पर मजबूर किया गया। उसने फैमिली कोर्ट ने बच्ची की कस्टडी मांगी, लेकिन उसकी याचिका खारिज हो गई। इस आदेश को उसने हाई कोर्ट में चुनौती दी।

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हाई कोर्ट ने बच्ची उसे सौंपने और पिता को बच्ची से मिलने आने के अधिकार का आदेश दिया। पिता सेना में अफसर हैं। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती दी। उनकी याचिका सुनवाई के लिए मार्च 2018 में सूचीबद्ध होनी थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने जल्दी सुनवाई की।

बच्ची ने कहा-पिता के पास ही रहना है

सुनवाई के दौरान बच्ची ने सुप्रीम कोर्ट और उसके द्वारा नियुक्त काउंसलर से कहा कि वह अपने मौजूदा माहौल में बदलाव नहीं चाहती और पिता के साथ ही रहना चाहती है। पिता ने कोर्ट में कहा कि बच्ची को उसके साथ रहने में कोई दिक्कत नहीं है। जब से मां ने छोड़ा, तब से उसकी देखभाल कर रहे हैं। कोर्ट ने कहा-दूसरी छोर की घास देखना जरूरी लेकिन जस्टिस जे चेलमेश्वर और जस्टिस एके सीकरी की पीठ ने टिप्पणी की- 'चूंकि बच्ची कभी मां के साथ नहीं रही, न ही उसे मां के साये में रहने का अनुभव है इसलिए स्वाभाविक रूप से वह यह समझने की स्थिति में नहीं है कि दूसरे छोर की घास अधिक हरी हो सकती है। उसे जब मां के साथ रहने के माहौल का अनुभव होगा तो वह यह आकलन करने में पूरी तरह सक्षम होगी कि उसकी भलाई मां के साथ रहने में है या पिता के साथ।'

एक साल के लिए सौंपा इसी के साथ पीठ ने एक साल के लिए बच्ची की कस्टडी मां को सौंप दी। पीठ ने मां से कहा कि वह बच्ची को उस स्कूल में एडमिशन दिलाएं, जहां वह पढ़ाती हैं। मां के पक्ष में फैसला सुनाते हुए कोर्ट ने कहा कि यह दुर्भाग्य है कि हाई कोर्ट से अनुकूल आदेश मिलने के बावजूद वह इसका फायदा नहीं ले सकी क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम आदेश में इस पर रोक लगा दी थी।

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