बदली जा रही कृषि वैज्ञानिकों की चयन प्रक्रिया,चयन प्रक्रिया में होगा भारी परिवर्तन
सरकार कृषि वैज्ञानिकों की चयन प्रक्रिया में बड़े बदलाव की तैयारी कर रही है जो वैज्ञानिकों के खास वर्ग के लिए मददगार साबित होगी।
सुरेंद्र प्रसाद सिंह, नई दिल्ली। सरकार कृषि वैज्ञानिकों की चयन प्रक्रिया में बड़े बदलाव की तैयारी में जुटी हुई है। डॉक्टर एसएल मेहता की अध्यक्षता वाली कमेटी सिफारिशों को अंतिम रूप दे रही है। इसके बाद चयन प्रक्रिया में भारी परिवर्तन हो जाएगा। इसमें कुछ ऐसे प्रावधान किये जा रहे हैं, जिससे कुछ खास तरह के वैज्ञानिकों को ही भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के आला पदों पर काबिज होने में मदद मिलेगी।
नई चयन प्रक्रिया के अपनाने के बाद साक्षात्कार के अंक घटकर 30 फीसद रह जायेंगे, जो पहले 60 फीसद निर्धारित थे। साक्षात्कार के लिए बुलावा भेजने की चयन की प्रक्रिया बदल जायेगी। इसमे अहम पदों के चयन में मिलने वाली वेटेज (अंक) में भारी फेर बदल कर दिया गया है। शैक्षणिक योग्यता का आधार केवल प्रिंसिपल वैज्ञानिकों के चयन तक होता रहा है। लेकिन नई प्रक्रिया में उप महानिदेशक तक के पदों के लिए वेटेज दो से बढ़ाकर पांच अंक कर दी गई है।
नये परिवर्तन में विषय में विशेषज्ञता रखने वाले वैज्ञानिकों की अहमियत को तरजीह नहीं दी जा रही है। उसकी वेटेज 15 से घटाकर 10 कर दी गई है। कृषि विज्ञान केंद्रों, दूरदराज व जोखिम वाली जगहों पर नौकरी करने वाले वैज्ञानिकों को मिलने वाली तरजीह को समाप्त कर दिया गया है। विभिन्न पदों पर मिलने वाले दो से छह अंक के वेटेज को शून्य कर दिया गया है।
नई प्रक्रिया में एक नया हिस्सा जोड़ दिया गया है। इससे खास तरह के वैज्ञानिकों को ही ज्यादा फायदा होगा। कृषि क्षेत्र में फसलों, पशुओं और अन्य कृषि टेक्नोलाजी की इजाद करने वाले वैज्ञानिकों को सीधे 20 अंक दिये जाएंगे। लेकिन इस तरह के क्षेत्र में काम करने वाले वैज्ञानिकों संख्या सीमित होती है। फसलों की नई प्रजाति तैयार करने में दो से पांच साल लगते हैं, जबकि पशुओं की प्रजाति तैयार करने में 50 से 60 साल भी लग सकते हैं। बाकी क्षेत्रों के वैज्ञानिकों को सीधे 20 फीसद का नुकसान उठाना पड़ेगा।
अगला बदलाव युवा वैज्ञानिकों के लिए भारी झटका देने वाला साबित हो सकता है। नेशनल व इंटरनेशनल अवार्ड प्राप्त करने में समय लगता है। नास का सदस्य सभी वैज्ञानिक नहीं होते हैं। ऐसे सभी युवाओं को नुकसान उठाना पड़ सकता है। नई चयन प्रक्रिया में संस्थानों में वैज्ञानिक गतिविधियों के अलावा अन्य प्रशासनिक कार्य करने वाले वैज्ञानिकों को हतोत्साहित किया गया है। उनकी वेटेज को कर दिया गया है।
रिसर्च मैनेजमेंट पोजीशन (आरएमपी) वाले वैज्ञानिकों को जहां पहले उनके इन गतिविधियों में हिस्सा लेने पर आठ अंक की वेटेज मिलती थी, उसे शून्य कर दिया गया है। सोचे समझे तरीके से उसी डाक्टर एसएल मेहता से प्रक्रिया बदलवाई जा रही है, जिन्होंने पहले भी इसे तैयार किया था। कहने को तो राजनीतिक व अन्य हस्तक्षेप घटाने के लिए ऐसा किया जा रहा है, लेकिन इसके विपरीत असर पड़ सकते हैं।
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