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सिंधु जल समझौते पर हो सकता है निर्णायक फैसला, समीक्षा बैठक खत्म

सिंधु जल संधि को लेकर आज पीएम आवास पर समीक्षा बैठक हुई। बताया जा रहा है कि इस मुद्दे पर भारत सरकार निर्णायक फैसला कर सकती है।

By Rajesh KumarEdited By: Published: Sun, 25 Sep 2016 08:25 PM (IST)Updated: Mon, 26 Sep 2016 02:06 PM (IST)

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली । पाकिस्तान के साथ 56 वर्ष पहले किये गये सिंधु जल समझौते को रद्द करने की संभावना पर भारत ने गंभीरता से विचार करना शुरु कर दिया है। पीएम नरेंद्र मोदी द्वारा बुलाई गई समीक्षा बैठक खत्म हो चुकी है। पीएम आवास पर करीब डेढ़ घंटे तक चली इस बैठक में जल संसाधन मंत्रालय के अधिकारियों समेत विदेश सचिव एस जयशंकर, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल पीएम के प्रिंसिपल सेक्रेटरी नृपेंद्र मिश्र शामिल हुए।

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सिंधु जल समझौते पर हो रही समीक्षा बैठक पर पूर्व विदेश सचिव कनवर सिब्बल ने कहा कि उन्हें नहीं लगता है कि सरकार समझौते को खत्म कर देगी। उन्होंने कहा कि इसमें कई तरह की कानूनी अड़चने हैं।

दैनिक जागरण ने पहले ही यह खबर प्रकाशित की थी कि शुक्रवार को जल संसाधन मंत्री उमा भारत ने अपने अधिकारियों के साथ सिंधु जल समझौते को लेकर उच्चस्तरीय बैठक की थी। लेकिन अब पीएम ने जब इस मामले में पूरी जानकारी लेने के लिए अधिकारियों को बुला लिया है तो साफ है कि भारत की मंशा इस बारे में सिर्फ चेतावनी देने की नहीं है। सरकार के उच्चपदस्थ सूत्रों के मुताबिक सिंधु नदी जल बंटवारे समझौते को रद्द करना एक बहुत ही अहम फैसला होगा। इस बारे में हम कोई भी कदम जल्दबाजी में नहीं उठा सकते। वैसे भी इस फैसले के कई पहलुओं पर गंभीरता से विचार करना होगा। यह एक अंतरराष्ट्रीय समझौता है।

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इन सब मुद्दों के बारे में पीएम को सीधे तौर पर सोमवार को होने वाली बैठक में जानकारी दी जाएगी।सिंधु जल समझौते के निरस्त करने की बात गुरुवार को तब आई थी जब विदेश मंत्रालय ने कहा था कि कोई भी समझौता आपसी भरोसे व विश्वास से चलता है। जब विश्वास ही नहीं रहेगा तो समझौते का क्या मतलब है। विदेश मंत्रालय के इस बयान को पहली बार भारत की तरफ से पाकिस्तान को इस समझौते को रद्द करने की धमकी के तौर पर देखा गया था।

उसके बाद उमा भारती ने इस पर बैठक बुला कर यह जता दिया था कि भारत का रुख इस बार कुछ और है। और अब पीएम के स्तर पर बुलाई गई बैठक पूरे हालात की गंभीरता को दर्शाती है।बताते चलें कि इस समझौते के लागू होने के बाद भारत व पाकिस्तान के बीच दो बार बड़े युद्ध हो चुके हैं लेकिन अभी तक भारत ने इस रद्द करने की बात नहीं कही है। वैसे कई बार इस तरह की मांग उठती रहती है।

हाल ही में भाजपा के बुजुर्ग नेता व पूर्व वित्त व विदेश मंत्री यशवंत सिन्हा ने एक आलेख लिख कर यह मांग की ती कि भारत को तत्काल प्रभाव से सिंधु जल समझौते को रद्द करने का कदम उठाने चाहिए। पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था में इस समझौते का काफी महत्व है क्योंकि उसे इसके जरिए ही झेलम, चेनाब व सिंधु नदी का 80 फीसद पानी मिलता है।

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भारत-पाकिस्तान सिंधु नदी संधि से जुड़ी खास बातें

करीब एक दशक तक विश्व बैंक की मध्यस्थता में बातचीत के बाद 19 सितंबर 1960 को समझौता हुआ। संधि पर तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू - पाकिस्तान के राष्ट्रपति जनरल अयूब खान ने हस्ताक्षर किए।इसके तहत सिंधु घाटी की 6 नदियों का जल बंटवारा हुआ था सिंधु बेसिन की नदियों को दो हिस्सों में बांटा गया था। 3 नदियों का नियंत्रण भारत के पास है इनमें व्यास, रावी और सतलज आती हैं। 3 नदियों का नियंत्रण पाकिस्तान के पास है इनमें सिंधु, चिनाब और झेलम आती हैं। पश्चिमी नदियों पर भारत का सीमित अधिकार है। भारत अपनी 6 नदियों का 80 फीसद पानी पाकिस्तान को देता है। जबकि भारत के हिस्से में क़रीब 20 फीसद पानी आता है।


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