नई दिल्ली, प्राइम टीम ।  हमारे शरीर के लिए विटामिन बेहद जरूरी हैं। शरीर में किसी खास विटामिन की कमी को डॉक्टरों की सलाह के अनुसार सप्लीमेंट्स के जरिए पूरा भी किया जा सकता है। लेकिन हमें ध्यान रखना होगा कि किसी विटामिन की ओवरडोज लेने से आपकी जान भी जा सकती है। हाल ही में यूके में एक मामला सामने आया है कि जिसमें लगातार 9 महीने तक विटामिन डी का सप्लीमेंट लेने से एक व्यकक्ति की जान चली गई। हाल ही में अमेरिकन कॉलेज ऑफ फिजिशियन द्वारा प्रकाशित एक अध्ययन में दावा किया गया है कि विटामिन डी और कैल्शियम के सप्लीमेंट एक साथ लेने से महिलाओं में दिल की बीमारियां होने का खतरा बढ़ जाता है।

इस अध्ययन में डॉक्टरों ने महिलाओं में कैल्शियम और विटामिन डी के प्रभाव पर अध्ययन किया। इसमें पाया गया कि कैल्शियम और विटामिन डी के सप्लीमेंट महिलाओं में दिल की बीमारी का खतरा बढ़ाते हैं। इस अध्ययन में शामिल महिलाओं की स्वास्थ्य स्थितियों में विशेषज्ञता रखने वाले क्लीवलैंड क्लिनिक की एमडी, होली थैकर के मुताबिक, रजोनिवृत्ति के बाद महिलाओं में ऑस्टियोपोरोसिस विकसित होने का खतरा अधिक होता है क्योंकि इस दौरान एस्ट्रोजन कम होने पर हड्डियों का घनत्व कम हो जाता है। ऑस्टियोपोरोसिस को कम कैल्शियम के स्तर से जोड़ा गया है, और विटामिन डी कैल्शियम अवशोषण में मदद करता है। लेकिन इन सप्लीमेंट्स की अधिकता से महिलाओं में दिल की बीमारी का खतरा बढ़ता है।

ऐसी कोई दवा नहीं है जिसका साइट इफेक्ट नहीं है। ऑर्गनाइज्ड मेडिसिन अकेडेमिक गिल्ड के सेक्रेटरी जनरल डॉ ईश्वर गिलाडा कहते हैं कि आप किसी विटामिन का सप्लीमेंट लें या मिनरल का बना डॉक्टर से सलाह लिए नहीं लेना चाहिए। विटामिन सी जैसे सप्लीमेंट पानी में घुल जाते हैं। ऐसे में आपके शरीर को जितनी जरूरत होती है उतना ही शरीर में रुकता है। बाकी पानी के साथ बाहर निकल जाता है। लेकिन विटामिन ए और विटामिन डी पानी में नहीं घुलते हैं। आप अगर ज्यादा सप्लीमेंट लोगों तो ये शरीर में जमा होते जाएंगे। निश्चित तौर पर भारत में विटामिन डी की कमी बहुत से लोगों में है। लेकिन बिना डॉक्टर की सलाह के इसके सप्लीमेंट नहीं लेने चाहिए। कई मामलों में देखा गया है कि विटामिन डी की अधिकता या हाइपर कैल्सीमिया से दिल का दौरा पड़ने से मौते हुईं हैं। ऐसे में बिना डॉक्टर की सलाह के कोई भी दवा या सप्लीमेंट नहीं लेना चाहिए।

विटामिन डी शरीर में कैल्शियम को अवशोषित करने में मदद करता है। दिल्ली मेडिकल काउंसिल की साइंटिफिक कमेटी के चेयरमैन डॉक्टर नरेंद्र सैनी कहते हैं कि विटामिन डी की शरीर में अधिकता से शरीर में कैल्शियम काफी बढ़ जाता है। विटामिन डी पानी में घुलता नहीं है। ऐसे में ये शरीर में जमा होता रहता है। विटामिन डी की अधिकता से शरीर में कैल्शियम जमा होता जाएगा जिससे हाइपर कैल्शिमिया भी होने का खतरा होता है। शरीर में कैल्शियम ज्यादा होने पर शरीर में स्टोन होने का खतरा बढ़ जाता है, दिल की रिदम बिगड़ सकती है, किडनी फेल हो सकती है। समय पर इसे नियंत्रित नहीं किया गया तो मरीज की मौत भी हो सकती है। ऐसे में बिना डॉक्टर की सलाह के विटामिन डी नहीं लेना चाहिए। डॉक्टर भी विटामिन डी उन्हीं मरीजों को देते हैं जिनमें इसकी बेहद कमी है। मरीजों को काफी हाई डोज के विटामिन सप्लीमेंट दिए जाते हैं लेकिन एक निश्चति समय के लिए।

अमेरिका के नेशनल हेल्थ इंस्टीट्यूट की ओर से किए गए एक अध्ययन के मुताबिक विटामिन डी हमारे दिल की सेहत को बेहतर बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। विटामिन डी शरीर में एंडोथेलियल बनाता है जो ब्लडप्रेशर को नियंत्रित करने के लिए मांसपेशियों के लचीला बनाता है। वहीं वैज्ञानिकों ने अध्ययन में पाया है कि टाइप 2 डाइबिटीज से ग्रसित मरीजों में विटामिन डी की कमी से दिल की बीमारी का खतरा कई गुना बढ़ जाता है।

विटामिन डी की कितनी है जरूरत 

अमेरिका के नेशनल हेल्थ इंस्टीट्यूट के मुताबिक ज्यादातर वयस्कों को प्रतिदिन 15 माइक्रोगाम (400IU) विटामिन डी की आवश्यकता होती है। वहीं 70 से अधिक उम्र के लोगों के लिए प्रतिदिन 20 माइक्रोग्राम विटामिन डी की जरूरत होती है। विटामिन डी शरीर में कई भूमिकाएँ निभाता है, जिसमें हड्डी के कैल्सीफिकेशन और विकास के लिए आंत में कैल्शियम अवशोषण को बढ़ावा देना, सूजन को कम करना और कोशिका वृद्धि को नियंत्रित करना शामिल है।

विटामिन डी हमें भोजन से और सूरज की रौशनी में हमारी त्वचा के जरिए मिलता है। इसके हमारे शरीर में अवशोषित होने का मा लिवर में होता है। यहां विटामिन डी को हाइड्रॉक्सिलेटेड रूप में परिवर्तित किया जाता है जिसे 25-हाइड्रॉक्सीविटामिन डी (25(ओएच)डी) कहा जाता है। 25(OH)D को फिर गुर्दे में हाइड्रॉक्सिलेटेड करके शारीरिक रूप से सक्रिय रूप, 1,25-डायहाइड्रॉक्सीविटामिन डी में बदल दिया जाता है।

पौष्टिक आहार, कैल्शियम और विटामिन-डी की करें पूर्ति

सीके बिरला अस्पताल के हड्डी तथा जोड़ रोग विशेषज्ञ डा. देबाशीष चंदा का कहना है कि शरीर में अगर कैल्शियम और विटामिन-डी की कमी है तो हड्डियों में दर्द होना शुरू होगा। हमें खाने में पौष्टिक आहार का अधिक सेवन करना होगा ताकि शरीर में कैल्शियम की कमी न रहे। विटामिन-डी की पूर्ति करने के लिए दवा है, लेकिन अगर सुबह की धूप में कुछ समय बिताया जाए, तो अच्छा लाभ मिलेगा। हड्डियों को स्वस्थ रखने के लिए कैल्शियम बहुत जरूरी है। शरीर में पर्याप्त मात्रा में कैल्शियम पूरा करने के लिए दूध से बनी चीजें- जैसे पनीर, दही के अलावा बादाम, चावल, सोया, हरी पत्तेदार सब्जियों का सेवन करें।

वह सुझाव देते हैं कि मौसम के हिसाब से कुछ चीजें खानी ही चाहिए। इससे शरीर को प्रोटीन मिलता है। हड्डियों को मजबूत रखने के लिए प्रोटीन का सेवन बहुत जरूरी है। अगर किसी की हड्डी टूट जाती है, तो उसे जल्द ठीक करने में प्रोटीन बड़ा लाभ देता है। दूध, पनीर, दही, प्रोटीन अच्छे स्त्रोत है। इसके अलावा कद्दू के बीज, मूंगफली, अमरूद में अच्छा प्रोटीन है।

कैलोरी की कितनी मात्रा

प्रत्येक व्यक्ति को शरीर, उम्र, लिंग के आधार पर अलग-अलग कैलोरी की मात्रा की आवश्यकता होती है। 20 से 30 वर्ष की उम्र तक सबसे ज्यादा कैलोरी की आवश्यकता होती है.जहां 25 वर्ष के एक व्यक्ति को 2300 कैलोरी प्रतिदिन आवश्यक होती है, तो वहीं उम्र बढ़ने के साथ यह मात्रा कम होती जाती है.विशेषज्ञों की मानें, तो 25 वर्ष के बाद प्रत्येक दस वर्ष में कैलोरी ग्रहण करने की क्षमता में 2 प्रतिशत की कमी आ जाती है.उदाहरण के तौर पर अगर 25 वर्ष की उम्र में आपके शरीर को 2300 कैलोरी प्रतिदिन जरूरी होती है, तो वहीं 35 वर्ष की उम्र में आपकी कैलोरी क्षमता 2254 कैलोरी होगी. जहां तक लिंग के आधार पर कैलोरी ग्रहण करने की क्षमता की बात है, तो महिलाओं को पुरूषों की अपेक्षा कम कैलोरी की आवश्यकता होती है.गर्भवती महिलाओं को 300 कैलोरी प्रतिदिन और स्तनपान के दौरान 500 कैलोरी आवश्यकता होती है।