पूर्व आप नेता का बयान, कुर्सी बचाने को केजरीवाल ने बांटी थी पद की रेवड़ियां
आम आदमी पार्टी नेता आनंद कुमार ने बताया कि यह केजरीवाल के लिए आनेवाली बड़ी मुश्किलों का संकेतभर है।
नई दिल्ली, [स्पेशल डेस्क]। दिल्ली की सत्ताधारी आम आदमी पार्टी को चुनाव आयोग ने तगड़ा झटका देते हुए कहा है कि उनके सभी 20 विधायकों के खिलाफ लाभ के दोहरे पद के मामले में सुनवाई जारी रहेगी। दिल्ली हाईकोर्ट पिछले साल ही सितंबर में इन विधायकों की संसदीय सचिव के तौर पर नियुक्तियों को रद्द कर चुका है।
लाभ के पद का बनता है मामला, जारी रहेगी सुनवाई- चुनाव आयोग
प्रशांत पटेल की तरफ से लगाई गई आम आदमी पार्टी से संबंधित याचिका में चुनाव आयोग ने जवाब देते हुए कहा- आयोग यह राय रखता है कि जवाबदेह पक्ष ने 13 मार्च 2015 से लेकर 8 सितंबर 2016 तक संसदीय सचिव का पद लेकर दोहरे लाभ के पद पर रहे। और दिल्ली हाईकोर्ट की तरफ से मांगे गए जवाब में जो उन्हें दलील दी वह कानूनी तौर पर सही नहीं है। इसलिए, केस की योग्यता को लेकर बिना किसी पूर्वाग्रह के जिन लाभ के दोहरे पद को लेकर जवाबदेह लोगों की सदस्यता खत्म करने को लेकर सवाल उठे हैं वह जरनैल सिंह (जो राजौरी गार्डन से विधायक थे) जो अब इस्तीफा दे चुके हैं उन्हें छोड़कर बाकियों पर लागू होता है।
हाईकोर्ट के फैसले से दोहरे लाभ के मामले पर असर नहीं
चुनाव आयोग के एक अधिकारी ने एक अखबार के साथ बातचीत में बताया कि हालांकि दिल्ली हाईकोर्ट ने इन विधायकों की संसदीय सचिव के तौर पर नियुक्ति रद्द कर दी उसके बावजूद 21 विधायक मार्च 2015 से लेकर सितंबर 2016 तक लाभ के दोहरे सदस्यता के पद पर रहे। ऐसे में दोहरी सदस्यता के मामले पर हाईकोर्ट के फैसले का कोई असर नहीं पड़ेगा।
चुनाव आयोग के अधिकारी ने आगे बताया कि सु्प्रीम कोर्ट के ऐसे कई फैसले आए हैं जब नियुक्तियां रद्द कर दी गई, ऐसे में उन्होंने जो भी फैसले लिए और कदम उठाए वह छानबीन का विषय बना।
‘केजरीवल ने कुर्सी बचाने के लिए उठाया था ऐसा कदम’
चुनाव आयोग की तरफ से आप पर दोहरी सदस्यता के मामले की सुनवाई जारी रखने के फैसले के बाद Jagran.com से ख़ास बातचीत में पूर्व आम आदमी पार्टी नेता आनंद कुमार ने बताया कि यह केजरीवाल के लिए आने वाली बड़ी मुश्किलों का संकेतभर है।
केजरीवाल ने क्यों किया था ऐसा
आनंद कुमार ने बताया कि मुख्यमंत्री केजरीवाल ने 21 विधायकों को संसदीय सचिव का पद दिया था, उसके पीछे बड़ा खेल था। दरअसल, पार्टी के प्रशांत भूषण, शांति भूषण और उन्हें निकालने के बाद पार्टी के अंदर जो मंत्री नहीं बने थे उन असंतुष्ट लोगों को संसदीय सचिव का पद दिया गया, ताकि उन्हें खुश रखा जा सके। आनंद कुमार ने कहा कि सरकार चुने हुए विधायकों में से सिर्फ 10 फीसदी को ही मंत्री के पद पर बिठा सकती है। ऐसे में केजरीवाल के पास कोई और विकल्प नहीं था।
हालांकि आम आदमी पार्टी के प्रवक्ता दिलीप पांडे ने 21 विधायकों के मामले में चुनाव आयोग के फैसले को लेकर एक ट्वीट किया है। इस ट्वीट में उन्होंने लिखा है कि आप के 21 विधायकों को कोई खतरा नहीं है। कुछ लोग भ्रम फैला रहे हैं। इस मैसेज को SM और व्हाट्सएप पर शेयर करें।
अभी .@AamAadmiParty के 21 MLAs को किसी भी तरह का कोई खतरा नही है. कुछ लोग भ्रम फैला रहे हैं, इस मैसेज को SM और व्हाट्सएप्प पर शेयर करें।🙏 pic.twitter.com/gXOjifvBNQ— Dilip K. Pandey (@dilipkpandey) June 24, 2017
क्या है पूरा मामला?
दरअसल, दिल्ली सरकार ने मार्च 2015 में 21 आम आदमी विधायकों को संसदीय सचिव के पद पर नियुक्त कर दिया था। जिसे प्रशांत पटेल नाम के वकील ने लाभ का पद बताकर राष्ट्रपति के पास शिकायत करके 21 विधायकों की सदस्यता खत्म करने की मांग की थी। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने मामला चुनाव आयोग को भेजा और चुनाव आयोग ने मार्च 2016 में 21 आप विधायकों को नोटिस भेजा, जिसके बाद इस मामले पर सुनवाई शुरू हुई। केजरीवाल सरकार ने पिछली तारीख से कानून बनाकर संसदीय सचिव पद को लाभ के पद के दायरे से बाहर निकालने की कोशिश की, लेकिन राष्ट्रपति मुखर्जी ने बिल लौटा दिया।