एक स्कूल से अंधेरा मिटाने में करें मदद ताकि बन सके सोलर स्कूल
एक स्कूल जो कानपुर से करीब 40 किलोमीटर दूर है वहां पर सबसे बड़ी समस्या बिजली की है। ऐसे में लोगों के सहयोग से सोलर पैनल के जरिए छात्रों की ये समस्या हमेशा के लिए दूर हो सकती है।
कानपुर। भारत में जितनी बिजली की आपूर्ति है उसके मुकाबले कई गुना ज्यादा उसकी मांग है, यानि दोनों के बीच काफी अंतर है। इसके पीछे के कारणों पर गौर करें तो इसके कई सारे कारक है जैसे- संसाधनों में कमी, उपकरण, बिजली के पर्याप्त बुनियादी ढांचे का ना हो पाना।
पृष्ठभूमि-
इस समय भारत में करोड़ों ऐसे लोग हैं जिनके पास बिजली की पहुंच तक नहीं है। हालांकि, अक्षय ऊर्जा की प्रचुर उपलब्धता की वजह से इन कमियों को पूरा किया जा सकता है। लेकिन, जागरूकता नहीं होने की वजह से, दोषपूर्ण उपकरण और उसके गलत तरीके से लगाने की वजह से हम लगभग पूरी तरह से ऊर्जा के गैर-नवीकरणीय रूपों पर आश्रित हैं, जो कि लंबे समय तक हमारी बिजली को आपूर्ति करने में सक्षम नहीं है।
सौर ऊर्जा पैनल्स की तरफ से ऊर्जा के इस टिकाऊ रूप के इस्तेमाल को बढ़ावा देने और लोगों को जागरूक करने का काम किया जाता है, ताकि लोग इस नवीकरणीय ऊर्जा की ओर आकर्षित हो सके।
भविष्य के लिए रोशनी
इसके अलावा, आधुनिक तकनीक और ऊर्जा की प्रचुरता की वजह से सौर ऊर्जा का इस्तेमाल ना केवल पर्यावरण के लिए फायदेमंद है, बल्कि इसके उत्पादन में प्रति इकाई आनेवाली लागत भी दीर्घावधि के लिए गैर-नवीकरणीय ऊर्जा के किसी भी रूपों के मुकालबे बेहद कम है। इसके साथ ही, इसके रख-रखाव में भी मामूली खर्च हैं।
प्रोजेक्ट-
बिजली की भारी कमी के चलते कानपुर के बिठूर-शिवराजपुर रोड पर बने किशुनपुर गांव का एक स्कूल आज इस अंधेरे का शिकार है। वहां पर सैकड़ों बच्चे आज अंधेरे में ही पढ़ने को मजबूर है। ऐसे में इस स्कूल में रोशनी लाने के लिए वहां पर सौर ऊर्जा लगाने की योजना में मदद करें। ये स्कूल कानपुर सिटी से महज 40 किलोमीटर दूर है, जो एक ऐतिहासिक जगह भी है। बिठूर तहसील नानाराव पेशवा का गृह क्षेत्र है।
ये स्कूल किशुनपुर के रामकृष्ण नाम के एक शिक्षक ने टिन की छत के नीचे शुरू किया था, जिसमें करीब 200 बच्चे पढ़ते थे।
सैकड़ों बच्चों के भविष्य से जुड़े इस स्कूल की क्षमताओं को देखते हुए शिक्षा के क्षेत्र में काम कर रहे गैर-सरकारी संगठन राउंड टेबर ऑफ इंडिया(आरटीआई) के कानपुर हैरिटेज राउंड टेलब125(KHRT 125) ने इस ओर कदम बढ़ाया और अपने अंदर लेकर इस स्कूल की बिल्डिंग के निर्माण का काम करवाया।
केएचआरटी 125 के सदस्य और जमीन के मालिक ने मिलकर एक सोसाइटी बनायी। जिसके बाद इस स्कूल का पुनर्निर्माण किया गया इस नई बिल्डिंग का साल 2011 में उद्घाटन किया गया। उस वक्त वहां पर करीब 605 छात्र पढ़ रहे थे।
सोसायटी की तरफ से इस स्कूल में शिक्षा के स्तर को बेहतर करने के लिए कई कदम उठाए गए जैसे- यहां पर शिक्षकों के लिए कार्यशाला का आयोजन कराया गया, ताकि उनके पढाने की गुणवत्ता में सुधार हो सके। इसके साथ ही, समय को देखते हुए शिक्षकों के वेतन भी केएचआरटी 125 के सदस्यों के सहयोग की बदौलत बढाए गए ताकि ये सुनिश्चित हो सके कि जो बच्चे वहां पर पढ़ रहे हैं उनकी स्कूल फीस सामान्य रह पाए। जिससे गरीब तबके से आए बच्चे की पहुंच इस स्कूल में आसानी से बनी रहे।
हालांकि, यहां का सबसे करीबी बिजली का खंभा स्कूल से करीब आधे किलोमीटर की दूरी पर है। ऐसे में लगातार इस स्कूल की बेहतरी के प्रयास के बावजूद अब तक यहां पर बिजली नहीं पहुंच सकी। किसी भी अल्पविकसित क्षेत्रों के विकास में बिजली एक बड़ी बाधा होती है ठीक इसी तरह इस स्कूल के सुचारू रूप से चलने में सबसे बड़ी बाधा यहां पर बिजली का ना होना है।
अगर यहां पर सौर ऊर्जा लगाया जाता है तो लंबे समय के लिए ऊर्ज के अनुकूल तरीके से इस समस्या से मुक्ति मिल सकती है। बिजली के ना होने के चलते इस वक्त सूर्य की रोशनी कक्षा के अंदर पर्याप्त मात्रा में नहीं होने से बच्चों की पढ़ाई पूरी तरह प्रभावित हो रही है। लोगों के सहयोग से जिस फंड को इकट्ठा किया जाएगा उसका इस्तेमाल कर सूर्य की रोशनी की मदद से उन सभी दस कक्षाओं का अंधेरा मिटाया जाएगा और पंखे लगाए जाएंगे। इससे उस स्कूल में एक अनुकूल सीखने का माहौल पैदा होगा और बच्चे बिना परेशानी पढ़ सकेंगे।
इसके अलावा, वर्तमान में इस स्कूल के अंदर पाटर पंप नहीं है जिसकी वजह से छात्रों को पानी पीने के लिए पास के कुएं का सहारा लेना पड़ रहा है। इस वजह से छात्रों को काफी समय बर्बाद जाता है और थकान अलग होती है। पानी के नहीं होने के चलते ना सिर्फ स्वच्छ पानी की समस्या है बल्कि इससे छात्रों को शौचालय में भी काफी दिक्कत होती है।
अगर यहां पर सौर ऊर्जा लगा दिया जाता है एक सौर ऊर्जा से चलनेवाले पंप लगाकर पानी की समस्या को भी हल किया जा सकता है। साथ ही, रोशनी और पानी के अलावा आसपास के गांवों में लोगों को जागरूक करने में भी मदद मिलेगी जो बिजली के ना होने और जागरूकता के अभाव में अंधेरे में रहने को मजबूर हैं।
यह सुनिश्चित किया जाएगा कि स्कूल के शिक्षक और छात्र सौर ऊर्जा के उपकरणों के रख-रखाव में सक्रिय भूमिका निभाएंगे। साथ ही, लूप सोलर की मदद से स्कूल में हायब्रिड सोलर सिस्टम लगाया जाएगा ताकि स्कूल की जितना आवश्यकताएं हैं उसे पूरी की जा सके।