प्राइम टीम, नई दिल्ली। भारत में इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्युफैक्चरिंग बढ़ने के साथ सेमीकंडक्टर की मांग भी बढ़ रही है। इसमें स्मार्टफोन का बड़ा योगदान है। वित्त वर्ष 2022-23 में देश में 16.5 अरब डॉलर के इंटीग्रेटेड सर्किट का आयात हुआ जिसमें से 12 अरब डॉलर का आयात सिर्फ मोबाइल फोन के लिए था। वर्ष 2023 में भारत में 103 अरब डॉलर की इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्युफैक्चरिंग हुई। अगर इसमें 25% से 30% सेमीकंडक्टर कम्पोनेंट माना जाए तो उनका हिस्सा 26 से 31 अरब डॉलर का था। वर्ष 2026 तक भारत में इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादन 300 अरब डॉलर तक पहुंच जाने का अनुमान है और तब सेमीकंडक्टर की जरूरत 90 से 100 अरब डॉलर की होगी। यह आने वाले वर्षों में भारत के लिए बड़ा अवसर है। देश में सेमीकंडक्टर उत्पादन होने से आयात पर निर्भरता कम होगी। चिप बनाने वाली कंपनियां बेहद स्पेशलाइज्ड वैल्यू चेन पर निर्भर हैं। उन्हें आकर्षित करने के लिए भारत को यह वैल्यू चेन बनानी पड़ेगी।

इंडिया इलेक्ट्रॉनिक्स एंड सेल्यूलर एसोसिएशन (आईसीईए) ने भारत में सेमीकंडक्टर डिजाइन की मौजूदा स्थिति और इसकी क्षमताओं का विस्तृत आकलन किया है और बताया है कि आगे क्या करने की जरूरत है। गुरुवार को जारी रिपोर्ट में इसने ग्लोबल सेमीकंडक्टर मार्केट का अध्ययन करते हुए यह सिफारिश भी की है कि उनमें से किन बातों को भारत में अपनाया जा सकता है।

एंट्री लेवल से शुरुआत करना उचित

पिछले 5 से 7 वर्षों के दौरान भारत में इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्युफैक्चरिंग का परिदृश्य काफी बदला है। इसमें मोबाइल मैन्युफैक्चरिंग का बड़ा योगदान है। बीते सात वर्षों के दौरान भारत की इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्युफैक्चरिंग में मोबाइल फोन का हिस्सा 10% से बढ़कर 44% हुआ है। वैसे भी दुनिया भर में स्मार्टफोन बिजनेस सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री का सबसे बड़ा ग्राहक है। स्मार्टफोन के बिल ऑफ़ मैटेरियल्स में 25 से 30 से प्रतिशत सेमीकंडक्टर ही होते हैं। इस हिसाब से देखा जाए तो वित्त वर्ष 2022-23 में भारत में स्मार्टफोन सेगमेंट में सेमीकंडक्टर की मांग 9 से 10 अरब डॉलर की थी। भारत में 2020-21 में 75 अरब डॉलर, 2021-22 में 87 अरब डॉलर और 2022-23 में 103 अरब डॉलर की इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्युफैक्चरिंग हुई।

भारत में महंगे फोन के लिए प्रतिस्पर्धी कीमत पर प्रोसेसर चिप बनाने में थोड़ा समय लग सकता है, इसलिए आईसीईए का कहना है कि शुरू में एंट्री लेवल के स्मार्टफोन के लिए प्रोसेसर चिप यहां बनाए जा सकते हैं। वह आर्थिक रूप से व्यवहार्य भी होगा। वर्ष 2023 में भारत में लगभग 15 करोड़ स्मार्टफोन की बिक्री हुई। इसमें से अगर 1.5 से 1.8 करोड़ एंट्री लेवल स्मार्टफोन के लिए भी देश में चिप बनाई जाए तो भारतीय फैब यूनिट को काफी मदद मिलेगी।

एसोसिएशन का कहना है कि भारत में प्रिंटेड सर्किट बोर्ड असेंबली (पीसीबीए) के आयात को हतोत्साहित करने की जरूरत है। इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्युफैक्चरिंग के हर वर्टिकल में पीसीबीए को बढ़ाने के लिए विशेष नीति चाहिए। नए इलेक्ट्रॉनिक्स प्रोडक्ट बनाने के लिए देश में रिसर्च और डेवलपमेंट में निवेश भी जरूरी है। इसके अलावा घरेलू स्तर पर सर्किट डिजाइन पर फोकस करना पड़ेगा।

दुनिया के 20% सेमीकंडक्टर डिजाइन इंजीनियर भारत में

खास बात यह है कि सेमीकंडक्टर डिजाइन में भारत बेहद मजबूत स्थिति में है। दुनिया के 20% सेमीकंडक्टर डिजाइन इंजीनियर भारत में ही हैं। ये इंजीनियर हर साल करीब 3000 चिप डिजाइन करते हैं। इस लिहाज से भारत ग्लोबल सेमीकंडक्टर डिजाइन कंपनियों के लिए काफी आकर्षक है। लेकिन ज्यादातर भारतीय इंजीनियर और स्टार्टअप बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए काम करते हैं, इसलिए देश के स्तर पर इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी नहीं बन पाती है। सेमीकंडक्टर डिजाइन में लागत अधिक आती है और भारत में फंडिंग का अभाव है। घरेलू डिजाइन कंपनियों के लिए सेमीकंडक्टर फैब तक एक्सेस की भी समस्या है।

आईसीईए ने भारत में सेमीकंडक्टर डिजाइन को बढ़ावा देने के लिए कुछ सिफारिशें की हैं। इनमें सेमीकंडक्टर डिजाइन में बड़ी भारतीय इंजीनियरिंग कंपनियों को बढ़ावा देना, चिप स्टार्टअप प्रोग्राम को प्रोत्साहन देना, बड़ी कंपनियों को फंड जुटाने में मदद के साथ इंसेंटिव देना, चिप डिजाइन रणनीति को प्राथमिकता देना और स्किल डेवलपमेंट शामिल हैं। इसका कहना है कि सेमीकंडक्टर डिजाइन को अलग करके नहीं सोचना चाहिए, बल्कि पूरी इलेक्ट्रॉनिक्स वैल्यू चेन का मूल्यांकन किया जाना चाहिए ताकि सेमीकंडक्टर डिजाइन को बढ़ावा मिल सके।

भारत में रिसर्चरों का औसत विश्व औसत के छठे हिस्से के बराबर

आईसीईए के अनुसार रिसर्च एंड डेवलपमेंट पर ध्यान देना बहुत जरूरी है। दक्षिण कोरिया अपनी जीडीपी का 4.5%, जर्मनी 3.1%, जापान 3.3%, अमेरिका 3.0% और चीन 2.1% रिसर्च एंड डेवपलपमेंट पर खर्च करता है। भारत में यह सिर्फ 0.65% है। भारत में आरएंडडी में काम करने वालों की संख्या भी बढ़ाने की जरूरत है। वर्ल्ड बैंक के अनुसार 2018 में दुनिया में प्रति 10 लाख लोगों पर 1,597 रिसर्चर थे जबकि भारत में यह औसत सिर्फ 253 लोगों का था। चीन, रूस, मलेशिया और थाईलैंड का औसत विश्व औसत के आसपास है। दक्षिण कोरिया में प्रति 10 लाख आबादी पर सबसे अधिक 8,714 रिसर्चर हैं। ज्यादा रिसर्चर का फायदा इन देशों को अधिक पेटेंट में भी मिलता है।

एसोसिएशन का कहना है कि चीन की सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री पर वहां की सरकार का काफी हद तक नियंत्रण है। इसलिए पारंपरिक चिप उत्पादन में वह बाकी दुनिया के लिए खतरा बन सकता है। मौजूदा भू-राजनीतिक परिस्थितियों में भारत अनेक कंपनियों तथा देशों के लिए विकल्प उपलब्ध कराने की स्थिति में है।

भारत के पक्ष में प्रमुख बातेंः सेमीकंडक्टर डिजाइन के लिए इंजीनियरों के बड़ी संख्या, बड़ा और विविध औद्योगिक आधार जिसे इंडस्ट्री की जरूरत के मुताबिक बदला जा सकता है, राजनीतिक स्थिरता, विकसित देशों का भरोसेमंद पार्टनर, सेमीकंडक्टर क्षेत्र में निवेश में सरकार की तरफ से किए गए प्रयास।

सरकार की तरफ से की गई पहल

  • इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट्स पॉलिसीः 2016 में लांच। उद्देश्य आईपी क्रिएशन, उसकी रक्षा का वातावरण बनाना।
  • स्टार्टअप इंडियाः 2016 में लांच। इसका उद्देश्य उद्यमिता और इनोवेशन को बढ़ावा देना।
  • अटल इनोवेशन मिशनः 2016 में लांच। इसका उद्देश्य युवा छात्रों में इनोवेशन की संस्कृति विकसित करना।
  • इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी फैसिलिटेशन सेंटरः उद्देश्य इनोवेटर्स की मदद और उनके आईपी अधिकारों की रक्षा करना।

चीन में कैसे डेवलप हुई सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री

चीन की औद्योगिक नीति में 1960 के दशक से ही सेमीकंडक्टर पर ध्यान दिया गया, हालांकि सफलता चुनिंदा क्षेत्रों तक सीमित रही। पारंपरिक या लीगेसी चिप (28 एनएम से ज्यादा) के मामले में चीन को सफलता मिली। वहां इसमें 3300 से अधिक सेमीकंडक्टर डिजाइन फर्म हैं। वहां जो नीति अपनाई गई उसमें सरकार की तरफ से व्यापक फंडिंग, इन्सेंटिव तथा वैश्विक कंपनियों का अधिग्रहण करना शामिल हैं। सरकारी फंडिंग अधिक होने के चलते इस सेक्टर में निजी क्षेत्र की भूमिका कम रही।

जर्मनी, जापान, दक्षिण कोरिया, ताइवान, इंग्लैंड और अमेरिका की कंपनियां सेमीकंडक्टर इनोवेशन में अग्रणी हैं। लेकिन जिस तरह चीन अपनी कंपनियों की मदद कर रहा है, उससे इन वैश्विक कंपनियों के लिए प्रतिस्पर्धी बने रहना मुश्किल होगा। हालांकि चीन की बड़ी कमजोरी यह है कि एडवांस टूल्स के मामले में वह पश्चिमी देशों पर काफी ज्यादा निर्भर है। पश्चिमी देशों के प्रतिबंध और कोरोना महामारी ने चीन की सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री को काफी प्रभावित किया है।

सेमीकंडक्टर डिजाइन में नए तरह के चिप की टेस्टिंग और मैन्युफैक्चरिंग के लिए मास्क सेट बनाना काफी खर्चीला होता है, और यह डिजाइन इकोसिस्टम विकसित करने में सबसे बड़ी बाधा है। चीन की सरकार ने मास्क सेट बनाने में 80% तक पूंजीगत सहायता दी। विशेष रणनीति के तहत चीन ने सेमीकंडक्टर में अग्रणी अमेरिका तथा अन्य देशों में रहने वाले उन चीनी नागरिकों को स्वदेश वापस बुलाया जो सेमीकंडक्टर के मामले में काफी कुशल थे। घरेलू सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री डेवलप करने में उनकी मदद ली।

सेमीकंडक्टर फर्मों को पर्याप्त पूंजी उपलब्ध कराने के लिए 2019 में शांघाई स्टॉक एक्सचेंज में साइंस एंड टेक्नोलॉजी इन्नोवेशन बोर्ड बनाया गया जो स्टार मार्केट नाम से मशहूर है। यह अमेरिका के नास्डैक स्टॉक एक्सचेंज की तर्ज पर है। वर्ष 2023 तक स्टार मार्केट में 437 कंपनियां लिस्टेड थीं जिनका कुल मार्केट कैप 852 अरब डॉलर था। इस मार्केट के जरिए चीन में एक मजबूत वेंचर कैपिटल इकोसिस्टम डेवलप हुआ।

भारत के लिए सीखः आईसीईए के अनुसार, भारत को घरेलू सेमीकंडक्टर डिजाइन कंपनियों की मदद के लिए विशेष पॉलिसी बनानी चाहिए। इन कंपनियों को शुरुआत में पर्याप्त वित्तीय मदद देनी चाहिए। चीन की सेमीकंडक्टर प्रोडक्ट डिजाइन पॉलिसी काफी सफल रही है। भारत उसी तर्ज पर मास्क सेट पर कैपेक्स में सब्सिडी दे सकता है। भारत को ऐसे उपाय भी करने पड़ेंगे ताकि चीन से यहां मेमोरी चिप की डंपिंग न हो।

सिंगापुर में सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री

सिंगापुर में 300 से ज्यादा सेमीकंडक्टर कंपनियां हैं। सिंगापुर की सेमीकंडक्टर वायर बॉन्डर में 70% और सेमीकंडक्टर उपकरण बाजार में 20% हिस्सेदारी है। यहां टैक्स के नियम इंडस्ट्री के अनुकूल हैं। इसने 80 से ज्यादा देशों साथ दोहरे कराधान से बचने का समझौता कर रखा है। यहां का रेगुलेटरी ढांचा विदेशी निवेशकों को प्रतिस्पर्धी वातावरण देता है। विदेशी ओनरशिप पर किसी तरह का अंकुश नहीं है। दुनिया की 24 सबसे बड़ी लॉजिस्टिक्स कंपनियां सिंगापुर में हैं, इसलिए यहां से चिप की ग्लोबल सप्लाई आसान होती है।

भारत के लिए सीखः भारत को सिंगापुर सरकार की नीतियों के उन पहलुओं पर ध्यान देना चाहिए जिनसे सेमीकंडक्टर कंपनियां भारत में निवेश के लिए प्रोत्साहित हों।

मलेशिया में सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री

मलेशिया की सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री मुख्य रूप से पारंपरिक लेबर इन्टेंसिव आउटसोर्सड सेमीकंडक्टर असेंबली एंड टेस्ट (ओएसएटी) बिजनेस में है। यह बहुराष्ट्रीय कंपनियों को असेंबलिंग, पैकेजिंग, टेस्टिंग जैसी आउटसोर्स सर्विस देती है। वहां फाइनेंस और टैक्स का नीतिगत ढांचा काफी उदार है। उसने फ्री ट्रेड एग्रीमेंट भी कर रखे हैं। पिछले 50 वर्षों में मलेशिया ने ऑटोमेशन, इलेक्ट्रॉनिक्स, पैकेजिंग, प्लास्टिक, प्रिसीजन इंजीनियरिंग और मेटल वर्क, सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट जैसे क्षेत्रों में काफी तरक्की की है। यह सब सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री के लिए वैल्यू चेन का काम करती हैं।

भारत के लिए सीखः पेनांग जैसे इलाकों में क्लस्टर आधारित अप्रोच से मलेशिया को काफी फायदा मिला है। भारत इससे सीख लेकर सेमीकंडक्टर इकोसिस्टम डेवलप कर सकता है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2022 की दूसरी छमाही में कुछ गिरावट के बावजूद 2022 में ग्लोबल सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री की बिक्री रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई। उस साल 3.3% ग्रोथ के साथ पूरा मार्केट 574 अरब डॉलर का रहा। हालांकि 2023 में इसमें 8.2% की गिरावट आई और कुल बिक्री 526.8 अरब डॉलर की रही। वर्ल्ड सेमीकंडक्टर ट्रेड स्टैटिस्टिक्स का आकलन है कि 2024 में सेमीकंडक्टर बाजार एक बार फिर नई ऊंचाई पर पहुंचेगा।