दोषियों के चुनाव लड़ने पर आजीवन प्रतिबंध से चुनाव आयोग सहमत
चुनाव आयोग ने सुप्रीमकोर्ट में दाखिल अपने जवाबी हलफनामे में ये बात कही है।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। चुनाव आयोग दोषियों के चुनाव लड़ने पर आजीवन प्रतिबंध लगाये जाने के पक्ष में है। आयोग ने राजनीति के अपराधीकरण को रोकने की मांग वाली एक जनहित याचिका में दोषी करार लोगों को विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के लिए अयोग्य ठहराये जाने की मांग का समर्थन किया है। इतना ही नहीं आयोग ने जनप्रतिनिधियों, नौकरशाहों और न्यायपालिका से जुड़े लोगों के आपराधिक मुकदमों के शीघ्र निपटारे के लिए विशेष अदालतों के गठन की मांग का भी समर्थन किया है।
चुनाव आयोग ने सुप्रीमकोर्ट में दाखिल अपने जवाबी हलफनामे में ये बात कही है। भाजपा नेता और सुप्रीमकोर्ट के वकील अश्वनी कुमार उपाध्याय ने सुप्रीमकोर्ट में जनहित याचिका दाखिल कर मुख्यता तीन मांगे की हैं। आयोग ने दाखिल हलफनामे में कहा है कि वह जनहित याचिका में की गई पहली और दूसरी मांग का समर्थन करता है। उपाध्याय की याचिका में पहली मांग की है कि जनप्रतिनिधियों, नौकरशाहों और न्यायपालिका से जुड़े लोगों के आपराधिक मुकदमों के एक साल के भीतर निपटारे के लिए विशेष अदालतें गठित की जाएं और दोषी ठहराए गये लोगों को विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के लिए अयोग्य माना जाए।
दूसरी मांग में चुनाव सुधार से संबंधी विधि आयोग और संविधान समीक्षा आयोग की सिफारिशें लागू की जाएं। तीसरी मांग है कि चुनाव लड़ने के लिए न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता और अधिकतम आयु सीमा तय होनी चाहिए। आयोग ने तीसरी मांग के बारे में कहा है कि ये मुद्दा विधायिका के कार्यक्षेत्र में आता है और इसके लिए कानून में संशोधन की जरूरत होगी।
आयोग ने अपने हलफनामे में यह भी कहा है कि चुनाव सुधार के बारे में उसकी कानून मंत्रालय के विधायी विभाग के सचिव के साथ कई बैठकें हुई हैं। आयोग का कहना है कि विधि आयोग की चुनाव सुधार संबंधी 244वीं और 255वीं रिपोर्ट की सिफारिशों को लागू करने के बारे में उसने केन्द्र सरकार को प्रस्ताव भेजा है जो कि अभी सरकार के समक्ष विचाराधीन है। आयोग ने इस बारे में गत 25 जुलाई को कानून मंत्री को भेजे पत्र को भी जवाब के साथ संलग्न किया है। हालांकि केंद्र सरकार ने अभी तक याचिका का जवाब दाखिल नहीं किया है। मामले पर 28 मार्च को सुनवाई होगी।
उपाध्याय ने याचिका में कहा है कि न्यायपालिका या कार्यपालिका का कोई भी व्यक्ति किसी भी अपराध में दोषी ठहराया जाता है तो वह अपने आप निलंबित हो जाता है और फिर जीवनभर के लिए नौकरी से बाहर हो जाता है लेकिन विधायिका के लोगों पर ये नियम लागू नहीं होता उनके लिए नियम भिन्न है। सांसद विधायक दोषी करार और सजायाफ्ता होने के बावजूद अपनी राजनैतिक पार्टी बना सकता है उसका पदाधिकारी हो सकता है। यहां तक कि वह व्यक्ति सजा पूरी होने के छह साल बाद चुनाव लड़ सकता है और मंत्री भी बन सकता है। याचिका में दोषी करार सांसद विधायक पर जीवनभर के लिए रोक लगाने की मांग करते हुए कहा गया है कि ऐसा किये बगैर राजनीति का अपराधीकरण नहीं रुक सकता।