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MTCR का सदस्य बनने के लिए भारत का मुंह देखेगा चीन

चीन एमटीसीआर सदस्य बनने की कोशिश कर रहा है। ऐसे में आने वाले दिनों में इस समझौते में चीन को शामिल करने के प्रस्ताव पर भारत की सहमति भी लेनी होगी।

By Sanjeev TiwariEdited By: Published: Mon, 27 Jun 2016 09:05 PM (IST)Updated: Tue, 28 Jun 2016 09:59 AM (IST)
MTCR का सदस्य बनने के लिए भारत का मुंह देखेगा चीन

नई दिल्ली [जयप्रकाश रंजन]। कुछ दिन पहले एनएसजी में भारत की इंट्री की हर कोशिश को कुंद कर चुके चीन को आने एमटीसीआर में 'जैसे को तैसा' का सामाना करना पड़ सकता है। मिसाइल तकनीकी के हस्तांतरण व नियंत्रण से जुड़े अंतरराष्ट्रीय समझौता मिसाइल टेक्नोलॉजी कंट्रोल रिजीम (एमसीटीआर) भी परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) की तरह प्रतिष्ठित समझौता है। आज भारत इसका 35वां सदस्य बन गया। चीन इसका सदस्य बनने की कोशिश कर रहा है। ऐसे में आने वाले दिनों में इस समझौते में चीन को शामिल करने के प्रस्ताव पर भारत की सहमति भी लेनी होगी।

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भारत आज सोमवार को पहली बार किसी बड़े तकनीकी हस्तांतरण समझौते एमटीसीआर का सदस्य बना है। इस तरह के तीन और समझौते हैं जिसमें एक परमाणु आपूर्तिकर्ता सदस्यों का समूह एनएसजी भी है। एनएसजी में प्रवेश करने की भारतीय कोशिशों पर चीन व कुछ अन्य सदस्यों ने पिछले शुक्रवार को पानी फेर दिया है। एमसीटीआर का सदस्य बनने के बाद भारत के लिए एक तरफ जहां कम दूरी के अत्याधुनिक मिसाइलों के निर्यात करने की राह खुलेगी। दूसरी तरफ अमेरिका से मानवरहित आकाशीय वाहन (यूएवी) से जुड़ी द्रोन तकनीक को हासिल करना आसान हो जाएगा।

पढ़ेंः NSG में असफलता के बावजूद MTCR का सदस्य बनने जा रहा भारत

आज यहां एक सादे कार्यक्रम में विदेश सचिव एस जयशंकर ने फ्रांस के राजदूत अलेक्जेंड्रे जिगलर, नीदरलैंड के राजदूत अलफोंसस स्टॉलिंगा और लक्जेमबर्ग की लौरा हबर्टी की उपस्थिति में एमटीसीआर में शामिल होने की औपचारिकता पूरी की। उक्त तीनों देश इस समय एमटीसीआर की अध्यक्षता करने वाली समिति से जुड़े हुए हैं। इस महीने की शुरुआत में ही एमटीसीआर में प्रवेश करने का रास्ता साफ हुआ है। एमटीसीआर के पूर्णकालिक सदस्य बनने के बाद भारत इस समूह की अक्टूबर, 2016 में दक्षिण कोरिया में होने वाली बैठक में हिस्सा लेगा।

एमटीसीआर का सदस्य बनने के लिए चीन काफी समय से लगा है। वर्ष 1991 में चीन ने एमटीसीआर के नियमों को स्वीकार करने की सहमति जताई थी लेकिन बाद में इसने कदम वापस खींच लिए। बाद में वर्ष 2004 में चीन ने इसकी सदस्यता के लिए आवेदन किया लेकिन कई सदस्य इसके खिलाफ हैं। ऐसे में जब भी चीन को सदस्य बनाने के लिए फैसला किया जाएगा तो भारत की सहमति अहम होगा। एमटीसीआर की सदस्यता भी तभी मिलती है जब मौजूदा कोई सदस्य ऐतराज न करे।

हथियार निर्यातक बनने में मिलेगी मदद

एमटीसीआर के बाद अब जो तीन समूह बचे उनमें एनएसजी, आस्ट्रेलिया और वासेनर समूह शामिल हैं। विदेश मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि शेष बचे तीनों समूहों में भी भारत की इंट्री अब ज्यादा दिनों तक नहीं टाली जा सकेगी। एमटीसीआर का सदस्य बनने से भारत का एक अहम फायदा यह होगा कि उसने घरेलू और बाहरी सहयोग से जो मध्यम दूरी के मिसाइल तकनीकी तैयार किये हैं अब उन्हें दूसरे देशों को निर्यात किया जा सकेगा।

इस क्रम में रूस के सहयोग से विकसित ब्राह्मोस मिसाइल का उदाहरण दिया जा रहा है। दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों के अलावा कुछ दक्षिणी अमेरिकी देशों ने भी इसमें रुचि दिखाई है। भारत का दूसरा फायदा यह होगा उसे अमेरिका व रूस से क्रायोजेनिक राकेट इंजन की तकनीकी हासिल करने में आसानी होगी। इससे भारत के अंतरिक्ष अभियान को नई ऊर्जा व ताकत मिलेगी। बैलेस्टिक मिसाइल से बचाने वाली क्षमता विकसित करने में लगे भारतीय वैज्ञानिकों को भी इससे काफी मदद मिलेगी। साथ ही अमेरिका के आधुनिक द्रोन तकनीकी को भी हासिल करना भी अब आसान हो गया है।

भारत को अहम फायदा

1. ब्राह्मोस मिसाइल को निर्यात करना होगा आसान

2. क्रायोजेनिक इंजन की तकनीकी को हासिल करने में सहूलियत

3. देश के अंतरिक्ष कार्यक्रम की गति होगी तेज

4. मिसाइल हमले से बचाव वाले रक्षा कवच तकनीकी लेने की राह खुलेगी

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