Moonland of Ladakh: धरती पर रहकर ही करना चाहते हैं चांद की सैर, तो लद्दाख की ये जगह है एकदम बेस्ट
चांद के ऊपर बच्चों की लोरी और प्यार-मोहब्बत के गाने या चांदनी रात में चांदी के चम्मच से चटनी चटाई जैसे टंग ट्विस्टर आपने कई बार सुने होंगे। चांद पर पहला कदम रखने से लेकर इसकी सतह पर पानी खोजने तक हम इंसान आज भी इसके रहस्यों को सुलझा रहे हैं लेकिन क्या आप जानते हैं कि भारत में एक ऐसी जगह मौजूद है जो हूबहू चांद जैसी दिखती है?
लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। Moonland of Ladakh: एडवेंचर के शौकीन लोगों के लिए लेह-लद्दाख किसी जन्नत से कम नहीं है। यहां मौजूद पैंगोंग झील, मैग्नेटिक हिल, लेह पैलेस और चादर ट्रैक से जुड़ी रील्स तो आपने सोशल मीडिया पर कई बार देखी होंगी, लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि लेह और कारगिल के बीच एक छोटे-से गांव में इंडिया का मून लैंड भी छिपा हुआ है। बता दें, कि लेह से लगभग 120 किलोमीटर की दूरी स्थित लामायुरु गांव की जमीन ऐसी है, जो चांद की याद दिला देती है। आइए आपको बताते हैं इससे जुड़ी बेहद दिलचस्प बातें।
मून लैंड के नाम से मशहूर है ये जगह
लेह से लगभग 120 किलोमीटर दूर स्थित लामायुरू गांव, मून लैंड के नाम से मशहूर है। इससे जुड़ी मीडिया रिपोर्ट में एक वैज्ञानिक का कहना है कि यहां न तो पेड़-पौधे हैं और न ही ज्यादा हवा या कोई दवाब। यही वजह है कि इसे लद्दाख का मून लैंड कहा जाता है।
पहले हुआ करती थी झील
लद्दाख के इस मून लैंड का जियोलॉजिकल सिग्निफिकेंस भी है। बता दें, कि सूखा पड़ा ये इलाका हमेशा से ऐसा नहीं था। माना जाता है, कि 35-40 हजार साल पहले लामायुरू में एक बहुत बड़ी झील हुआ करती थी, जिसका पानी धीरे-धीरे चला गया, लेकिन झील में जो चिकनी मिट्टी जमा होती है, वह रह गई जिससे साल दर साल इसमें पड़ने वाली दरारों ने एक ऐसा रूप ले लिया, जो अब हमें चांद और मंगल ग्रह की याद दिलाता है।
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कहते हैं, कि 11वीं शताब्दी के आसपास नरोपा ऋषि ने उस झील को हटाकर यहां एक मठ (Monastery) की स्थापना कर दी थी। आज लामायुरू मोनेस्ट्री लेह-लद्दाख की सबसे मशहूर मोनेस्ट्रीज में से एक है।
वैज्ञानिकों के लिए खजाना है ये जगह
मंगल और चांद की सतह पर अध्ययन करने वाले शोधकर्ताओं और वैज्ञानिकों के लिए ये जगह किसी खजाने से कम नहीं है। मंगल पर भी इंसान पानी ढूंढ चुका है। वैज्ञानिक मानते हैं कि सैटेलाइट से मिले डेटा को सही ढंग से जानने के लिए धरती पर इन जगहों को समझना और इसपर शोध करना बेहद जरूरी है। ऐसे में साइंटिस्ट हों या फिर टूरिस्ट, लद्दाख की ये मोनेस्ट्री सभी को अपनी ओर आकर्षित करने के साथ-साथ चांद पर चलने का अनुभव भी देती है।
लामायुरू मोनेस्ट्री पहुंचने के लिए
लामायुरू लेह से करीब 120 किलोमीटर की दूरी पर है। लेह और कारगिल दोनों जगहों से सुबह 10 और दोपहर 12 बजे के करीब बस चलती है, जिससे आप पहाड़ों पर 5 बिल्डिंग में बनी हुई इस मोनेस्ट्री पर पहुंच सकते हैं। यहां हर साल युरू कबग्यात नाम का एक एनुअल फेस्टिवल भी होता है, जहां लामाओं द्वारा किया जाने वाला मास्क डांस और प्रकृति की खूबसूरती देखने के लिए देश-विदेश के कई टूरिस्ट पहुंचते हैं।
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