हौसला ही जवाब है, घूरती निगाहों और नापाक इरादों का
ऐसा ही एक मामला विनिता का है जिसने एमबीए करने के बाद दिल्ली में एक मल्टीनेशनल कंपनी जॉइन की। सैलरी अच्छी थी, सो उसका परिवार बेहद खुश था।
कुछ सवाल हैं, जो दबी जुबान किए जाते हैं, अक्सर हमें भी सुनाई देते हैं-
"मम्मी, वह आदमी आपको लगातार क्यों घूर रहा था?"
"मां, जब वह आदमी आपको देखने लगा तो आपने अपना दुपट्टा ठीक क्यों किया था?"
"मम्मी, आपने मेरे साथ पार्क में खेलना क्यों बंद कर दिया है?"
"भाई रात में अपने दोस्तों के साथ बाहर जा सकता है, फिर मैं क्यों नहीं? बताओ न मां।"
मां इन सवालों के जवाब में ज्यादातर चुप रह जाती है। वह इन हालातों से जूझती है, असहज हो जाती है, लेकिन कुछ बोलती नहीं। शायद इसीलिए बेटियों के ऐसे कई सवाल अनुत्तरित रह जाते हैं। ऐसे सवाल और इन सवालों के पनपने की वजह हमें अपने आस-पास ही नजर आ जाती है।
ऐसा ही एक मामला विनिता का है जिसने एमबीए करने के बाद दिल्ली में एक मल्टीनेशनल कंपनी जॉइन की। सैलरी अच्छी थी, सो उसका परिवार बेहद खुश था । लेकिन दो महीने में हीविनिता ने नौकरी छोड़ दी। जब घरवालों ने इसका कारण पूछा, तो वह भी विनिता ने बताने से इनकार कर दिया। यह जरूर बताया कि वह अब कोई नौकरी नहीं करेगी। लेकिन विनिता के चेहरे से उसका दुख और टूटे सपनों की तस्वीर साफ झलक रही थी।
कुछ दिनों बाद विनिता के माता-पिता ने उसकी एक सहेली से बात की, तो उनके पैरों तले जमीन खिसक गई।
दरअसल, विनिता के बॉस की बुरी नजर उस पर थी। वह विनिता के करीब आनेका मौका ढूंढता रहता था। एक दिन तो बॉस ने विनिता को काम के बहाने से ऑफिस में देर तक रोक लिया, विनिता किसी तरह वहां से निकल पाई। लेकिन इसके बाद वह इतनी डर गई कि फिर ऑफिस जाना छोड़ दिया। विनिता विपरीत हालातों से क्यों नहीं जूझ पाई? शायद इसलिए कि बचपन पार करते वक्त उसे उन सवालों के जवाब नहीं मिल पाए, जो उसने अपनी मां से पूछे होंगे।
विनिता जैसी कई लड़कियां ऑफिस में यौन शोषण का शिकार होती हैं। लेकिन जो लड़कियां हिम्मत जुटाकर आवाज उठाती हैं, उनकी जिंदगी अलग होती है। कुछ तो निडर होकर इसकी शिकायत पुलिस में भी करती हैं। निश्चित रूप से ऐसी लड़कियों में आत्मविश्वास की कमी नहीं होती है। उन्हें भरोसा होता है कि वे हर परिस्थिति का डटकर मुकाबला कर सकती हैं। उन्हें यह आत्मविश्वास परिवार से मिलता है। उन्हें यह भी मालूम होता है कि उनकी मां, दादी, बहन, सास के अलावा अन्य परिजन किसी न किसी रूप में उनके साथ हैं।
घर-परिवार की महिलाएं अगर अनसुलझे मसलों और सवालों को लेकर बेटियों से खुल कर बात करें, तो समाज की तस्वीर बदल सकती है। सतर्कता बढ़ सकती है और घूरती निगाहों के इरादे भांपने में लड़कियों को मदद मिल सकती है। मौका आने पर सुरक्षा और आत्मरक्षा के लिए मन की तैयारी और मजबूती मिल सकती है। इसी वजह से महिलाओं को ही यह भरोसा एक-दूसरे को देना होगा। यह तभी मुमकिन होगा जब ऐसे सवालों का जवाब देने की हिम्मत हर औरत में दिखने लगेगी। इसी बात को दमदार तरीके से टाटा टी के 'जागो रे' अभियान ‘अलार्म बजने से पहले जागो रे’ के तहत जारी किए गए वीडियो में कहा गया है।
महिलाओं के विरुद्ध हिंसा और अपराध के मौजूदा हालात का जायजा भी हम ले लेते हैं। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों से पता चलता है कि भारत में हर दिन 96 बार दुष्कर्म होता है यानी हर घंटे में चार लड़कियों की आबरू लूटी जाती है। साल 2015 में पूरे देश में दुष्कर्म के कुल 34 हजार 651 मामले हैं और देशभर में महिलाओं के प्रति अपराध के 3 लाख 27 हजार मामले दर्ज किए गए। ये तो वो मामले हैं, जो पुलिस की फाइलों में दर्ज हैं। इसमें कोई दो राय नहीं है कि दुष्कर्म के हजारों ऐसे मामले भी होंगे, जो अलग-अलग कारणों से पुलिस की फाइलों में दर्ज ही नहीं हो पाते हैं। महिलाओं पर होने वाले अपराधों का आंकड़ा बढ़ता ही जा रहा है। इसे रोकने के लिए महिलाओं को ही अलार्म बजने से पहले जागना होगा।
बेटियों के सवालों के जवाब माताओं को देने ही होंगे। इन सवालों को 'अलार्म' मान लिया तो देश की 'आधी आबादी' जाग जाएगी। एक जवाब भी नई पीढ़ी को नींद से जगा सकता है। बड़ी जिम्मेदारी, निश्चित रूप से घर के बड़ों की ही है कि वे पूरी पीढ़ी को अलार्म बजने से पहले जगाएं।