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Lok Sabha Election 2024: मालखाने में जमा हुई प्रथम विश्व युद्ध से जुड़ी राइफल, रोचक इतिहास जानकर रह जाएंगे हैरान

देश में लोकसभा चुनाव का बिगुल बजते ही आदर्श आचार संहिता लागू हो गई है। इसके चलते शस्त्र पुलिस थानों के मालखानों में जमा किए जा रहे हैं। वहीं नाहन थाने के मालखाने में जमा हुई एक राइफल इन दिनों चर्चाओं का विषय बनी हुई है। ये राइफल प्रथम विश्व युद्ध से जुड़ी हुई है। इस राइफल के साथ सूबेदार ध्यान सिंह ने प्रथम विश्व युद्ध लड़ा था।

By Deepak Saxena Edited By: Deepak Saxena Published: Tue, 09 Apr 2024 03:33 PM (IST)Updated: Tue, 09 Apr 2024 03:33 PM (IST)
मालखाने में जमा हुई प्रथम विश्व युद्ध से जुड़ी राइफल।

जागरण संवाददाता, नाहन। लोकसभा चुनाव के लिए देश में आदर्श आचार संहिता लागू है। सभी तरह के आग्नेय शस्त्र पुलिस थानों के मालखानों में जमा करवाए जा रहे हैं। सदर पुलिस थाना नाहन के मालखाने में एक ऐसी राइफल जमा हुई है, जिसका इतिहास प्रथम विश्व युद्ध से जुड़ा है।

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साल 1914 से 1918 तक हुए प्रथम विश्व युद्ध में सिरमौर की फौज भी शामिल हुई। इसमें सिरमौर जिला के सूबेदार ध्यान सिंह भी थे, जिन्हें अंग्रेजों ने बहादुर की उपाधि से सम्मानित किया था। उनकी सेवानिवृत्ति के बाद उन्हें पेंशन के साथ 10 रुपये जंगी इनाम भी मिलता रहा जो उनके निधन के बाद बेटे स्व. रणजीत सिंह ठाकुर को भी मिलता रहा जो स्वयं 18 साल सेना में रहे।

इनाम के तौर पर ब्रिटिश सरकार ने राइफल

सूबेदार ध्यान सिंह बहादुर वर्ष 1887 में 19 साल की आयु में फौज में सिपाही भर्ती हुए। 33 साल तीन माह और 14 दिन सेवाएं देने के बाद वह वर्ष 1920 में सूबेदार पद से सेवानिवृत्त हुए। वह प्रथम विश्व यु्द्ध में जिस राइफल के साथ लड़े, उसे उन्हें युद्ध के बाद ब्रिटिश सरकार ने इंग्लैंड के बकिंघम पैलेस में इनाम के रूप में भेंट किया। उन्हें राइफल के साथ स्वर्ण पदक, तलवार, खुखरी आदि भी भेंट की गई।

प्रथम विश्व युद्ध में हुआ था एसबीबीएल का इस्तेमाल

अपने दादा की इस विरासत को नाहन के राजकुमार ठाकुर आज भी संभाले हुए हैं। हाल ही में राजकुमार के बड़े भाई प्रेम प्रकाश ठाकुर ने इस राइफल को सदर पुलिस थाना नाहन में जमा करवाया है। राजकुमार व प्रेम प्रकाश का दावा है कि इस बंदूक (एसबीबीएल) का इतिहास अंग्रेजों के जमाने का है जिसका इस्तेमाल सबसे पहले प्रथम विश्व युद्ध में हुआ था। इस राइफल का निर्माण अमेरिका में हुआ था।

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राइफल को मिला था ऑल इंडिया का लाइसेंस

राजकुमार ने बताया कि उनके दादा ध्यान सिंह बहादुर का जन्म पच्छाद तहसील के डिंगरी धिनी गांव में हुआ था। दादा ने गोरखा युद्ध, सिख युद्ध, भारतीय विद्रोह के अलावा अफगानिस्तान आदि में सेवाएं देने के साथ युद्ध में भी हिस्सा लेकर बहादुरी का परिचय दिया। राजकुमार ने बताया कि अब यह राइफल मेरे नाम है। पहले यह राइफल पिता स्व. रणजीत सिंह ठाकुर के नाम थी। इसे पहले ऑल इंडिया का लाइसेंस प्राप्त था, जो अब सिर्फ सिरमौर तक सीमित है। इस राइफल के साथ स्वर्ण पदक, तलवार, खुखरी आदि को उन्होंने घर में सुरक्षित रखा है।

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