Kangra Tea: साल 1998 के बाद 2024 में बढ़ा कांगड़ा चाय का उत्पादन, अंतरराष्ट्रीय बाजार में नहीं बढ़ा दाम
कांगड़ा चाय (Kangra Tea in Himachal Pradesh) को जीआई टैग मिलने के बावजूद इस साल आर्थोडोक्स ब्लैक टी को विदेशी बाजार में अपेक्षानुसार बाजार नहीं मिल पाया है। विदेशी मार्केट में भी कांगड़ा चाय की मांग बढ़ी है जिसे प्रदेश के चाय उद्योग के लिए सकारात्मक संदेश माना जा रहा है। साल 2024 में 11 लाख 67 हजार किलोग्राम उत्पादन हुआ है।
कुलदीप राणा, पालमपुर। कुछ वर्षों से विभिन्न कारणों से सुप्त अवस्था में चल रही कांगड़ा चाय ने एक बार फिर पंख पसारने शुरू कर दिए हैं। स्थानीय बाजारों के साथ विदेशी मार्केट में भी कांगड़ा चाय की मांग बढ़ी है, जिसे प्रदेश के चाय उद्योग के लिए सकारात्मक संदेश माना जा रहा है। भारी मांग के चलते चाय के दाम का ग्राफ भी बढ़ रहा है और चाय उत्पादकों के चेहरे पर रौनक देखी जा रही है।
जानकारी के अनुसार, कांगड़ा चाय को जीआई टैग (एक ऐसा दर्जा है जो विशेष रूप से किसी विशेष क्षेत्र से संबंधित उत्पाद को दिया जाता है) मिलने के बावजूद इस साल आर्थोडोक्स ब्लैक टी को विदेशी बाजार में अपेक्षा अनुसार, बाजार नहीं मिल पाया है। इसका कारण अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चाय को लेकर बड़ी स्पर्धा है। हालांकि इस साल कांगड़ा चाय का उत्पादन बढ़ा है और ढाई दशक में पहली बार 12 लाख किलोग्राम आंकड़े को छू सका है।
1998 से चाय उत्पादन में आई लगातार कमी
आंकड़ों पर नजर डालें तो वर्ष 1998 में कांगड़ा चाय का उत्पादन 17 लाख 11 हजार किलोग्राम था, मगर उसके बाद चाय उत्पादन में लगातार कमी आई है। लेकिन पहली बार उत्पादन में बढ़ोतरी के चलते 11 लाख 67 हजार किलोग्राम उत्पादन हुआ है। मार्च से लेकर दिसंबर तक की अवधि में आर्थोडोक्स ब्लैक टी निर्यात की जाती है। आर्थोडोक्स ब्लैक टी की सबसे अधिक मांग यूरोपिया देशों, विशेषकर जर्मनी के बाजार से आई है।
बढ़ती हुई मांग का असर आर्थोडोक्स ब्लैक टी के दाम में भी देखने को मिला है और कुछ ही समय में चाय के दाम सौ रुपये किलो से अधिक उपर जा चुके हैं। निर्यात में सुस्त रफ्तार के कारण कांगड़ा चाय को उचित दाम नहीं मिल पाया और निर्यात का आंकड़ा भी इस वर्ष फीका रहने की उम्मीद है।
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ढाई दशक बाद इस वर्ष उत्पादन में आया उछाल
कृषि विभाग चाय विभाग पालमपुर के प्रभारी सुनील पटियाल की मानें तो यह वर्ष कांगड़ा चाय को मिला जुला रहा है। हालांकि उत्पादन में पहली बार सुधार आया है, लेकिन कांगड़ा चाय को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जीआई टैग मिलने पर भी मांग में सुधार न होना चिंतनीय है। चाय की गुणवत्ता के साथ अच्छे दाम मिलना उत्पादकों के लिए हौंसले वाली बात होती है। उन्होंने बताया कि प्रदेश सरकार ने पहली बार लघु चाय उत्पादकों को सभी प्रकार का अनुदान दिया है।
170 वर्ष पुराना है कांगड़ा चाय का इतिहास
कांगड़ा चाय का इतिहास 170 वर्ष पुराना है। कांगडा की चाय दुनिया में सबसे स्वादिष्ट मानी जाती है, वहीं इसे देश के विभिन्न हिस्सों के साथ विदेशों में भी हैल्थ ड्रिंक के रूप में उपयोग किया जाता है। लोग इसके गुणों को लेकर लगातार प्रभावित हो रहे है तथा महिलाओं में सुंदरता बरकरार रखने में इसका उपयोग दिन व दिन बढ़ रहा है। वहीं, उच्च रक्तचाप सहित कई असाध्य बीमारियों में भी चाय का इस्तेमाल बेहतर माना जा रहा है। अभी कांगड़ा चाय का विपणन भले ही कमजोर है जिसे मजबूत करने के लिए बेहतर नीतियों की दरकार है।
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