फिल्म रिव्यू: पहचान और परछाई के बीच 'फैन' (स्टार 4)
मनीष शर्मा की 'फैन' गौरव चांदना की कहानी है। दिल्ली के मध्य वर्गीय मोहल्ले का यह लड़का आर्यन खन्ना का जबरा फैन है। उसकी जिंदगी आर्यन खन्ना की धुरी पर नाचती है। वह उनकी नकल से अपने मोहल्ले की प्रतियोगिता में विजयी होता है। उसकी ख्वाहिश है कि एक बार
-अजय ब्रह्मात्मज
प्रमुख कलाकार- शाहरुख खान, वलूशा डीसूजा और श्रेया पिलगांवकर
निर्देशक- मनीष शर्मा
संगीत निर्देशक- विशाल-शेखर
स्टार- 4 स्टार
यशराज फिल्म्स की 'फैन' के निर्देशक मनीष शर्मा हैं। मनीष शर्मा और हबीब फजल की जोड़ी ने यशराज फिल्म्स की फिल्मों को नया आयाम दिया है। आदित्य चोपड़ा के सहयोग और समर्थन से यशराज फिल्म्स की फिल्मों को नए आयाम दे रहे हैं। 'फैन' से पहले मनीष शर्मा ने अपेक्षाकृत नए चेहरों को लेकर फिल्में बनाईं। इस बार उन्हें शाहरुख खान मिले हैं। शाहरुख खान के स्तर के पॉपुलर स्टार हों तो फिल्म की कहानी उनके किरदार के आसपास ही घूमती है। मनीष शर्मा और हबीब फैजल ने उसका तोड़ निकालने के लिए नायक आर्यन खन्ना के साथ एक और किरदार गढ़ा है। 'फैन' इन्हीं दोनों किरदारों की रोचक और रोमांचक कहानी है।
मनीष शर्मा की 'फैन' गौरव चांदना की कहानी है। दिल्ली के मध्य वर्गीय मोहल्ले का यह लड़का आर्यन खन्ना का जबरा फैन है। उसकी जिंदगी आर्यन खन्ना की धुरी पर नाचती है। वह उनकी नकल से अपने मोहल्ले की प्रतियोगिता में विजयी होता है। उसकी ख्वाहिश है कि एक बार आर्यन खन्ना से पांच मिनट की मुलाकात हो जाए तो उसकी जिंदगी सार्थक हो जाए। अपनी इसी ख्वाहिश के साथ वह विदाउट टिकट राजधानी से मुंबई जाता है। मुंबई पहुंचने पर वह डिलाइट होटल के कमरा नंबर 205 में ही ठहरता है। आर्यन खन्ना के जन्मदिन के मौके पर वह आर्यन खन्ना से मिलने की कोशिश करता है। उसकी भेंट तो हो जाती है, लेकिन पांच मिनट की मुलाकात नहीं हो पाती।
आर्यन खन्ना उसे पांच सेंकेंड भी देने के लिए तैयार नहीं है। गौरव चांदना को आर्यन खन्ना का यह रवैया अखर जाता है। वह अब बदले पर उतर आता है। यहां से फिल्म की कहानी किसी दूसरी फिल्म की तरह ही नायक-खलनायक या चूहे-बिल्ली के पकड़ा-पकड़ी में तब्दील हो जाती है। चूंकि किरदार थोड़े अलग हैं और उनके बीच का झगड़ा एक ना पर टिका है, इसलिए फिल्म रोचक और रोमांचक लगती है।
आर्यन खन्ना का किरदार शाहरुख खान की प्रचलित छवि और किस्सों से प्रेरित है। आर्यन खन्ना का किरदार और शाहरुख खान कलाकार यों घुलमिल कर पर्दे पर आते हैं कि दर्शकों का कनेक्ट बनता है। शाहरुख खान पर आरोप रहता है कि वे हर फिल्म में शाहरुख खान ही रहते हैं। यहां उन्हें छूट मिल गई है। यहां तक कि फैन के रूप में आए नए किरदार गौरव चांदना को भी 'इंपोस्टर' के रूप में शाहरुख खान की ही नकल करनी है। निस्संदेह फिल्म देखते हुए आनंद मिलता है। शाहरुख खान को बोलते हुए सुनना और उनके निराले अंदाज को देखना हिंदी फिल्मों के दर्शकों को बहुत पसंद है। शहरुख खान पूरे फॉर्म में हैं और किरदार के मनोभावों को बखूबी निभाते हैं। शाहरुख खान की प्रचलित छवि में में उनका अक्खड़पन शामिल है। निर्देशक मनीष शर्मा ने उसे भी उभारा है।
फिल्म आरंभ में स्टार और फैन के रिश्ते को लेकर चलती है। हम इस रिश्ते के पहलुओं से वाकिफ होते हैं। लेखक एक फैन के मानस में सफलता से प्रेश करते हैं और उसकी दीवानगी को पर्दे पर ले आते हैं। स्टार से बिफरने के बाद फैन के कारनामे अविश्वसनीय तरीके से नाटकीय और अतार्किक हो गए हैं। गौरव चांदना और आर्यन खन्ना के इगो की लड़ाई क्लाइमेक्स के पहले फैन के पक्ष में जाती है। थोड़ी देर के लिए यकीन नहीं होता कि गौरव चांदना के पास सारे संसाधन कहां से आए कि वह आर्यन खन्ना जैसे पावरफुल सुपरस्टार से दो कदम आगे चल रहा है। वह आर्यन खन्ना को ऐसे मोड़ पर ला देता है कि आर्यन खन्ना को लगाम अपने हाथों में लेनी पड़ती है। वह गौरव चांदना को सबक देने के आक्रामक तेवर के साथ निकलता है। हिंदी फिल्मों में नेक और खल की लड़ाई व्यक्तिगत हो जाती है। 'फैन' उस परिपाटी से अलग नहीं हो पाती। फिर भी मनीष शर्मा को दाद देनी पड़ेगी कि उन्होंने हिंदी फिल्मों के ढांचे में रहते हुए शाहरुख खान के प्रशंसकों को कुछ नया दिया है।
मनीष शर्मा ने इस फिल्म के निर्देशन में साहस का परिचय दिया है। उनके साहस को शाहरुख खान का संबल मिला है। लकीर की फकीर बनी हिंदी फिल्मों में जब कुछ नया होता है तो उसे भरपूर सराहना मिलती है। 'फैन' में स्टार और डायरेक्टर के प्रयास को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। दिक्कत या शिकायत यह है कि फिल्म आरंभ मे जिस तीव्रता, संलग्नता और नएपन के साथ चलती है, वह दूसरे हिस्से में कायम नहीं रह पाती। कहानी कई वार पुरानी लकीर पर आने या उसे छूने के बाद बिखरने लगती है। हिंदी की ज्यादातर फिल्मों के साथ इंटरवल के बाद निर्वाह की समस्या रहती है।
यह फिल्म शाहरुख खान की है। उनकी पॉपुलर भाव-भंगिमाओं को निर्देशक ने तरजीह दी है। उनके बोल-वचन का सटीक उपयोग किया है। फिल्म देखते समय कई बार यह एहसास होता है कि हम कहीं शाहरुख खान की बॉयोग्राफी तो नहीं देख रहे हैं। पुराने वीडियो फुटेज और इंटरव्यू से आर्यन खन्ना में शाहरुख खान का सत्व मिलाया गया है। शाहरुख खान के लिए यह फिल्म एक स्तर पर चुनौतीपूर्ण है, क्योंकि उन्हें गौरव का भी किरदार निभाना है। गौरव शक्ल-ओ-सूरत में आर्यन खन्ना से मिलता-जुलता है। शाहरुख खान ने उसे अलग तरीके से पेश किया है। गेटअप और मेकअप से आगे की निकलकर उसकी चाल-ढाल में भिन्न्ता लाने में कठिन अभ्यास करना पड़ा होगा। कुछ दृश्यों में शाहरुख खान की स्वाभाविकता पुरअसर है। गौरव चांदना और शाहरुख खान की मुलाकात और भिड़ंत के सारे दृश्य मजेदार हैं। उन्हें आकर्षक लोकेशन पर शूट भी किया गया है।
एक अंतराल के बाद शाहरुख खान की ऐसी फिल्म आई है, जिसमें एक कहानी है। उन्हें अभिनय योग्यता और क्षमता भी दिखाने का अवसर भी मिला है। साथ ही निर्देशक मनीष शर्मा का स्पष्ट सिग्नेचर है। इस फिल्म में भी दिल्ली है यह फिल्म पहचान और परछाई के द्वंद्व पर केंद्रित है। मिथक और मिथ्या में लिपटी 'फैन' देखने लायक फिल्म है।
अवधि- 143 मिनट
abrahmatmaj@mbi.jagran.com