Mission 2024: भाजपा के पाले में बागेश्वर…लेकिन कांग्रेस का बढ़ा वोट बैंक, कहीं बदल न जाए लोकसभा चुनाव के समीकरण
Mission 2024 बागेश्वर उपचुनाव को लेकर बीजेपी को उम्मीद थी कि चंपावत उपचुनाव की तरह बागेश्वर में भी एकतरफा जीत मिलेगी लेकिन चुनाव पूर्व कांग्रेस की तरफ से खेले गए पैंतरे ने ऐसा नहीं होने दिया। कांग्रेस ने इस बार बसंत कुमार को प्रत्याशी बनाया जो पिछला चुनाव आम आदमी पार्टी से लड़कर लगभग 16 हजार मत पाने में सफल रहे थे।
देहरादून, जेएनएन। बागेश्वर विधानसभा सीट के उपचुनाव में भाजपा ने बाजी मारी। अलग राज्य गठन के बाद यह पिछले लगभग 23 वर्षों में 15वां उपचुनाव था और सभी में जीत सत्तापक्ष को ही मिली। कांग्रेस के हिस्से एक और पराजय आई, लेकिन इतना जरूर है कि उसने भाजपा को कड़ी टक्कर दी।
भाजपा उम्मीद कर रही थी कि चंपावत उपचुनाव की तरह बागेश्वर में भी एकतरफा जीत मिलेगी, लेकिन चुनाव पूर्व कांग्रेस की तरफ से खेले गए पैंतरे ने ऐसा नहीं होने दिया। कांग्रेस ने इस बार बसंत कुमार को प्रत्याशी बनाया, जो पिछला चुनाव आम आदमी पार्टी से लड़कर लगभग 16 हजार मत पाने में सफल रहे थे। कांग्रेस को 20 हजार से कुछ अधिक और भाजपा को 32 हजार मत मिले थे।
कांग्रेस की गणित थी कि बसंत कुमार आम आदमी पार्टी व कांग्रेस को मिले कुल मतों तक पहुंच जाएं तो खेला हो जाएगा, जो होते-होते रह गया।
अब तो सिर से ऊपर गुजर गया पानी
कुछ दिन पहले आपको अफसरों की मनमानी के पुराने मर्ज के बारे में बताया था, लेकिन अब तो लग रहा है कि बात हद से आगे बढ़ती जा रही है। विधानसभा के मानसून सत्र के दौरान विधायकों ने विशेषाधिकार हनन के जरिये इस तरह के मामले उठाए तो विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूड़ी भूषण ने व्यवस्था दी कि जनप्रतिनिधियों को अफसर प्रोटोकाल का पालन करते हुए माननीय कहकर ही संबोधित करेंगे।
यह तो हुआ, लेकिन अगले ही दिन कांग्रेस विधायक प्रीतम सिंह ने ऐसा ही एक मामला सदन में उठा दिया। विधानसभा अध्यक्ष इससे इतनी व्यथित हुईं कि उन्हें सख्त लहजे का इस्तेमाल करना पड़ा। उन्होंने अफसरों के इस तरह के व्यवहार को शर्मनाक करार दिया और भविष्य में इसकी पुनरावृत्ति न होने देने के निर्देश दिए। अब स्वयं सोच कर देखिये, जब छह बार के विधायक के साथ अफसरों का व्यवहार ऐसा है तो आम जन के साथ कैसे होगा।
किसका कटेगा पत्ता और किसका अब लगेगा नंबर
सत्ता के गलियारों में फिर मंत्रिमंडल में फेरबदल और विस्तार को लेकर कयासबाजी आरंभ हो गई है। दरअसल, इस तरह की चर्चा पिछले कुछ महीनों से चल ही रही थी, लेकिन अलग-अलग कारणों से इसमें देरी होती रही है। उत्तराखंड में अधिकतम 12 सदस्यीय मंत्रिमंडल हो सकता है, लेकिन तीन पद शुरू से खाली चल रहे हैं। फिर कैबिनेट मंत्री चंदन राम दास के निधन से एक सीट और रिक्त हो गई।
यानी, मंत्रिमंडल में एक-तिहाई स्थान खाली। अब बागेश्वर उपचुनाव और विधानसभा का मानसून सत्र, दोनों निबट गए हैं, तो कहा जा रहा है कि कभी भी मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी अपनी टीम का विस्तार और बदलाव भी, कर सकते हैं। लोकसभा चुनाव नजदीक हैं, इसकी संभावना बन भी रही है। अगर चर्चाओं को पुख्ता माना जाए तो चार खाली सीट भरने के साथ ही दो-तीन पुराने चेहरे भी इसके दायरे में आ सकते हैं, विभाग तो बदलेंगे ही।
बढ़ गया राज्य में महिला विधायकों का प्रतिनिधित्व
बागेश्वर उपचुनाव में विजय हासिल कर पार्वती दास विधायक बन गईं और इसी के साथ 70 सदस्यीय राज्य विधानसभा में महिलाओं का प्रतिनिधित्व नौ तक पहुंच गया। संभवतया यह उत्तराखंड की अब तक की पांच निर्वाचित विधानसभाओं में सर्वाधिक है। इनमें से सोमेश्वर की विधायक रेखा आर्या धामी मंत्रिमंडल का हिस्सा हैं, जबकि ऋतु खंडूड़ी भूषण विधानसभा अध्यक्ष हैं।
दलीय आधार पर देखें तो भाजपा के 47 विधायकों में अब महिलाओं की संख्या पार्वती दास समेत सात हो गई है। इनमें रेखा आर्या व ऋतु खंडूड़ी भूषण के अलावा शैलारानी रावत, सविता कपूर, रेनु बिष्ट व सरिता आर्य शामिल हैं। विपक्ष कांग्रेस के 19 विधायकों में से दो महिलाएं ममता राकेश व अनुपमा रावत शामिल हैं।
अब यह बात अलग है कि इन नौ में से पांच राजनीतिक परिवारों से आती हैं, जो अपनी विरासत को आगे बढ़ा रही हैं। महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ने का स्वागत किया ही जाना चाहिए।