अतुल कुमार राय। जहां चुनाव से पहले जिंदाबाद-जिंदाबाद के नारे गूंजा करते थे, वहां आज सन्नाटा पसरा है। जहां कार्यकर्ताओं की फौज राजनीतिक गर्मी में मस्त रहती थी, वहां आज सब पस्त दिख रहे हैं। खबर मिलने तक नेताजी का टिकट कट चुका था और वह भारी मन से इंटरव्यू देने जा रहे थे। इंटरव्यू लेने वाले पत्रकार का चैनल और हौसला, दोनों नए थे। उसने बड़े ही बुलंद आवाज में नेताजी से पूछा, "आपने वर्षों पार्टी की सेवा की, लेकिन पार्टी ने आपका टिकट काट दिया। फिर भी आप मुस्कुरा रहे हैं, कैसे? नेताजी ने अपनी मुस्कान को थोड़ा विस्तृत किया और कहा, "यही तो साधना है जी। मैंने भले ही जनता का कोई काम टाइम से नहीं किया, लेकिन हर टाइम मुस्कुराने का काम किया है।" पत्रकार चौंका, "तो आपकी इस रहस्यमयी मुस्कान का रहस्य क्या है, देश जानना चाहता है?" "देखिए, नेता के चेहरे से उसकी जनता मुस्कुराती है। और जब नेता के चेहरे से जनता मुस्कुराती है तो हमारा यह लोकतंत्र मुस्कुराता है।"

जवाब सुनकर पत्रकार को रोना आ गया। उसने माइक को नेताजी के मुंह के और करीब कर दिया और पूछा, "लेकिन आपके क्षेत्र की जनता तो आपसे बहुत दुखी थी। बिलावलपुर वालों ने आपको भगा दिया। लुट्टनपुर वालों ने आपके सामने ही मुर्दाबाद के नारे लगाए। फिर यह कौन-सी जनता है, जो आपसे खुश है?' यह सुन नेताजी के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं। उन्होंने अपनी मुस्कान को जरा कृत्रिम बनाकर कहा, "देखिए, हमारा आंतरिक सर्वे कह रहा है कि हमसे आज भी सब खुश हैं।

बिलावलपुर वाले विपक्षी पार्टियों से मिले हुए थे। लुट्टनपुर में तो मेरी ही पार्टी के कुछ लोगों ने साजिश की थी।'

इस जवाब के बाद उस नए पत्रकार से रहा न गया। उसने पूछा, 'आप साजिश की बात कर रहे हैं, लेकिन आप पर आरोप है कि आपने पुल बनाने का ठेका अपने एक करीबी रिश्तेदार को दे दिया था और भारी कमीशन खाया।' नेताजी ने हंसते हुए कहा, 'कहां-कहां से सवाल लाते हैं आप। मैं तो जनता की सेवा में इतना मशगूल रहता हूं कि टाइम से खाना भी नहीं खा पाता, कमीशन कैसे खाऊंगा। रही बात रिश्तेदार की तो वह मेरा रिश्तेदार नहीं। मेरा कार्यकर्ता है। और मैं अपने हर कार्यकर्ता को अपना रिश्तेदार मानता हूं, क्योंकि एक नेता को उसका कार्यकर्ता ही पुल बनकर जनता से जोड़ता है। …हमारे लिए हमारा कार्यकर्ता पुल है।

अगर किसी कार्यकर्ता ने एक पुल बना ही लिया तो कौन-सा पहाड़ गिर गया?' पत्रकार ने अपने मोबाइल पर तस्वीर दिखाते हुए कहा, 'पहाड़ नहीं गिरा, देखिये समूचा पुल ही गिर गया। जांच में पता चला कि उसे बनाने में एकदम खराब सामग्री का उपयोग किया गया था। आपके फीता काटने के एक दिन बाद ही ढह गया और मकसूदन की चार बकरियां दबकर मर गईं। आप पर आरोप है कि आप न पुल देखने गए, न ही बकरियां।' नेताजी तमतमा गए…। बोले, 'मधुसूदन जी आज से नहीं, हमेशा से हमारे विरोधी रहे हैं। बकरी का बिजनेस जब बढ़िया नहीं चला तो वह विरोधियों के साथ मिलकर मेरे खिलाफ साजिश रचने लगे।' पत्रकार खड़ा हो गया… और बोला, 'वह बेकरी वाले मधुसूदन हैं, मैं तो बकरी वाले मकसूदन की बात कर रहा रहा हूं।' नेताजी भी खड़े हो गए और बोले, 'हमारे लिए चाहे कोई बकरी वाला हो या बेकरी वाला, सब बराबर हैं। हम अंतर ही नहीं करते, सबको एक नजर से देखते हैं…।'

पत्रकार ने मामले को संभालते हुए कहा, 'अच्छी बात है आप सबको बराबर नजर से देखते हैं, लेकिन टिकट नहीं मिला अब आप क्या करेंगे?' इस सवाल के बाद नेताजी के चेहरे पर संवेदना का समंदर उतर आया। उन्होंने कहा, "यह बहुत अच्छा सवाल पूछा आपने, मैं आपको बताता हूं। देखिए, नेता चुनाव जीतकर जनता की सेवा करता है और जब हारता है तो सेवा करने का इंतजार करता है। हम भी सेवा का इंतजार करेंगे।' पत्रकार ने कहा, 'लेकिन आप हारे कहां हैं, आपका तो टिकट कटा है, अब आप क्या करेंगे?' नेताजी ने इधर-उधर देखा और सिर खुजाते हुए कहा, 'आपका चैनल सब्सक्राइब करके देखते रहेंगे।' इस पर पत्रकार खुश हो गया।