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Age In Space: क्या अंतरिक्ष में जाने के बाद थम जाती है उम्र की रफ्तार, सालों-साल जवान बने रहते हैं लोग?

अंतरिक्ष को लेकर लोग आज भी अपने मन में कई तरह के मिथक पाल-पोस रहे हैं। क्या आपने भी ऐसा सुना है कि स्पेस में जाने पर उम्र का पहिया थम जाता है और आप सालों-साल जवान बने रहते हैं? अगर हां तो हमारा यह आर्टिकल आपको जरूर पढ़ना चाहिए। आइए जानते हैं कि अंतरिक्ष में लंबा वक्त गुजारने पर मानव शरीर को किन बदलावों का सामना करना पड़ता है।

By Nikhil Pawar Edited By: Nikhil Pawar Published: Mon, 08 Apr 2024 04:26 PM (IST)Updated: Mon, 08 Apr 2024 04:26 PM (IST)
क्या अंतरिक्ष में जाकर बढ़नी बंद हो जाती है इंसान की उम्र, जानिए इससे जुड़ी दिलचस्प बातें

लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। Age In Space: अंतरिक्ष को लेकर आपने भी कई तरह की बातें सुनी होंगी, जैसे कि वहां जाकर लोगों की उम्र बढ़नी बंद हो जाती है, या फिर अंतरिक्ष में जाने के बाद आप सालों-साल जवान बने रह सकते हैं... वगैरह वगैरह। आइए आज आपके इन्हीं सवालों का जवाब देने की कोशिश करते हैं। इस आर्टिकल में हम आपको बताएंगे कि क्या ऐसा वाकई होता है, और अगर होता है तो इसके पीछे क्या कारण छिपे हैं। आइए जानें।

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आइंस्टीन की थ्योरी से समझिए

अंतरिक्ष में एस्ट्रोनॉट्स की उम्र थोड़ी धीमी होने के पीछे टाइम डिलेशन एक बड़ी वजह है, जिसे लेकर अल्बर्ट आइंस्टीन ने सापेक्षता सिद्धांत (Theory of Relativity) भी दिया है। आसान शब्दों में समझें तो, मान लीजिए कि एक ही तरह की दो घड़ियां मौजूद हैं, जिनमें से एक अपनी जगह स्थिर है, तो वहीं दूसरी एकसमान-वेग से गतिशील है। ऐसे में स्थिर घड़ी की तुलना में दूसरी वाली घड़ी धीरे चलेगी। आइंस्टीन अपनी इस थ्योरी का प्रयोग कई माध्यम से कर चुके हैं। थ्योरी के मुताबिक समय सापेक्ष है, जो गुरुत्वाकर्षण और वेग जैसे कारकों से प्रभावित हो सकता है।

चूंकि अंतरिक्ष में गुरुत्वाकर्षण बल पृथ्वी की तुलना में कमजोर होता है, ऐसे में एस्ट्रोनॉट्स उच्च वेग के कारण, अंतरिक्ष यात्रियों के लिए समय थोड़ा धीमी गति से गुजरता है। यह गुरुत्वाकर्षण टाइम डिलेशन के चलते होता है, जिसका प्रयोग परमाणु घड़ियों और मजबूत गुरुत्वाकर्षण क्षेत्रों में तेजी से चलने वाले हवाई जहाज के द्वारा भी किया जा चुका है।

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दिमाग भी करता है अलग व्यवहार

अंतरिक्ष की असमान परिस्थितियों में दिमाग भी अलग व्यवहार करने लगता है। एक ओर जहां शरीर का भार खत्म हो जाता है, तो वहीं दूसरी ओर इसपर कंट्रोल के लिए दिमाग भी अलग तरीके के सिग्नल देने लगता है। इसे ब्रेन की री-वायरिंग भी कहा जा सकता है। यही वजह है कि धरती पर वापस लौटने के बाद भी स्पेस ट्रैवलर को उठने-बैठने और चलने-फिरने में बैलेंस बनाने में मुश्किल होती है।

वैज्ञानिक कर चुके हैं अध्ययन

बता दें, कि वैज्ञानिक इस बात को लेकर एक स्टडी भी कर चुके हैं। इसमें अंतरिक्ष में भेजे गए यात्री की उम्र धरती पर मौजूद उसके जुड़वा भाई से कम लगने लगी थी। जांच में यह भी पाया गया कि दोनों के 91.3% जीन में भी बदलाव आ चुका था। हालांकि यह अंतर ज्यादा दिन नहीं टिका और स्पेस से वापस आने के 6 महीने के अंदर सब कुछ पहले जैसा ही हो गया।

नतीजों में पाया गया था, कि अंतरिक्ष में ज्यादा समय रहने से शरीर में मैथीलेशन की मात्रा में इजाफा होता है, जो जीन के बदलाव के लिए जिम्मेदार होती है। चूंकि पृथ्वी और स्पेस के टाइम जोन में भी फर्क है, स्पेस में समय की गति पृथ्वी से बहुत तेज है, तो ऐसे में नासा द्वारा पूर्व में हुई स्टडी में दो जुड़वा भाइयों की उम्र में 6 मिनट 10 मिली सेकंड का अंतर पाया गया था।

स्ट्रेस भी है एक वजह

पृथ्वी के मुकाबले अंतरिक्ष में एस्ट्रोनॉट्स को शरीर पर स्ट्रेस भी कम महसूस होता है। इसके पीछे गुरुत्वाकर्षण एक बड़ी वजह है। ऐसे में चूंकि स्ट्रेस में कमी का असर भी उम्र पर दिखाई देता है, तो इससे भी वहां रहने से उम्र धीमी हो सकती है। इसके अलावा स्पेस मिशन में उपलब्ध मेडिकल केयर, डाइट, एक्सरसाइज भी बॉडी को रिलैक्स करती है, जिससे एजिंग प्रोसेस स्लो हो सकता है।

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Picture Courtesy: Freepik


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