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PM मोदी को खून से खत लिखने पर मजबूर हुए संत, जवाब का इंतजार

गाजियाबाद में एक साथ तीन संतों ने अपने रक्‍त से प्रधानमंत्री, संघ और विहिप के प्रमुख को खत लिखकर सबको सकते में डाल दिया। आखिर क्‍या है खत में ।

By Ramesh MishraEdited By: Published: Sat, 11 Jun 2016 03:45 PM (IST)Updated: Sat, 11 Jun 2016 07:46 PM (IST)

गाजियाबाद [जेएनएन]। एक नहीं तीन-तीन संतों ने अपने खून से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, संघ प्रमुख मोहन भागवत और विहिप नेता प्रवीण तोगड़िया को खत लिखा है। इस खत में उन्होंने हिंदू उपेक्षा पर अपनी पीड़ा का इजहार किया है। तीनों संतों ने देश में तुष्टिकरण की नीति पर सवाल उठाते हुए इसको रोकने की मांग की है।

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संतों ने पहले एक सीरिंज के माध्यम से अपने हाथ से रक्त निकाला और इसके बाद कलम से प्रधानमंत्री और संघ प्रमुख व विहिप नेता को संबोधित करते हुए खत लिखा। इसमें समान नागरिक संहिता और कठोरतम जनसंख्या नियंत्रण कानून की एक नई व्यवस्था की मांग की गई है।

खत लिखने वाले संतों में दिल्ली के ऐतिहासिक कालिका शक्तिपीठ के महंत श्री सुरेन्द्रनाथ अवधूत जी, गाजियाबाद के ऐतिहासिक मठ श्री दुधेश्वरनाथ के संत स्वामी नारायण गिरी जी महाराज और यति नरसिंहानंद सरस्वती जी शामिल हैं।

इन संतों ने एक सुर में कहा कि हिन्दुओंं की घटती जनसंख्या अनुपात का परिणाम हैं कि कैराना,लंढौरा और मालदा जैसे भीषण कांड हो रहे हैं। इसलिए सरकार को तत्काल इस पर विचार कर नए कानून बनाने की जरूरत है।

संतों ने कहा कि कठोरतम जनसंख्या नियंत्रण कानून की मांग को लेकर आगामी 19 जून को दिल्ली के जन्तर मन्तर पर विशाल धरना आयोजित किया जाएगा। उन्होंने इस कार्यक्रम में प्रधानमंत्री और संघ प्रमुख को आने का न्यौता दिया। इस मौके पर स्वामी नारायण गिरी जी व यति नरसिंहानंद सरस्वती जी ने इस कार्यक्रम के लिए तन,मन और धन से समर्थन देने का आश्वासन भी दिया।

उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री को यह समझना होगा कि इस देश की जनता ने उन्हें सत्ता पर काबिज कराया है। मोदी जी को संतो और भक्तोंं की भावनाओं को समझना होगा।

उन्होंने कहा की धर्म की रक्षा यदि संत नहीं करेंगे तो कौन करेगा। आज जिस तरह से अल्पसंख्यक तुष्टिकरण और वोट बैंक की राजनीति ने देश को बर्बाद किया है, उसके लिये संतो की उदासीनता भी जिम्मेदार हैं।यदि संत समाज केवल नेताओंं में कमी निकालकर अपने कर्तव्य को पूर्ण मानता है तो यह देश,धर्म और समाज के साथ विश्वासघात है, जिसके लिए आने वाली पीढ़ियांं कभी भी संत समाज को क्षमा नहीं करेगी।


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