ज्ञान-विज्ञान, संस्कृति का स्रोत है संस्कृत भाषा : प्रो. शास्त्री
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली: संस्कृत भाषा में ज्ञान-विज्ञान की अनंत धाराएं ऋगवेदकाल से लेकर आज तक विश
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली: संस्कृत भाषा में ज्ञान-विज्ञान की अनंत धाराएं ऋगवेदकाल से लेकर आज तक विश्व में बिना किसी बाधा के प्रवाहित होती रही हैं। विश्व की कई प्राचीन संस्कृतियां इतिहास में खो चुकी हैं, लेकिन भारतीय संस्कृति आज भी गौरव के साथ विश्व में अपनी एक अलग पहचान रखती है। यह कहना है राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान के कुलपति प्रो.परमेश्वर नारायण शास्त्री का। उन्होंने कहा कि संस्कृत भाषा ज्ञान-विज्ञान व संस्कृति का स्रोत है।
प्रो. परमेश्वर नारायण शास्त्री ने उक्त विचार दिल्ली संस्कृत अकादमी, दिल्ली सरकार की आरे से आयोजित पुरस्कार वितरण समारोह में मुख्य अतिथि के तौर पर बोलते हुए व्यक्त किए। इस मौके पर अकादमी के सचिव डॉ. जीतराम भट्ट ने कहा कि दिल्ली संस्कृत अकादमी द्वारा वर्ष 2015-16 में दिल्ली के सभी मंडलों में आयोजित संस्कृत की विभिन्न प्रतियोगिताओं के विजेताओं व प्रतिभागियों को प्रमाणपत्र से सम्मानित किया गया है। उन्होंने कहा कि हमारी कोशिश है कि इस साल भी अकादमी संस्कृत को विभिन्न प्रतियोगिताओं के माध्यम से 20 लाख घरों तक पहुंचाए।
इस अवसर में आयोजित कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए दिल्ली सरकार के भाषा सचिव एनके शर्मा ने कहा कि हमारे देश में पुरातन वेद, उपनिषद, दर्शन व पुराण आदि आज भी संस्कृत भाषा में सुरक्षित हैं। इस भाषा में प्राचीन काल से ही हमारे संस्कार व संस्कृति लिखित है और संपूर्ण सृष्टि का रहस्य और गंभीर चिंतन इस भाषा में उपलब्ध है।