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महंगाई ध्यान में रखकर करें रिटायरमेंट प्लानिंग

एक्सपर्ट्स के मुताबिक रिटायरमेंट प्लानिंग के दौरान हमें महंगाई के पहलू को हमेशा ध्यान में रखना चाहिए

By Praveen DwivediEdited By: Published: Sun, 09 Jul 2017 01:48 PM (IST)Updated: Sun, 09 Jul 2017 01:48 PM (IST)
महंगाई ध्यान में रखकर करें रिटायरमेंट प्लानिंग
महंगाई ध्यान में रखकर करें रिटायरमेंट प्लानिंग

धीरेंद्र कुमार, सीईओ वैल्यु रिसर्च

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रिटायरमेंट के निवेश को लेकर परंपरागत भारतीय सोच यह सिखाती है कि किसी को भी निवेश के मूल्य में न्यूनतम गिरावट को भी बर्दाश्त नहीं किया जाना चाहिए। दूसरी ओर इस बात की लगातार अनदेखी की जाती है कि महंगाई हर साल 5-12 फीसद तक वास्तविक निवेश मूल्य को कम कर देती है। वॉरन बफेट का एक कथन काफी मशहूर है। वह यह है कि जो लोग जोखिम लिए बगैर रिटर्न की तलाश में रहते हैं, उन्हें जोखिम मुफ्त में मिलने की आशंका रहती है। मूल रूप से यह कथन अमेरिकी बांड निवेशकों के लिए था। लेकिन, यह रिटायरमेंट संबंधी आज के मेरे विषय के संदर्भ में भी प्रासंगिक है।

भारतीय बचतकर्ताओं, निवेशकों और निवेश सलाहकारों में यह बात गहराई से बैठ चुकी है कि रिटायरमेंट सेविंग्स को सबसे कम जोखिम के साथ निवेश किया जाना चाहिए। शायद ही इस बात से कोई असहमत हो। हालांकि, व्यवहार में शून्य जोखिम वाले इस जुनून का प्रभाव भयानक है। इसका कारण यह है कि ऐसा करने में अक्सर ज्यादातर लोग वित्तीय सेहत के लिए सबसे बड़े खतरे महंगाई को नजरअंदाज कर देते हैं। इस बात को इतना स्पष्ट रूप से रखने के लिए खेद है, लेकिन अगर आप अपनी रिटायरमेंट सेविंग्स में मुद्रास्फीति के प्रभावों की उपेक्षा करते हैं, तो आप बुढ़ापे में गरीबी की ओर बढ़ रहे हैं।

रिटायरमेंट के निवेश के बारे में परंपरागत भारतीय सोच यह सिखाती है कि किसी को भी निवेश के मूल्य में न्यूनतम गिरावट को भी बर्दाश्त नहीं करना चाहिए। जबकि इस बात की लगातार अनदेखी की जाती है कि महंगाई हर साल 5 से 12 फीसद तक वास्तविक निवेश मूल्य को कम कर देती है। ऐसे कुछ ही भाग्यशाली हैं, जिनके पास आय के इस तरह के स्रोत हैं जिनमें कमाई स्वाभाविक रूप से महंगाई से जुड़ी होती है। अच्छा किराया देने वाली प्रॉपर्टी ऐसा ही एक उदाहरण है। इनके अलावा हर किसी को कमाई की दुश्मन महंगाई से आजीवन लड़ना पड़ता है।

जोखिम, जिसके बारे में आलोचक बात करते हैं, वह अस्थिरता के आकस्मिक प्रभाव पर आधारित है। इक्विटी बाजार में अस्थिर हो सकती है, लेकिन कुछ वर्षो के निवेश पर इनका रिटर्न अस्थिरता की भरपाई कर देता है। लंबी अवधि के निवेश के लिए अल्पकालिक अस्थिरता चिंता का विषय नहीं है। आइए, गुजरे एक दशक का उदाहरण लेते हैं। इस दौरान निवेश की गई निश्चित राशि पर आठ फीसद से थोड़ा ज्यादा रिटर्न मिला। इस अवधि में प्रति माह 10,000 रुपये का निवेश बढ़कर 18 से 19 लाख रुपये तक हो गया। जबकि इसी अवधि में एक औसत इक्विटी फंड बढ़कर 25 लाख रुपये हो गया, जो लगभग 14 फीसद रिटर्न है। इस अंतर को तीन दशकों तक ले जाएं। आप पाएंगे कि फिक्स्ड इनकम की तुलना में इक्विटी का विकल्प 2.5 से 3 गुना ज्यादा रिटर्न देता है।

रिटर्न के बीच इस तरह का अंतर समृद्धि में सेवानिवृत्त जीवन बिताने वाले बचतकर्ता को जरूरतों को पूरा करने के लिए हमेशा संघर्ष करने वाले बचतकर्ता से अलग करता है। यह याद रखना चाहिए कि रिटायरमेंट के लिए बचत एक दीर्घकालिक लक्ष्य है। इसे भी किसी अन्य दीर्घकालिक निवेश की तरह ही देखा जाना चाहिए।

दरअसल, रिटायरमेंट सेविंग्स का समय ज्यादा हो सकता है। लोग रिटायरमेंट की तारीख को निवेश की टार्गेट डेट के रूप में लेते हैं। रिटायरमेंट आपके जीवन में एक घटना हो सकती है, लेकिन बचत और निवेश के परिप्रेक्ष्य से यह एक घटना नहीं है, बल्कि सेवानिवृत्त जीवन के एक लंबे दौर की शुरुआत है। 55 साल की उम्र में, आप सोच सकते हैं कि सेवानिवृत्ति सिर्फ एक दशक दूर है। लिहाजा आपकी रिटायरमेंट राशि बिना जोखिम वाले निवेश में जानी चाहिए, लेकिन वास्तव में इसका कोई मतलब नहीं है। जब आप 65, 75, 85 या 95 साल के होते हैं तो आप इन निवेशों से आय का उपयोग करेंगे। सेवानिवृत्ति का समय बहुत लंबा हो सकता है। 60 से लेकर जीवन के अंत तक यह अवधि 30 या 35 वर्ष की हो सकती है। यह आपके कामकाजी जीवन के करीब-करीब बराबर है।

उन 30 या 35 वर्षो में कीमतें दोबारा पांच से सात गुना बढ़ेंगी। शायद इससे भी ज्यादा। इससे भी खराब बात यह है कि आप अप्रत्याशित और बढ़ते मेडिकल बिलों का सामना कर सकते हैं, जो वास्तविक मुद्रास्फीति का एक प्रमुख घटक है। एक घटना के तौर पर रिटायरमेंट की प्लानिंग सामान्य भूल है।


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