बड़ी सेविंग करने के लिए ज्यादा बचत है जरूरी
भविष्य में बड़े रिटर्न पाने के लिए जरूरी है कि नियमित रुप से बड़ी बचत की जाए
नई दिल्ली (धीरेंद्र कुमार, वैल्यू रिसर्च)। बीते दिनों बचत और निवेश पर एक सोशल साइट पर चर्चा के दौरान मैंने देखा कि किसी एक ने ग्रुप के अन्य लोगों से पूछा है कि क्या जब से उन्होंने निवेश करना शुरू किया है तब से वे ज्यादा बचत करने लगे हैं। इस व्यक्ति ने सदस्यों को बताया कि जब उसने निवेश नहीं किया हुआ था तब वह गैर-जरूरी चीजों पर खर्च करता था, जिन्हें वह आसानी से टाल सकता था। जब से उसने एक फंड में नियमित निवेश शुरू किया तब से काफी बदलाव हुए। महज उस फंड पर नजर रखने से वह अपनी वित्तीय स्थिति को लेकर अधिक जागरूक हो गया। वह अनावश्यक चीजों पर कम खर्च करने लगा व उसे अधिक बचत होने लगी। रोचक यह है कि चर्चा में शामिल कई अन्य सदस्यों ने भी कुछ इसी तरह की बातें की थीं।
मैं मानता हूं कि यह काफी लोगों ने अनुभव किया होगा। मैंने वैल्यू् रिसर्च में काम करने वाले युवा सहयोगियों में भी कई बार यह चीज देखी है। एक ऐसा चरण आता है जब पैसे की सबसे बड़ी उपयोगिता उससे अगला मोबाइल फोन या पहली कार खरीदने में दिखाई देती है।
फिर कुछ ऐसे होते हैं जो कर बचत को ईएलएसएस में निवेश शुरू करते हैं। वे अचानक पैसे के बारे में अलग तरह से सोचना शुरू कर देते हैं। उनके पास खर्च करने को कम होता है। ऐसे में वे ध्यान से खर्च करते हैं। जब वे खर्च नहीं करते हैं तो वे खुद से कहते हैं कि यह बेहतर है क्योंकि उनका पैसा बढ़ रहा है। और फिर वे और बचत करने की कोशिश करते हैं। मैंने युवाओं में ऐसे तमाम उदाहरण देखे हैं। वे छोटी बचत से शुरू करते हैं। वह भी सिर्फ टैक्स बचत को। और फिर वे बहुत कम समय में ज्यादा बचत करने लगते हैं। यहां एक महत्वपूर्ण बात है। ऐसा उन लोगों के साथ नहीं होता है जो बिना सोचे समझे कुछ पैसा पीपीएफ या अन्य टैक्स सेविंग स्कीम में लगा देते हैं। 15 साल की लॉक-इन अवधि और कोई सुखद आश्चर्य वाली बात न होने से ऐसी बचत बचतकर्ता को निवेशक नहीं बनाती है। बचतकर्ता तभी निवेशक बनता है जब कुछ शर्तें पूरी हों। पहला नियमित निवेश, मसलन सिस्टमैटिक इंवेस्टमेंट प्लान यानी एसआइपी के जरिये। दूसरा, ऐसा एसेट क्लास जिसमें सुखद आश्चर्य देने की क्षमता हो। तीसरा, लॉक-इन अवधि छोटी हो, जो युवाओं को प्रेरित करे कि उन्होंने जो संयम दिखाया उसका फल उन्हें मिला।
यही तीन बातें हैं जो लोगों को ज्यादा निवेश करने को प्रोत्साहित करती हैं एक बार जब वे थोड़ा निवेश करना शुरू करते हैं। एक समस्या यह है कि मीडिया से सिर्फ ‘खर्च करो’ का संदेश आता प्रतीत होता है। ‘बचत करो’ का संदेश शायद गायब ही है।
यह भी दिक्कत है कि निवेश के बारे में जो कुछ प्रकाशित होता है, उसमें कहां निवेश करें इसी तक चीजें सिमट जाती हैं। जबकि वास्तव में यह प्रमुख समस्या नहीं है। मुख्य समस्या यह है कि बड़ी संख्या में लोग बचत करते ही नहीं हैं या बचत पर्याप्त नहीं होती है। वे जो कुछ भी बचाते हैं, उसमें वास्तविक जागरूकता नहीं होती है। यह बचत भविष्य के लक्ष्यों को निर्धारित किए बगैर की जाती है। टीवी पर हाल में म्यूचुअल फंड उद्योग के एक अभियान का प्रचार दिखना शुरू हुआ है। निश्चित ही अलग-अलग फंड कंपनियां अपने विशिष्ट उत्पादों का प्रचार करने को विज्ञापन देती हैं। अभियान सेबी के जोर दिए जाने का नतीजा है कि फंड कंपनियां इंवेस्टर एजुकेशन पर खर्च करें। इस तरह के संदेश लोगों तक जाने ही चाहिए। यह अच्छा उदाहरण है।