महागठबंधन में PM मटेरियल विवाद, राहुल के लिए चुनौती बने नीतीश
विधानसभा चुनाव के दौरान राजद, जदयू और कांग्रेस की एकजुटता का नतीजा है, बिहार में महागठबंधन की सरकार। जदयू के मिशन-2019 के एलान के साथ ही असली परीक्षा की घड़ी भी आ गई है। परीक्षा महागठबंधन के साथ-साथ खुद नीतीश के कौशल की भी होगी।
पटना। बिहार की महागठबंधन सरकार में शामिल जदयू, राजद व कांग्रेस मिशन 2019 के तहत पीएम कैंडिडेट के मुद्दे पर एकमत नहीं दिख रहे। महागठबंधन के घटक दल जदयू के अध्यक्ष नीतीश कुमार पीएम पद के दावेदार के रूप में उभरे हैं। दूसरी तरफ कांग्रेस राहुल गांधी को अगला प्रधानमंत्री प्रत्याशी मानकर चल रही है। एक ही गठबंधन में दो-दो दावेदारों ने स्थितियां असहज कर दी हैं।
विधानसभा चुनाव के दौरान राजद, जदयू और कांग्रेस की एकजुटता का नतीजा है, बिहार में महागठबंधन की सरकार। सरकार अपनी स्वाभाविक रफ्तार में चल भी रही है, लेकिन जदयू के मिशन-2019 के एलान के साथ ही असली परीक्षा की घड़ी भी आ गई है। परीक्षा महागठबंधन के साथ-साथ खुद नीतीश के कौशल की भी होगी कि सहयोगी दलों को एकजुट रखते हुए कैसे मंजिल तक पहुंचें।
नरेंद्र मोदी की करिश्माई कामयाबी पर बिहार में विराम लगाने के बाद नीतीश कुमार की छवि भी देशव्यापी हो गई है। कांग्रेस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान से ही प्रधानमंत्री पद के दावेदार हैं। बिहार में चार से 27 सीटों का आंकड़ा छूने के बाद कांग्रेस उत्साहित है।
राजद प्रमुख लालू प्रसाद भी देश-प्रदेश की राजनीति में तीन दशकों से अपरिहार्य बने हुए हैं। ऐसे में तीनों दिग्गजों के राग-विराग को फिर से राष्ट्रीय संदर्भ में धर्मकांटे पर चढ़ाया जा रहा है। भविष्य की चुनौतियों का आकलन कर उन्हें कसौटियों पर तौला जा रहा है।
यहां तक कि नीतीश के पक्ष में लालू प्रसाद के नैतिक समर्थन के एलान की चीरफाड़ भी की जा रही है। हालांकि उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव का बयान नीतीश कुमार के समर्थकों की ऊर्जा को दुगुनी रफ्तार दे सकता है। लालू के बाद तेजस्वी भी मिशन-2019 का समर्थन करते हुए नीतीश को पीएम पद का सबसे बड़ा दावेदार बता चुके हैं।
जाहिर है, नीतीश की राह में राजद की ओर से फिलहाल कोई अड़ंगा नहीं दिख रहा है, किंतु राहुल गांधी के नाम पर कांग्रेस समझौता करने के लिए तैयार नहीं दिख रही है। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष एवं नीतीश सरकार में शिक्षा मंत्री डा. अशोक चौधरी ने साफ कह दिया है कि कांग्रेस में 2019 में प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार राहुल गांधी ही होंगे।
हालांकि, वह जदयू के उत्साह पर पानी भी नहीं फेरना चाहते हैं। यह भी जोड़ते हैं कि भाजपा के खिलाफ राष्ट्रीय राजनीति में नीतीश कुमार का कद जितना बढ़ेगा, राहुल गांधी के लिए उतना ही आसान होगा। रही राजद की बात, तो मुलायम सिंह की महत्वाकांक्षा भविष्य में राजद का धर्मसंकट बढ़ा सकती है।
उधर, कांग्रेस नेताओं के बयानों से जदयू के राष्ट्रीय महासचिव केसी त्यागी इत्तेफाक नहीं रखते। वह कहते हैं कि अपने नायकों को महिमामंडित करने का अधिकार सबको है। नीतीश को गुड गवर्नेंस का प्रतीक बताते हुए त्यागी यह भी कहते हैं कि जदयू ने अभी प्रधानमंत्री पद की दावेदारी के मुद्दे पर अपना रुख स्पष्ट नहीं किया है।
फिर भी इतना सबको पता है कि भाजपा विरोध की अभिव्यक्ति के नायक के रूप में देश में अभी अगर कोई मुख्यमंत्री है तो वह सिर्फ नीतीश कुमार हैं। उनमें प्रधानमंत्री पद की गरिमा व क्षमता दोनों है।
स्पष्ट है कि प्रधानमंत्री पद के दावेदार के रूप में नीतीश के नाम पर लालू की सहमति के बाद जदयू के बुलंद हौसले पर कांग्र्रेस की निरपेक्षता से कोई खास फर्क नहीं पडऩे वाला है। फिर भी इतना तय है कि बिहार में महागठबंधन धर्म को कदम-कदम पर कठिन परीक्षा से गुजरना पड़ेगा।