बैंकों की निगरानी जरूरी
सरकार को योजना की निगरानी और बैंकों के रवैये पर नजर रखने को उच्च स्तरीय टीम बनानी चाहिए, जो अभिभावकों और शिकायतों को ध्यान रख संबंधित एजेसिंयों को दिशा-निर्देश दे सके।
महंगी उच्च शिक्षा के कारण बच्चों की पढ़ाई का खर्च उठा पाना सभी अभिभावकों के लिए मुश्किल भरा कार्य है। खास तौर पर मध्य और निम्न मध्य वर्ग के बच्चे मेधावी होने के बावजूद सिर्फ इसलिए आगे नहीं पढ़ पाते क्योंकि उनके माता-पिता इंजीनियरिंग या डॉक्टरी की पढ़ाई पर होने वाला लाखों का खर्च उठाने में असमर्थता जता देते हैं।
बिहार में इस मजबूरी को देखते हुए नीतीश सरकार ने इस साल स्टूडेंट क्रेडिट कार्ड योजना के तहत आसान ब्याज पर शिक्षा ऋण की व्यवस्था करने की ठानी है, हालांकि बैंकों से अपेक्षित सहयोग न मिलने की शिकायत मिल रही है। राज्य स्तरीय बैंकर्स कमेटी की हाल में हुई बैठक में यह जानकारी मिली कि पिछले वित्तीय वर्ष में एचडीएफसी, एक्सिस बैंक एवं फेडरल बैंक को छोड़ शेष सभी निजी बैंकों की उपलब्धि इस मामले में शून्य रही।
राज्य में मात्र 23915 छात्र-छात्रओं को ही शिक्षा ऋण दिया जा सका, जबकि चालू वित्तीय वर्ष में स्टूडेंट क्रेडिट कार्ड योजना के तहत पांच लाख छात्र-छात्रओं को चार-चार लाख रुपये कर्ज देने का लक्ष्य है। बैंकों की कार्यशैली चिंतनीय है। जबकि उच्च शिक्षा के लिए ऋण वितरण में उदासीनता बरतने वाले बैंकों के माध्यम से ही 2 अक्टूबर से मुख्यमंत्री के सात निश्चय में शामिल स्टूडेंट क्रेडिट कार्ड योजना का कार्यान्वयन होना है।
बैंकों से मिल रही शिकायतों को ध्यान में रखकर ही राज्य सरकार ने स्टूडेंट क्रेडिट कार्ड की योजना की परिकल्पना की। योजना का मुख्य उद्देश्य उच्च शिक्षा में छात्र-छात्रओं का नामांकन बढ़ाना है। वर्तमान में यह सिर्फ 13 प्रतिशत है। मुख्यमंत्री इसे 50 प्रतिशत तक ले जाना चाहते हैं। नामांकन की रफ्तार तय करने में बैंकों का रवैया बड़ी भूमिका अदा करेगा। बैंकों ने खुद माना है कि शिक्षा ऋण की स्थिति बेहतर नहीं है। अब 12 कक्षा पास विद्यार्थियों को क्रेडिट कार्ड योजना के तहत शिक्षा ऋण उपलब्ध कराने का लक्ष्य है।
शिक्षा ऋण और किसान को मिलने वाले ऋण को लेकर राज्य सरकार पहले भी बैंकों को कड़े निर्देश या सुझाव दे चुकी है, लेकिन नतीजा हमेशा अच्छा नहीं होता। बैंकों के रवैये को देख राज्य सरकार ने स्टूडेंट क्रेडिट कार्ड योजना के लिए हर जिले में निबंधन कार्यालय खोलने का फैसला लिया है। इन केंद्रों पर लाभार्थियों के सभी कागजात दुरुस्त किए जाएंगे ताकि उनके आवेदन बैंकों से नामंजूर न किए जा सकें। इस ऋण के लिए राज्य सरकार खुद गारंटर बनेगी और किस्त अदायगी में विलंब पर ब्याज का भुगतान भी करेगी। पांच लाख क्रेडिट कार्ड के लक्ष्य को बढ़ाया भी जा सकता है।
ऐसे में बैंकों के लिए स्टूडेंट क्रेडिट कार्ड योजना चुनौती बन गई है। सही ढंग से काम हो तो स्टूडेंट क्रेडिट कार्ड योजना राज्य के लिए क्रांतिकारी साबित होगी क्योंकि गांव-गांव में बच्चे अपनी मेधा के बल पर मैटिक और इंटर में अच्छे मार्क्स लाते हैं, लेकिन उच्च शिक्षा की महंगाई उन्हें तकनीकी शिक्षा की ओर कदम बढ़ाने से रोक देती है। सरकार को योजना की निगरानी और बैंकों के रवैये पर नजर रखने को उच्च स्तरीय टीम बनानी चाहिए, जो अभिभावकों और शिकायतों को ध्यान रख संबंधित एजेसिंयों को दिशा-निर्देश दे सके।
(स्थानीय संपादकीय, बिहार)